मुझे अपनी संस्कृति से प्यार है और आपको ?
इतना ही नहीं, जहाँ नारी को खान- पान में रोक -टोक हो. जेसे मिर्च - मसालेदार खानाही खाओ हमारे यहाँ यही परंपरा है. मीठा खाओ . खट्टा मत खाओ. जो बासी चार दिन पुराना फ्रिज में रखा हो वो तुम खाओ. तुम गैस चूल्हा जला के अपने लिए खाना नहीं बना सकती. इससे भी ज्यादा जहाँ नारी को रहन सहन की भी स्वतंत्रता नहीं हो जैसे अगर वो पति के साथ रहे तो jeans , skirt- top पहिने . सास के सामने सारी और लम्बा घूंघट. जींस नहीं पहिन सकती . उस पर भी वो अगर लाल सारी पहिने तो उससे कहा जाता है लाल सारी क्यूँ पहिन ली , पीली क्यों नहीं पहनी? नीली बिंदी लगाती है तो नीली बिंदी लगायी है लाल क्यों नहीं लगायी ? हील की चप्पल नहीं पहिनो तो हाइट कम है . पहिन लो तो ये हील की चप्पल क्यूँ पहिनी है क्या ब्यूटी कांटेस्ट में जाना है, मॉडल बनना है? अंग्रेजी में बात करो तो - अंग्रेजी बोलती है. हिंदी में बात करो तो अंग्रेजी पढ़ी लिखी नहीं है. ये सभी तो हर व्यक्ति के पर्सनल फैसले होते हैं. जिसके साथ नारी स्वविवेक से निर्णय करती ही है. उसे अपनी सुविधानुसार हक़ है अपनी बिंदी, चूड़ी, सारी,चप्पल पहिनने काया अंग्रेजी हिंदी बोलने का . अगर इतना मानसिक टार्चर रहे तो कोई जीवित केसे रहे?
ऐसी स्थिति में, जब नारी के लिए अपने ढंग से जीने तमाम तरह की पाबंदियाँ हों और उस पर उसकी ससुराल घोर पारंपरिक हो इसके साथ ही कई तरह की सामाजिक कुरीतियाँ जारी हों तब नारी का जीवन जीना मुश्किल है. हमारे समाज में स्त्रियों को घर-परिवार के मान-सम्मान का प्रतीक माना जाता है यही कारण कारण हैं अपने पति तक को अपनी मन की व्यथा नहीं बताती स्वयं ही रोटी कपडा और मकान जैसी समस्या से जूझती रहती है. क्योंकि उसे डर रहता है कि किसी भी कारण से स्त्री के मान-सम्मान या प्रतिष्ठा पर कोई सवाल उठेगा तो उससे पूरे परिवार को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा .उसी जगह पति अपनी पत्नी को मनोरंजन का साधन मानते हुए पत्नी के साथ हो रहे अन्याय से बे-खबर -"सिर्फ अपनी भावनाओ को गौड़ , प्रधान मानते हुए सिर्फ अपने और अपने परिवार के अहम् कि तुष्टि के लिए " सभी सीमायें पार करने से नहीं चूकते. नारी के लिए कोई भी कार्य तब तक सहनीय है जब तक कि उसकी अति न हो. अति होने पर तो पृथ्वी में भी भूकंप और ज्वालामुखी आ जाते हैं . फिर हम तो साधारण मनुष्य ही है. अति होने पर तो देवी भी कुपित हो काली बन जाती है फिर हम तो नारी ही है. अति होने पर शिव भी तांडव करने लगते हैं तो फिर तो हम उनके ही भक्त है. अति होने पर ही कृष्ण ने भी महाभारत रच दी थी . अतः अति सर्वत्र वर्जयेत ' होती है . अति को सभी जगह वर्जित माना गया है. नारी इस अति दुःख और संताप के अव्यक्त चक्रव्यूह में कब तक अपने आप को फंसाए रखे?
हमारे घर के छोटे -छोटे कार्यों में हम सभी की बड़ी ख़ुशी छुपी होती है. मानसिक स्वस्थ्य निहित रहता है. उदाहरण के तौर पर जब हम एक गमले में किसी पौधे का बीज डालते हैं उसमे खाद पानी डालते है और उसकी हर बात को observe करते हैं और जब एक दिन अंकुर फूटता है पत्तियां निकलती हैं तना बनता है और उसमे कलि खिल जाती है तो हमें ख़ुशी मिलती है . क्यूंकि हमें उससे लगाव हो जाता है.आज की नारी पाक कला, गृह कार्य में दक्ष, पढ़ी लिखी, सुंदर , सुशील, घर की साज सज सज्जा में निपुड, नौकरी पेशा और अपनी संतान के व्यक्तित्व विकास के लिए पूर्णतः सजग है.कहने का तात्पर्य है उससे इन कार्य दक्षताओं को न छीने.
अपने स्वार्थ कि पूर्ती के लिए ,अपने आप को सुयोग्य साबित करने अपने को काम में व्यस्त दिखा कर , और अपने दोस्तों का नेटवर्क बढाकर पुरुषो ने सब कुछ अपने ही हाथ में ले लिया है. ऐसा करके पुरुष ने कौन सी विजय पताका लहरा दी हैं ? और तो और पूरी पारिवारिक, आर्थिक , भावनात्मक और सामाजिक व्यवस्था ही गड़बड़ा दी हैं. छोटी छोटी उपेक्षा, असहयोग और अपमानजनक बातें या घटनाएं हादसा बन मन को अशांत ही नहीं करते, बल्कि अनेक अवसरों पर भय और सदमे का कारण भी बनते हैंलेखिका कमला दास ने 'माय स्टोरी' में विवाह संबंध, प्यार पाने की अपनी नाकामयाब कोशिश औऱ पुरुष से मिले अनुभव को खुलेपन से व्यक्त किया है. इसके साथ2 ही स्त्री की बाहरी और आंतरिक दुनिया को, उसके प्रेम और दुःख को अभिव्यक्त किया है.
आधुनिकता की झूठी दौड़ में पता नहीं पुरुष क्योंफिल्मी कलाकारों के ग्लैमर के चक्कर में रहते ?हिंदी सभ्यता का अनुसरण करने वाली पत्नियाँ अभी भी अंग्रेजी का अनुसरण करने वाली पत्नियों की तुलना में हीन क्यों है ?पति के असहयोगात्मक रवैये से हिंदी पत्नियाँ जीवन के संघर्ष में , परेशानियों का सामना करते हुए आत्मविश्वास तो खो ही देती हैं, जिससे सामान्य हालात में भी उनके दिल और दिमाग में हानि होने का अनजाना भय का भूत बना रहता है. उनके लिए व्यावहारिक रूप से पति का साथ और भरोसा ही अहम होता है, लेकिन आत्मविश्वास की कमी से मन में घबराहट और डर बना रहता है जो कि मन को निर्भय और बलवान बनाने में बाधक होता है. क्या अंग्रेजी पढ़ना स्टेटस सिंबल है और हिंदी पढ़ना हीन ग्रंथि का प्रतीक? ये तो सर्व विदित है कि अंग्रेजी अनुसरण करने वाले पति को हिंदी पत्नि में अधिक दिलचस्पी नहीं , लेकिन क्या कभी ये अंग्रेजी अनुसरण करने वाले पति यह जानने की इच्छा रखते हैं कि हिंदी सभ्यता का अनुसरण करने वाली उनकी पत्नि जो कि उनकी उनकी पीढ़ी की ही है, अच्छी अंग्रेजी जानती है , अच्छी फिल्म और गुनी कलाकारों से प्रभावित होने के बावजूद भी अपनी संस्कृति पे क्यों चल रही हैं?
बहुत कम देखने मे आता है की नारी का दुश्मनपुरुष हो नारी की दुश्मन नारी ही होति है चाहे वह सास के रूप मे हो ननद के रूप मे या फ़िर देवरानी जेठानी के रूप मै !पति पत्नी के झगडे के पिछहे सास या अन्य महिला ही होती है नारी को मालुम होने पर भी शादी शुदा पुरुष से विवाह करके एक नारी क घर बरबाद करती है नही है तो फ़िल्म की ८०% हिरोइन इसकी प्रत्यक्ष प्रमाण है श्रीदेवी करीना कपूर आदि!अगर सभी नारिया नारियो क परस्पर सहयोग करे तो पुरुष की हिमत ही न हो नारी को परेशान करणे की !
ReplyDeleteIs it so?? I never imagined..great wordings..
ReplyDeleteआपकी बात बिल्कुल सही है अभी भारत मे एसा ही हो रहा है एक घर मे तिइन बहिने है दो तो आधुनिक फ़िल्मी ग्लेमर की तडक भडक वाली एक सीधी साधी लेकिन पतिव्रता भारतीय संस्कृति मे विश्वास वाली लेकिन लोग उसे पसंद नही करते यः तक की उसके मा बाप भी लेकिन संयोग से पति उसकी विचारधारा वाला है अतः उसे दिकत नही लेकिन उसकी पीहर मे कोइ पूछ् नही ! दुनिय केवल तडक भडक देखती है उसके सीधे पवित्रता को नही यह कलियुग क प्रभाव है मेरे साथ काम करने वाली एक शिक्षिका ने कहा सर आप मुझको बहिनजी नही मैडम कहा करिये मैने पूछ क्यो उसने कहा मै कोइ बुढिया थोडे ही हु बहिनजी क मतलब् बुढिया शिक्षा होती है बताये पढि लिखी नारिया भी एसी ही है ओर कहा सर आपको लडके सब् गुरुजी कहते है गुरुजी तो बुढेहोते है बताये अब क्या कहे हिन्दुस्तान को आपकी बात १००% सही है लेकिन भारतीय नारियो क कोइ मुकाबला नही वही पवित्र सची व सरल है उसमे ही हम मा बहिन के दर्शन भी कर सकते है
ReplyDeleteकह भी गया है की राजा की पत्नी गुरु की पत्नी मित्र की पत्नी भाई की पत्नी ओर पत्नी की माता ये पाञ्च माताये होती
इससे भी आगे कह गया है मातृवत् परदारेषु दूसरो की पत्नी माता के समान होती है पर आज भारत का युवा वर्ग पत नही कहा भातक गया है कहने पर कहता है जनरेशन गेप् है
भारतीय नारी आज भी महान है कल भी रहेगी
आपकी बात बिल्कुल सही है अभी भारत मे एसा ही हो रहा है एक घर मे तिइन बहिने है दो तो आधुनिक फ़िल्मी ग्लेमर की तडक भडक वाली एक सीधी साधी लेकिन पतिव्रता भारतीय संस्कृति मे विश्वास वाली लेकिन लोग उसे पसंद नही करते यः तक की उसके मा बाप भी लेकिन संयोग से पति उसकी विचारधारा वाला है अतः उसे दिकत नही लेकिन उसकी पीहर मे कोइ पूछ् नही ! दुनिय केवल तडक भडक देखती है उसके सीधे पवित्रता को नही यह कलियुग क प्रभाव है मेरे साथ काम करने वाली एक शिक्षिका ने कहा सर आप मुझको बहिनजी नही मैडम कहा करिये मैने पूछ क्यो उसने कहा मै कोइ बुढिया थोडे ही हु बहिनजी क मतलब् बुढिया शिक्षा होती है बताये पढि लिखी नारिया भी एसी ही है ओर कहा सर आपको लडके सब् गुरुजी कहते है गुरुजी तो बुढेहोते है बताये अब क्या कहे हिन्दुस्तान को आपकी बात १००% सही है लेकिन भारतीय नारियो क कोइ मुकाबला नही वही पवित्र सची व सरल है उसमे ही हम मा बहिन के दर्शन भी कर सकते है
ReplyDeleteकह भी गया है की राजा की पत्नी गुरु की पत्नी मित्र की पत्नी भाई की पत्नी ओर पत्नी की माता ये पाञ्च माताये होती
इससे भी आगे कह गया है मातृवत् परदारेषु दूसरो की पत्नी माता के समान होती है पर आज भारत का युवा वर्ग पत नही कहा भातक गया है कहने पर कहता है जनरेशन गेप् है
भारतीय नारी आज भी महान है कल भी रहेगी
Thanks For encouraging Pro. Pawar.
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