माँ, मन और भावनाएं
मन है तो भावनाएं है. भावनाएं हैं तो अनुभूति है. अनुभूति है तो अनुभव है. अनुभव है तो रस है. खट्टे-मीठे रस. इन्ही नौ रसों से मिलकर संसार बना है.इन सभी रसों में सर्वोपरि है मातृत्व की अनुभूति . मन का स्थायी भाव है प्रेम प्राप्ति की उत्कट अभिलाषा. जहा प्रेम होता है वहा उम्मीदे होती हैं, माता -पिता को बच्चो से और बच्चो को माता -पिता से. माता -पिता बच्चों को बड़ा करते है एक उम्मीद के सहारे . ये जीवन के रिश्ते investment के सिद्धांत पर चलते हैं. जितना ज्यादा समय और समर्पण इन रिश्तों को निभाने में लगाया जाता है उतने ही मीठे फल इस रिश्ते रुपी बगीचे में लगते हैं. शारीरिक सुख संसार की सुख सुविधाओ से प्राप्त होता है पर अपनों के बिना संसार भी असार लगता है. यह तो मानसिक सुख ही है जो कठोती के साधारण जल को भी गंगा जल समझ स्नान कर लेता है . नहीं तो गंगा जल में स्नान के बाद भी मन खुश नहीं होता .
मानसिक सुख की तुलना संसार के किसी पदार्थ से नहीं की जा सकती. यह सुख ठोस, द्रव और गैस के रूप में नहीं बंधा है. यह abstract . (बिना किसी रूप का ) होता है. यह भावनात्मक होता है. भावना के बल पर ही हम रिश्ते बनाते हैं, जब तक भावनाएं रहती है. रिश्ते हैं नाते हैं यादे है. अन्यथा जिस दिन भावना ख़त्म हो जाती है सारे सुख , सारे रस ख़त्म हो जाते है. हम जिन्दा तो रहते हैं पर निष्प्राण . जैसे बच्चा खिलोने में चाभी भरकर छोड़ दे और वो खिलौना तब तक चलता रहता है.जब तक चाभी भरी है. इसी परिपेक्ष्य में एक छोटी सी घटना है-
अन्वेषा का विवाह ऐसे घर में होता है जहा उसे शादी के बाद माँ बनने पर प्रतिबंधित किया जाता है. वह इसी उम्मीद के सहारे जीती है कि जल्दी ही वह इस सुख को जरूर प्राप्त करेगी पर उसे पता नहीं था कि वो इस भावना से वंचित है. मातृत्व विहीन नारी का जीवन सार्थक नहीं कहलाता . जब उसे ये पता चलता है उसकी उम्मीदें टूटती हैंजिससे वह गहरे दुःख में पहुँच जाती है. इस दुःख की परिकल्पना भी कोई नहीं कर सकता उसे छोड़कर जो निस्संतान हो. अकेला हो. अन्वेषा के आतंरिक दुःख क़ी कोई सीमा नहीं थी. उसके पति और उससे सम्बंधित जन उसे विषादग्रस्त देख मानसिक चिकित्सक के पास ले जाते हैं और दवाई खिलने लगते है बिना यह अनुभव किये कि दवाइयां अन्वेषा के मस्तिष्क पर विपरीत रासायनिक प्रभाव उत्पन्न कर रही है.मनोचिकित्सक तो खुद ही आधे पागल होते हैं अपनी ग्राहकी बनाने के लिए अच्छे भले स्वस्थ्य व्यक्ति को भी बीमार घोषित कर दे ऐसे कई उदाहरण है चिकित्सकों के जब वे यम दूत से कम सिद्ध नहीं हुए हैं . अन्वेषा शिक्षित थी . उसे पता था कि उसकी बीमारी का ईलाज मानसिक रोगी के पास नहीं . उसके पति के पास है . उसका ईलाज संतानप्राप्ति था. उसके पति का साथ और वैचारिक, भावनात्मक स्पर्श था. किसी भी नारी के लिए मातृत्व की वेदना बहुत ही अनियंत्रित होती है.यह वेदना स्त्री होने के वजूद के ख़त्म होने जैसी होती है .इस वेदना को अनीता देसाई ने अपनी पुस्तक "Cry The Peacock" में प्रभावशाली तरीके से चित्रित किया है।
अभी हाल ही में यह भावना इंसान ही नहीं जानवरों में भी देखी गयी है वो भी सबसे खूंखार समझे जाने वाले प्राणी शेर में. कैलिफोर्निया के एक चिड़ियाघर में एक शेरनी ने तीन बच्चों को जन्म दिया . दुर्भाग्य से, गर्भावस्था के दौरान कुछ कठिनाइयों क़ी वजह से वे cubs समय पूर्व ही पैदा हो गए. और आकार में बहुत छोटे होने क़ी वजह से जन्म लेते ही मर गए. delivery से recovery के बाद mother tiger का स्वस्थ्य बहुत ख़राब हो गया . चिकित्सकों ने बताया शारीरिक रूप से वह पूर्ण स्वस्थ्य है . परन्तु अपने बच्चो के न रहने से वह गहरे अवसाद , गहरे दुःख में चली गयी है. चिकित्सकों क़ी सलाह पर उसे दुसरे नवजात बच्चों के समीप रखने का निर्णय लिया गया . जिससे कि उसकी मानसिक दशा ठीक हो सके. देश के सभी चिड़ियाघर में खोज-बीन के पश्चात् भी कहीं शेर के नवजात शिशु नहीं मिले. और शेरनी को गहरे अवसाद और दुःख से मुक्ति भी नहीं मिली . जब चिकित्सकों को mother tiger को बचाने का कोई और रास्ता नहीं दिखाई दिया तो उन्होंने सूअर के नवजात शिशुओं को tiger skin में पैक करके बच्चों को mother tiger. के पास रख दिया. जिससे शेरनी को मानसिक अवसाद से बचाया जा सका और उसकी प्राण रक्षा की जा सकी अन्यथा गंभीर मानसिक दुःख की अवस्था में शेरनी की मृत्यु तक हो सकती थी .
यह घटना सिद्ध करती है कि प्रत्येक चैतन्य में भावनाए होती ही है. जिस दिन चैतन्य से भावनाए मर जाती है उस दिन शरीर चैतन्य न होकर जड़ हो जाता है. मृतप्रायः हो जाता है . भावनाए और जीवन एक दुसरे के वैसे ही पूरक हैं जैसे प्राण और शरीर.भावनाएं आहत होने पर मन और शरीर क्रियाहीन ,गतिहीन हो जाते हैं तथा भावनात्मक उपचार के अभाव में प्राणों का बच पाना भी कठिन हो जाता है।
अन्वेषा का विवाह ऐसे घर में होता है जहा उसे शादी के बाद माँ बनने पर प्रतिबंधित किया जाता है. वह इसी उम्मीद के सहारे जीती है कि जल्दी ही वह इस सुख को जरूर प्राप्त करेगी पर उसे पता नहीं था कि वो इस भावना से वंचित है. मातृत्व विहीन नारी का जीवन सार्थक नहीं कहलाता . जब उसे ये पता चलता है उसकी उम्मीदें टूटती हैंजिससे वह गहरे दुःख में पहुँच जाती है. इस दुःख की परिकल्पना भी कोई नहीं कर सकता उसे छोड़कर जो निस्संतान हो. अकेला हो. अन्वेषा के आतंरिक दुःख क़ी कोई सीमा नहीं थी. उसके पति और उससे सम्बंधित जन उसे विषादग्रस्त देख मानसिक चिकित्सक के पास ले जाते हैं और दवाई खिलने लगते है बिना यह अनुभव किये कि दवाइयां अन्वेषा के मस्तिष्क पर विपरीत रासायनिक प्रभाव उत्पन्न कर रही है.मनोचिकित्सक तो खुद ही आधे पागल होते हैं अपनी ग्राहकी बनाने के लिए अच्छे भले स्वस्थ्य व्यक्ति को भी बीमार घोषित कर दे ऐसे कई उदाहरण है चिकित्सकों के जब वे यम दूत से कम सिद्ध नहीं हुए हैं . अन्वेषा शिक्षित थी . उसे पता था कि उसकी बीमारी का ईलाज मानसिक रोगी के पास नहीं . उसके पति के पास है . उसका ईलाज संतानप्राप्ति था. उसके पति का साथ और वैचारिक, भावनात्मक स्पर्श था. किसी भी नारी के लिए मातृत्व की वेदना बहुत ही अनियंत्रित होती है.यह वेदना स्त्री होने के वजूद के ख़त्म होने जैसी होती है .इस वेदना को अनीता देसाई ने अपनी पुस्तक "Cry The Peacock" में प्रभावशाली तरीके से चित्रित किया है।
अभी हाल ही में यह भावना इंसान ही नहीं जानवरों में भी देखी गयी है वो भी सबसे खूंखार समझे जाने वाले प्राणी शेर में. कैलिफोर्निया के एक चिड़ियाघर में एक शेरनी ने तीन बच्चों को जन्म दिया . दुर्भाग्य से, गर्भावस्था के दौरान कुछ कठिनाइयों क़ी वजह से वे cubs समय पूर्व ही पैदा हो गए. और आकार में बहुत छोटे होने क़ी वजह से जन्म लेते ही मर गए. delivery से recovery के बाद mother tiger का स्वस्थ्य बहुत ख़राब हो गया . चिकित्सकों ने बताया शारीरिक रूप से वह पूर्ण स्वस्थ्य है . परन्तु अपने बच्चो के न रहने से वह गहरे अवसाद , गहरे दुःख में चली गयी है. चिकित्सकों क़ी सलाह पर उसे दुसरे नवजात बच्चों के समीप रखने का निर्णय लिया गया . जिससे कि उसकी मानसिक दशा ठीक हो सके. देश के सभी चिड़ियाघर में खोज-बीन के पश्चात् भी कहीं शेर के नवजात शिशु नहीं मिले. और शेरनी को गहरे अवसाद और दुःख से मुक्ति भी नहीं मिली . जब चिकित्सकों को mother tiger को बचाने का कोई और रास्ता नहीं दिखाई दिया तो उन्होंने सूअर के नवजात शिशुओं को tiger skin में पैक करके बच्चों को mother tiger. के पास रख दिया. जिससे शेरनी को मानसिक अवसाद से बचाया जा सका और उसकी प्राण रक्षा की जा सकी अन्यथा गंभीर मानसिक दुःख की अवस्था में शेरनी की मृत्यु तक हो सकती थी .
यह घटना सिद्ध करती है कि प्रत्येक चैतन्य में भावनाए होती ही है. जिस दिन चैतन्य से भावनाए मर जाती है उस दिन शरीर चैतन्य न होकर जड़ हो जाता है. मृतप्रायः हो जाता है . भावनाए और जीवन एक दुसरे के वैसे ही पूरक हैं जैसे प्राण और शरीर.भावनाएं आहत होने पर मन और शरीर क्रियाहीन ,गतिहीन हो जाते हैं तथा भावनात्मक उपचार के अभाव में प्राणों का बच पाना भी कठिन हो जाता है।