भाव
"पत्थर भी सजीव हो उठता है गर भाव भक्ति के मन में हो"
यह शाश्वत तथ्य है कि सुख की अनुभूति भोजन वस्त्र और आवास से होती है. तथा शांति का अनुभव प्रेम, सेवा, करुना, दया, धर्म, मानवता से होता है सुख और शांति में मुख्य अन्तर यह होता है कि शांति ,संतुष्टि आत्मिक होती है और सुख सांसारिक होता है।
गीता में श्री कृष्ण ने कहा है -- "भावना से ही यह सारा जगत संचालित होता है"।
भाव शब्द बहुत विस्तृत है इसे परिभाषित करना कठिन है। कुछ पंक्तियाँ भाव को समझने के लिए-
सामान्यतः हम जिससे लगाव रखते हैं वो भी हमसे लगाव रखता है जहाँ भावनात्मकता होती है होता है वहां अद्भुत प्रगाढ़ रिश्ते बनते हैं और निभते हैं ये भावनात्मक सम्बन्ध सेवा, त्याग और समर्पण की भावनाओ को लिए हुए एक दुसरे की छोटी से छोटी आवश्यकताओं को समझते हैं. परन्तु एक तरफा भाव कभी सार्थक नहीं होता वेसे ही जैसे ताली बजाने के लिए दोनों हाथों कि आवश्यकता होती है.
गीता में श्री कृष्ण ने कहा है -- "भावना से ही यह सारा जगत संचालित होता है"।
भाव शब्द बहुत विस्तृत है इसे परिभाषित करना कठिन है। कुछ पंक्तियाँ भाव को समझने के लिए-
भाव इन्द्रधनुष है,भाव प्रकाश के सभी रंग है।
भाव सुदामा की मित्रता है,भाव रावण की शत्रुता है।
भाव मीरा की भक्ति है,भाव प्रह्लाद की शक्ति है।
भाव राधा का प्रेम है, भाव दुर्गा रुपी शक्ति है।
भाव सीता का त्याग है, भाव शबरी के जूठे बेर हैं,
भाव तृप्ति है,भाव मुक्ति है।
भाव विचार है,भाव अनुभूति है।
भाव आत्मा है,भाव संगीत है ।
भाव प्रार्थना है,भाव पूजा है।
भाव वेद है, भाव पुराण है।
भाव- सागर है ,भाव- आकाश है।
भाव सुख है भाव दुःख है।
भाव विरक्ति है,भाव क्या नहीं है?
भाव केवट का श्री राम को नैया पार कराना है।
भावमय सारा जगत है।
सामान्यतः हम जिससे लगाव रखते हैं वो भी हमसे लगाव रखता है जहाँ भावनात्मकता होती है होता है वहां अद्भुत प्रगाढ़ रिश्ते बनते हैं और निभते हैं ये भावनात्मक सम्बन्ध सेवा, त्याग और समर्पण की भावनाओ को लिए हुए एक दुसरे की छोटी से छोटी आवश्यकताओं को समझते हैं. परन्तु एक तरफा भाव कभी सार्थक नहीं होता वेसे ही जैसे ताली बजाने के लिए दोनों हाथों कि आवश्यकता होती है.
प्रत्यक्ष रूप से, बहुधा लोग धन-अर्जन को ही जिंदगी का ध्येय मानते हैं। घर में माता-पिता और बाहर अध्यापक बच्चों से कहते आये है -"पढोगे लिखोगे बनोगे नवाब और खेलोगे कूदोगे बनोगे ख़राब". और बड़े होकर खूब बड़े पद पर जाने की शिक्षा देते हैं। सुख का मार्ग भौतिकता या धन से होकर जाता है .परन्तु शांति का मार्ग धन से होकर नहीं जाता.हमें पढने -लिखने की शिक्षा धन प्राप्ति के लिए अनैतिक साधनों जैसे- हिंसा, अपराध. चोरी, लूट आदि के उपयोग से दूर रहने के लिए दी जाती है .आत्म-निर्भर और स्वाबलंबी बनने के लिए दी जाती है. अपने जीवन को अपने सहारे जीने के लिए दी जाती है. ताकि हम किसी के बेवजह के दबाव में न रहे और अपने स्वाभिमान की रक्षा कर सकें. इसके अतिरिक्त , "तन, मन, धन सब कुछ ईश्वर के द्वारा दिया हुआ समझ इश्वर को ही समर्पित कर सके।
श्री कृष्ण ने गीता में कहा है -"ईश्वर को अपनी हर चीज को समर्पित करो". ईश्वर को वही समर्पित किया जाता है जो पवित्र और शुद्ध भाव से कमाया गया हो।
यह सर्व विदित है कि धन के लिए पुरातन काल से युद्ध और महायुद्ध होते आये हैं।हत्या , लूटपाट से प्राप्त धन आत्मिक शांति नहीं दे सकता। जिस धन में असहाय, निर्बल को धोखा देने, उसके पैसे को हडपने की बदबू , गरीबों का हक़ छीन कर अपनी जेबें भरने का दंभ हो , निर्बलों के रक्तपात का रंग हो वह सुख दे सकता है पर मन की शांति नहीं. जिस धन में पसीने की महक, इमानदारी की ख्श्बू, इश्वर का आशीष नहीं होता वह धन रोग, शोक, क्लेश, असमय मृत्यु, जन- धन की हानि, अपमानित होने का भय लाता है। ऐसे धन में प्रतिष्ठा गवाने की चिंता अपयश या बदनामी फैलने का डर हर पल लगा ही रहता जो चैन की साँस नहीं लेने देता.ऐसा धन इश्वर को समर्पित करने योग्य नहीं होता।
स्पष्टतः, प्रेम जीत है। युद्ध हार है। युद्ध करके ही यह समझ में आना मूर्खता है . परन्तु निर्बल से प्रेम विरले ही करते हैं जब तक श्री राम समुद्र से अनुनय -विनय करते रहे तब तक समुद्र ने लंका पार हेतु उनकी मदद नहीं की परन्तु जब उन्होंने सम्पूर्ण समुद्र को अपने एक बाण से सुखाने हेतु तीर तरकश में डाला समुद्र मनुष्य का भेष धारण कर श्री राम के सम्मुख हाथ जोड़ कर बिनीत भाव से खड़ा हो गया " विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीती बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीती" शक्ति के भय से ही प्रीति उत्पन्न होती है .
यह भी सत्य है। प्रेम से खूंखार जानवर तक वश में हो जाते हैं शेर , हाथी, भालू आदि रिंग मास्टर के आदेशों पर नाचते हैं.पशु भी 'भाव ' समझते हैं, सम्बन्ध समझते हैं ।जहाँ भावनाओं को समझा जाता है. रिश्तों की क़द्र होती है. वहां सच्चाइ होती है वहां 'प्रेम पथ' होता है . वहां भौतिक आकर्षण, भौतिक आडम्बर नहीं होता है। प्रेम और शांति के मार्ग में ही जीवन जीने की कला है अगर इतनी सी बात ज्ञानी - ध्यानी पांडव कौरवों के समझा में आ जाती तो इतिहास में "महाभारत ' न रचा जाता. विश्व युद्ध नहीं होते. राज -पाट के लिए इतिहास में घटित युद्ध के द्वारा विनाश नहीं नही हुआ होता । ये सब भाव के आभाव का ही परिणाम है।
श्री कृष्ण ने गीता में कहा है -"ईश्वर को अपनी हर चीज को समर्पित करो". ईश्वर को वही समर्पित किया जाता है जो पवित्र और शुद्ध भाव से कमाया गया हो।
यह सर्व विदित है कि धन के लिए पुरातन काल से युद्ध और महायुद्ध होते आये हैं।हत्या , लूटपाट से प्राप्त धन आत्मिक शांति नहीं दे सकता। जिस धन में असहाय, निर्बल को धोखा देने, उसके पैसे को हडपने की बदबू , गरीबों का हक़ छीन कर अपनी जेबें भरने का दंभ हो , निर्बलों के रक्तपात का रंग हो वह सुख दे सकता है पर मन की शांति नहीं. जिस धन में पसीने की महक, इमानदारी की ख्श्बू, इश्वर का आशीष नहीं होता वह धन रोग, शोक, क्लेश, असमय मृत्यु, जन- धन की हानि, अपमानित होने का भय लाता है। ऐसे धन में प्रतिष्ठा गवाने की चिंता अपयश या बदनामी फैलने का डर हर पल लगा ही रहता जो चैन की साँस नहीं लेने देता.ऐसा धन इश्वर को समर्पित करने योग्य नहीं होता।
स्पष्टतः, प्रेम जीत है। युद्ध हार है। युद्ध करके ही यह समझ में आना मूर्खता है . परन्तु निर्बल से प्रेम विरले ही करते हैं जब तक श्री राम समुद्र से अनुनय -विनय करते रहे तब तक समुद्र ने लंका पार हेतु उनकी मदद नहीं की परन्तु जब उन्होंने सम्पूर्ण समुद्र को अपने एक बाण से सुखाने हेतु तीर तरकश में डाला समुद्र मनुष्य का भेष धारण कर श्री राम के सम्मुख हाथ जोड़ कर बिनीत भाव से खड़ा हो गया " विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीती बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीती" शक्ति के भय से ही प्रीति उत्पन्न होती है .
यह भी सत्य है। प्रेम से खूंखार जानवर तक वश में हो जाते हैं शेर , हाथी, भालू आदि रिंग मास्टर के आदेशों पर नाचते हैं.पशु भी 'भाव ' समझते हैं, सम्बन्ध समझते हैं ।जहाँ भावनाओं को समझा जाता है. रिश्तों की क़द्र होती है. वहां सच्चाइ होती है वहां 'प्रेम पथ' होता है . वहां भौतिक आकर्षण, भौतिक आडम्बर नहीं होता है। प्रेम और शांति के मार्ग में ही जीवन जीने की कला है अगर इतनी सी बात ज्ञानी - ध्यानी पांडव कौरवों के समझा में आ जाती तो इतिहास में "महाभारत ' न रचा जाता. विश्व युद्ध नहीं होते. राज -पाट के लिए इतिहास में घटित युद्ध के द्वारा विनाश नहीं नही हुआ होता । ये सब भाव के आभाव का ही परिणाम है।
भाव क्षण
हृदय में
बसते हैं
कभी
सुख में कभी दुःख में तो कभी अकेलेपन में
.भावपूर्ण
घटनाएँ याद
आती है
पशु,पक्षी,
पौधे ,प्रकृति सभी समझते हैं 'भाव '
भाव
का
कोई रूप नहीं कोई रंग नहीं
भाव
मूक है वाणी नहीं
भाव
स्वर है साज नहीं
बचपन
, जवानी, बुढ़ापा
में परिवर्तित
होते हैं - भाव
जैसे
बचपन में होते हैं शुद्ध,
स्वाभाविक,निश्छल
भाव
वैसे युवा मन
में होते
हैं साहस
,शील, दया ,त्याग,प्रेम, के भाव ,
जो
होते हैं मन, बुद्धि और आत्मा
के
दर्पण।
बचपन
का
सावन , कागज की
कश्ती,
दादी
नानी की कहानी
, माँ की
लोरी
धूप
में निकलना
, टिड्डे , तितली ,चिड़िया
पकड़ना ,
गुड्डे
-गुड़ियों की
शादी , लड़ना -झगड़ना
मंदिर में
दीप , घंटी
बजाना,
टूटी
हुई चूड़ियों
से
खेलना, रेत के घरोंदे
बनाना,
युवा
-जीवन में प्रथम दृष्टि
का प्रेम।
पुष्प
वाटिका में श्री राम और सीता का
एक
दुसरे को
देखना ।
राम
के
वियोग में दशरथ का प्राण त्यागना ,
प्रह्लाद
की
पुकार पर नरसिंह अवतार
होना
राम
- भाव लिए पत्थर का पानी में तैरना
राम
-भाव लिए शिव का नीलकंठ होना
कृष्ण
भाव में मीरा का
विष अमृत
होना
कृष्ण
की
बांसुरी पर
राधा का लय
होना और
गायों में
स्वतः दुग्ध -धार
प्रवाहित होना या ,
मुरझाये
पौधों का
खिलना,
मल्हारकी
धुन पर काली
घटाओं का आच्छादित होना
यहाँ शब्द नहीं भाव थे।
इन
भावों को जीना
जीवन है।
भाव
के
अभाव में
जीवन वैसा
है
जैसे बिना आत्मा के शरीर।
भावों
का नहीं
है
कोई मोल।
इन्हें
न कोई
खरीद सकता और न बेच सकता सकता कोई ।
इन्हें
दिया और लिया जा सकता है
अनुभव
किया जा सकता है
केवल
वो
भी मात्र
एक
तरह से- भाव- पथ
पर
चलकर।
ये सभी बातें कितनी साधारण हैं परन्तु ये दिल में स्थायी निवास बना लेती हैं जिनका महत्व धन, दौलत से भी ज्यादा है.जिनमे भावनाए जुडी होती हैं . निश्छल प्रेम निस्वार्थ भाव छिपा रहता है क्या इस भाव की कीमत धन सम्पदा या यशगान से आंकी जा सकती है? नहीं .जिस प्रेम में धन लोलुपता हो उसकी जीत कभी नहीं हुई. इन चीजों का मोल केवल भावना है पैसा नहीं.यदि ये बचपन के क्षण छीन लिए जाएँ, भावनाएं मार दी जाएँ तो उनकी क्षति पूर्ती करोरों की दौलत से भी नहीं की जा सकती. ये भाव अतुलनीय है. बच्चों के इस बचपन के मासूम भाव का मरना वैसा ही है जेसे मासूम बच्चे की हत्या करना. . ये अमूल्य हैं.
उपरोक्त भावों के वर्णन से यह निष्कर्ष निकलता है कि सामाजिक दिखावा और सच्चे जीवन में आकाश -पाताल का अंतर होता है। जो सांसारिक माया ज्ञानियों के चित्त को भी हर लेती है उससे मुक्ति तो श्री कृष्ण की कृपा के आलावा और कहीं भी नहीं हो सकती । पेसे से बिस्तर तो खरीदा जा सकता हैं नींद नहीं . रोटी खरीदी जा सकती है भूख नहीं. किताबें खरीदीं जा सकती हैं ज्ञान नहीं।
ज्ञान (जानना ) या संवेदना , समानुभूति, अनुभव से आता है और अनुभव प्रेरणा से आता है बिना अनुभव हुए ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती . मात्र किताबें पढ़कर कोई भी ज्ञानी नहीं बन सकता वेसे ही जेसे रसगुल्ला मीठा होता है ये जानकर मिठास क्या होती है यह कोई नहीं बता सकता इसलिए ज्ञान प्राप्ति के लिए अनुभव का होना उतना ही आवश्यक है जितना की जीवन के लिए भोजन.
ज्ञान (जानना ) या संवेदना , समानुभूति, अनुभव से आता है और अनुभव प्रेरणा से आता है बिना अनुभव हुए ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती . मात्र किताबें पढ़कर कोई भी ज्ञानी नहीं बन सकता वेसे ही जेसे रसगुल्ला मीठा होता है ये जानकर मिठास क्या होती है यह कोई नहीं बता सकता इसलिए ज्ञान प्राप्ति के लिए अनुभव का होना उतना ही आवश्यक है जितना की जीवन के लिए भोजन.
यदि मात्र धन से आन्तरिक सुख जिसे मन की शांति कहते हैं मिलता होता तो सुख की तलाश में सिद्धार्थ अपना राज-पाट पत्नी और बच्चा छोड़ कर मात्र उनतीस वर्ष की उम्र में वन में न चले गए होते और "गौतम बुद्ध" नहीं कहलाते ?अगर ऐसा होता तो टाटा, बिरला, अम्बानी ये सब बहुत बड़े संत कहलाते
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteजय हिंद!
बहुत सार्थक आलेख!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए धन्यवाद!
dhanyavad. bhavpath par apka hardik swagat hai.
Deleteभावना में भाव ना हो तो भावना बेकार है | अति सुंदर |
Deleteबहुत सुन्दर प्रयास है आपने पूर्णतया सही कहा मैडम, आज कल के भौतिकतावादी समाज में लोगों की विचारधारा यही है की पैसा ही सब कुछ है और कुछ हद तक ये सही भी है . परन्तु एक सत्य ये भी है की, पैसा बहुत कुछ है परन्तु सब कुछ नहीं .. पैसे से बढकर हैं हमारे सामाजिक व व्यक्तिगत सम्बन्ध, हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा, हमारा चरित्र और व्यवहार ...
ReplyDeleteक्यूंकि पैसे से हम सिर्फ वस्तु खरीद सकतें हैं परन्तु ख़ुशी, सम्बन्ध और प्रतिष्ठा नहीं......
हम आपका लेख पूर्णतया सहारना योग्य है...
dhanyavaad.
DeleteNAAM toh aap jaisi nayi ubharti hui lekhika ka hona chahiye sahitya jagat me..
ReplyDeletehum toh matra ek sadharan pathak hein.....
too good
ReplyDeletewords nahi hai tareef ke lite
so emotional
and heart touching
बिल्कुल सही बात है धन से कुछःसमय के लिये सुख मिल सकता है पर परमान्द् की प्राप्ति तो ज्ञान से हि हो सकती है वह भी कैवल्य से
ReplyDeleteश्रीमद भागवत महापुरण मे व्यासजी लिखते बलवान् इन्द्रिय विद्वान्समपि कर्षति जो की आपकी बात को पुस्त करती है बडे से बडे ज्ञानी को भी माया अपनी ओर खीच हि लेती जैसे जैमिनी को खीच लिया था विश्वामित्र को भी
bhav ka sundar varanan karne ke sadhuwad mitr, yach hote huye bhii isike liya maramari hai, bade hone par bachho ka mata pita ke prati upeksha ka yah karan bhii ho sakta hai. ahm ka karan bhi yahiisikarn bete baap ko salah dete hai. yahi wah karan chhote bhaiyo ka prem dushmni me badal jata hai. sundar vishleshn ke liye sadhuwad mitr
ReplyDeleteसुन्दर विश्लेषण के लिये साधूवाद, यह अद्भुत है कि यह कारक अपनों को पराया, भाई को दुश्मन और माँ बाप को बेटो से दूर कर देता है, मुझसे आगे कोई न बढ़ जाए इसलिए अपनी लाईन बड़ी करने का काम भी यही करता है, संक्षेप में यही वह कारक है जो एक दूसरे को चैन से नहीं जीने देता. हर भौतिकवादी हमें दीखता तो सुखी है किन्तु दुःख के भारी बोझ से अभी भी लदा है. यहाँ तक कि पति पत्नी कि भेंट में भी कई साल लग जाते है. यह जरुरी है लेकिन आवश्कयता से अधिक नहीं. अधिकता होने पर यह अहम का उत्पादक भी बन जाता है. अहम ही विनाश का कारन है
ReplyDeleteYou just took me to my childhood..Great work..keep it up..Too good
ReplyDeleteBehtareen Rachna
ReplyDeleteman tadpat hari darshan ko aaj,maine tyag dai sab lok laj,man tadpat hri darshan ko aaj, aise hi bhav har insan me aa jaye to jag sundar ban jaye.
ReplyDeleteकल 30/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
ॐ. भाव से परिपूर्ण मन की अवस्था ही भावना कहलाये
ReplyDeleteअति सुन्दर ... हरे कृष्ण
बेहद सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति....शुक्रिया
ReplyDeleteभाव महत्त्वपूर्ण हैं
ReplyDeleteआप सभी सुधीजनों की प्रतिक्रियाएँ और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक धन्यवाद.
ReplyDeleteभावना जी आपके ईशवर के प्रति इस भाव की जितनी सहारना की जाये कम है.............
ReplyDelete