वास्तविक स्वरूप
दशानन का तात्पर्य होता है जिसके दस चेहरे हो या दस मुख हो .वर्तमान परिवेश में, कलयुगी दशानन
लगभग
हर
क्षेत्र
में
चाहे
वह
राजनैतिक
सामाजिक,
आर्थिक,
शैक्षिक
या कोई अन्य क्षेत्र हो अपने छद्म चेहरों के
दम
पर
बलात् एक नहीं
अनेक राम को
ठगने
का
प्रयास
नहीं
छोड़
रहे
है।
एक
चेहरा
(मुखोटा
) उतरा
तो
फिर
दूसरा
तैयार
हो
जाता
है . अकारण वाद -विवाद
द्वारा
या
दूसरों
का
तन
मन
धन
एंठने
के
लिए
अपने ,उग्र रूप से किसी न
किसी
विधि
से
लोगों
को
प्रताड़ित
करते
रहते
हैं हैं. वैसे
हीजैसे
झूठ
बोलने
का
व्यवसाय
करने
वाले वकील या
उनके परिवार के सदस्य होते हैं।
रावन का
मर्दन
क्यों
हुआ
इसके
अनेक
कारण है। पहला कारण है जब-
जब दशानन रुपी
झूठ,
छल,
कपट, वासना, क्रोध,
भय,
अहंकार
, लालच,
आसक्ति,
इर्ष्या
, द्वेष,घ्रणा
की अति हुई तब- तब राम रुपी प्रेम,
संयम,
साहस
, सादगी, निस्वार्थता,
पुनर्जागरण,
कर्मठता,
मित्रता,
प्रशंसा , घनिष्ठता
के
अवतार ने रावन का अस्तित्व मिटाया और राम राज्य स्थापित किया।
दूसरा कारण है रावण ने
राम की आदि-शक्ति
सीता पर कुदृष्टि
डाली
थी
।
सीता 'शक्ति स्वरूपा'
थी
. रावण राम से
सीधे
नहीं लड़ सकता
था
. सीता-
स्वयम्वर
में रावण उसी
शिव
जी
के धनुष की
प्रत्यंचा
को नहीं चढ़ा
सका
था।
जिस
शिव
जी
के
धनुष
से
सीता
जी
उनके
बाल्यकाल
में
खेलती
थी
. रावण
में
इतनी
शक्ति
भी
नहीं
थी
की सीता के
अपहरण
के
लिए लक्ष्मण द्वारा
खिंची
गयी रेखा को पार कर सके ।
इसलिए
उसने
छद्मवेश
द्वारा
सीता
जी
को
लक्ष्मण
रेखा
पार
कराने के लिए ब्राह्मण का
वेष
धारण
किया
और
सीता
का
अपहरण
कर
मूल
स्वरुप
में
आकर आकाश को
अपने
अट्टहास से
गुंजायमान
करता
हुआ वायु मार्गसे
लंका
पहुँच
गया। रावण अहंकार वश अपने आप को सर्व शक्तिमान समझता रहा ,वह सर्व शक्ति मान नहीं था। राम की सेना का हर सैनिक रावण से अधिक शक्तिमान था। सीता के वियोग में राम साधारण इन्सान से रोते -बिलखते जंगल -जंगल सीता की खोज करते रहे।
इसी विरह-
वेदना
का बदला श्रीराम
ने रावण से
युद्ध
कर
निकाला।
जब
श्री
राम
वन
-वन
सीता
को
ढूंढ
रहे
थे तब उनकी
भेंट
सुग्रीव ,बालि ,हनुमान
,पक्षिराज
(गरुढ़)
जटायु
और
अनगनित
वानर
सेना
से
हुई जिन्होंने सीता
के
जेवर
गहने
दिखाकर, इस बात
की
पुष्टि
की वह सीता ही थी जिसका हरण
कर
रावण इस मार्ग
से
होकर
गुजरा
था
।
इसी
राम
सेना
ने रावन के
वध
हेतु
लंका
पर
विजय
प्राप्त
करने समुद्र पर
राम
सेतु बनाकर रावण -वध में राम
की
मदद
की।
जैसे शारदीय
नवरात्र
का
महापर्व आदिशक्ति की
पूजा-उपासना
का
होता
है,
तथा
दुर्गा
सप्तशती
के
प्रत्येक
अध्याय
में
नव
दिनों
में नव देवी
- शैलपुत्री,
ब्रह्मचारिणी,
चंद्रघण्टा कुष्माण्डा, स्कन्दमाता,
कात्यायिनी,
कालरात्री,
महागौरी,
सिद्धिदात्री
द्वारा समस्त दुष्ट,अन्यायी,कुकर्मी
का
वध
किया जाता है।
वैसे
ही राम द्वारा
रावण
का मर्दन दशहरे
के
दिन
होता
है
।
रावण
अहंकार
वश अपने आप
को
सर्व
शक्तिमान
समझता
रहा
,वह सर्व शक्ति
मान
नहीं
था। राम सैनिक शक्तिमान अंगद रावण की सभा में रावण
से कहते हैं
कि
जितने
रावणों
के
बारे
में
मैं
जानता
हूँ,
तू
सुन
और
बता
कि
उनमें
से
तू
कौन-सा
है
-
'बलिहि
जितन
एक
गयउ
पताला।
राखेउ
बाँधि
सिसुन्ह
हयसाला॥
एक बहोरि
सहसभुज
देखा।
धाइ
धरा
जिमि
जंतु
बिसेषा॥
एक कहत
मोहि
सकुच
अति,
रहा
बालि
कीं
काँख।
इन्ह मह
रावन
तैं
कवन
, सत्य
बदहि
तजि
माख॥'
कलयुगी रावण घोर गर्जना
के
साथ
राम
को
मिटाने
की
बात
कह
रहे है। ऐसे
रावण
पूरे
विश्व
को
एक
ही
संस्कृति
में
ढालना
चाहते
हैं,झूठ,
छल,
कपट,
हिंसा
. लड़ाई,
मार
पीट के दम
पर
बलात्
लोगों
को
छदम
जीवन
शैली
में
ढाल
उनकी
प्रतिष्ठा
को
कलंकित
कर
हैं.अब
समय
आ
गया
है जब राम
को
कलयुग
में
जन्म
लेना
होगा और अपने
चेहरे
पर
मुखोटे लगाये हुए कलयुगी दशाननों
को
मिटाना
होगा।