एक हिंदु विवाह
भाग्य राजा को भिखारी और भिखारी को राजा भी बना सकता है. उदाहरण के तौर पे किसी का जन्म अमीर घर में होता है और किसी का ग़रीब घर में होता है . जिसका जन्म अमीर घर में होता है उसे ज़िंदगी में किसी चीज़ की कमी नहीं होती और जो ग़रीब घर में जन्म लेता है वो ज़िंदगी भर अभावों से लड़ता रहता है. उसी प्रकार जैसे किसी लड़की का विवाह धन संपन्न घर में हो जाता है तो वो बैठे बैठे राज करती है और अगर नहीं होता है तो उसे अपने पति बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों का पालन पोषण करने हेतु घर से बाहर निकल कर काम करना पड़ता है साथ ही घर की जिम्मेदारी बोनस में मिल जाती है.जब तक आर्थिक विवशता न हो तब तक कौन चाहता है नौकरी करना. धरती सी सहन शील नारी अपने परिवार के लिए बाहर धनोपार्जन करती है और घर में आकर रोटी बनाती है. अपने बच्चों का ख्याल रखती है .बुजुर्ग माता-पिता की यथा योग्य सेवा करती है. उसे एक ही दिन में कई भूमिकाएं निभानी पड़ती है . माता की ममता , पिता की कर्तव्य निष्ठता , बहिन की परवाह, भाई जेसी जिम्मेदारी, बेटे जेसा साहस , गुरु जैसी दिग्दार्शिता. इसके अलावा रोटी, कपडा और मकान की समस्याओं का समाधान तो करती ही है.
निवेदिता का विवाह ऐसे घर में हुआ जो कि आभाव ग्रस्त था. जहाँ उसके नौकरी किये बिना जीविकोपार्जन नहीं हो सकता था. पढ़ी -लिखी सुशिक्षित होने कि वजह से निवेदिता को प्रतिष्ठित नौकरी प्राप्त हो गयी . अन्यथा अपने योग्य नौकरी न मिलते देख महिलाएं भी हर कहीं नौकरी स्वीकार नहीं करती. परिश्रम के साथ साथ जहाँ कार्य करने का माहौल अच्छा रहे. साथ में कार्य करने वाले सहयोगी सकारात्मक रहे संगठित रहे, नारी की प्रतिष्ठा पे आंच नहीं आये और कार्य को पूजा समझा जाये .ईमानदारी से उसके कठिन परिश्रम और समर्पण का पारिश्रमिक दिया जाये वहीँ नारी को नौकरी करने में अनुकूलता मिलती है . उसी तरह घर में भी अनुकूल माहौल होने पर ही वह दोहरी जिम्मेदारी सम्हालने योग्य होती है. यदि पति और ससुराल प्रतिकूल हो तो नौकरी करना वेसे ही जेसे -"दो पाटों के बीच में जीवित बचा न कोई". इस दुनिया में सकारत्मक और नकारात्मक दो ही शक्तियाँ विद्यमान हैं इसलिए कहीं काम करके सुख की अनुभूति होती है और कहीं घुटन की अनुभूति होती है.
निवेदिता के मायके में धनोपार्जन का कोई श्रोत नहीं था न तो उसके पिता और न ही उसके भाई की नौकरी थी और पति को धन कि जरुरत थी अतः पति के बार बार मायके से धन लाकर देने की जिद पर भी वो मायके से धन लाकर अपने पति को नहीं दे सकती थी . निवेदिता ने विवाह के कुछ समय बाद ही अच्छी नौकरी कर ली और अपनी कमाई का पाई - पाई सिर्फ अपने पति और उसके परिवार की सेवा में अर्पण कर दिया. हालाकि उसके पति ने कभी समय पर उसकी आर्थिक मदद नहीं की. बारह महीने के सभी त्योहारों में निवेदिता के मायके वालों से से उसके परिवार के लिए उपहार मांग पूर्ती करवाई उसे किसी त्योहार में कोई उपहार नहीं मिला. निवेदिता की तनख्वाह छीनने के लिए निवेदिता के पति ने आंसू बहाए , बिना ये सोचे, समझे कि उसने तो नौकरी ही इसलिए की थी कि वो आर्थिक रूप से मदद कर सके . पर उसका पति सोने का अंडा देने वाली मुर्गी के एक ही दिन में सारे अंडे खाना चाहता था. फलस्वरूप उसने मुर्गी को ही काट डाला.
निवेदिता से पैसे मिलते ही उसका अपमान कर तुरंत उसे घर से भगा दिया ये कह कर कि मुझे कुछ जरूरी काम है तुम अपने मायके में रहो. निवेदिता यह सुनकर अवाक् रह गयी कि जहाँ उसको उसको सम्मान मिलना चाहिए था वहां उसको घोर अपमान मिल रहा है. जहाँ उसको प्रेम मिलना चाहिए था वहां उसको घृणा मिल रही है. जब उसे उसके पति का साथ चाहिए था तब उसे अकेले छोड़ा जा रहा है . फिर भी उसने अपने पति को माफ़ करते हुए,पति की कोई मजबूरी हो सकती है ऐसा समझते हुए ,पति के झूठे आंसु बहते देख, मानसिक और भावनात्मक दबाव में आकर मायके में रहना स्वीकार कर लिया. बिना पेसो के तो कोई नहीं जी सकता. अतः उसने अपने पति से संपर्क करने की बहुत कोशिश की कि - मेरी थोड़ी मदद कर दो मेरे पास बिलकुल पैसे नहीं है. परन्तु ऐसी स्थिति में जब निवेदिता को अपने पति का पूर्ण साथ और सहयोग चाहिए था उसके पति और ससुराल वालों ने तुरंत संपर्क ख़त्म कर लिया और वो जहाँ रहते थे वो मकान भी बदल लिया . ऐसी मानसिक संताप की स्थिति में उसे अब अपने जीवन का एक एक क्षण बोझ लग रहा था. उसकी नौकरी करने लायक मानसिक स्थिति ही नहीं बची थी.ये उसकी समझ से परे था कि उसका भाग्य उसे किस दोष की सजा दे रहा है?
पति के दोस्तों से मिली जानकारी के अनुसार निवेदिता के पति ने , निवेदिता के कठिन परिश्रम, ज्ञान , इमानदारी और समर्पण से कमाए हुए पैसों का उपयोग शराब पीने में और लड़कियों के साथ समय बिताने में कर लिया था .उन्होंने यह भी बताया कि निवेदिता के पति का मन एक ही लड़की के साथ रहते -रहते भर जाता है. वो एक लड़की के साथ छः महीने से ज्यादा नहीं रह सकता . अब उसके पतित पति अपनी प्रेमिका के साथ अनैतिक रूप से रहते हैं और निवेदिता पर लांछन लगाकर कि वो मुझे छोड़ कर भाग गयी उसके बारे में बात करने से भी कतराते है. और निवेदिता को छल-बल और दल से तलाक कि पहल करने के लिए उकसा रहे हैं . ताकि उसे उसकी पत्नी होने का अधिकार न मिले .साथ ही नयी लड़की से दहेज़ की मोटी रकम लेकर पुनः शादी करके अपनी गृहस्थी बसा सके. वो पूर्णतः भूल चुके हैं निवेदिता की महानता को - उन्हें नारी सिर्फ पैसा और मनोरंजन प्रदान करने वाली मशीन लगती है. उन्हें नारी की महानता का यदि तनिक भी आभास होता तो सोचते कि इस धरा से जिस दिन नारी की महानता ख़त्म हो जाएगी उस दिन ये धरा अस्तित्व विहीन हो जाएगी .
मित्रों - आप ही बताइए क्या ये निवेदिता की आत्म हत्या के लिए बनायीं जाने वाली अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं है? जिनकी वजह से मानसिक दबाव में आकर नव- विवाहिताएं आत्महत्या कर लेती है. जो वास्तव में आत्म -हत्या नहीं हत्या है?
thanks
ReplyDeleteThanks
ReplyDeletenaari per atyachaar karne waale purush swaym maansik biklangta ka parichay dete hai .......
ReplyDeleteभाव पथ पर आपका स्वागत है.:)) सतरूपा दीदी .समाज से इस विकलागता को हटाने के लिए और सुदृढ़ व्यक्तित्व के विकास के लिए आप सबका सहयोग मुझे साझा करे.
Deletesatrupa jee ke baato se purntaya sahmat hoon...
Deleteभाव पथ पर आपका स्वागत है.:)) सतरूपा दीदी .समाज से इस विकलागता को हटाने के लिए और सुदृढ़ व्यक्तित्व के विकास के लिए आप सबका सहयोग मुझे साझा करे.
ReplyDeleteइस कहानी से तो एसा ही लगता है विवाह सौभाग्य के स्थान पर दुर्भाग्य है पर सभी को एक तराजू मे भी नही तोल सकते पर जो व्यक्ति संस्कार हीन हो वो एसा ही करता है निवेदिता के साथ जो कुछ हुआ वह शतप्रतिशत गलत है अन्य किसी निवेदिता के साथ ऐसा न हो इसका प्रयास कारण चाहिये! आज वैसे ही समाज मे लडकियो की कमी है अगर पुरुष अभी भी नही संभले तो वो दिन दूर नही जब दुलहन को तरस जायेङ्गे अतः हमे अपनी संतानो को नैतिक आचरन की शिक्षा देनी चाहिये इसमे मा की भूमिका सबसे उपर है शस्त्रो मे लिखा है--
ReplyDeleteदुशीलो मातृदोषेण पितृदोषेण मूर्खता !
कार्पण्य वंश दोषेण आत्मदोषाद्दरिद्रता !
अतः जब भी पुत्र इस प्रकार की हरकत करे माता को तुरन्त अपनी पुत्रवधू का साथ देना चाहिये ! परन्तु दुर्भाग्य ऐसी स्थिति होती ही क्यो है बहुत से मामलो मे तो आपसी समज की कमी के कारण ऐसा होता है ! मेरे एक शिष्य ने भी ऐसा ही किया ओर जब् मुजसे सलाह लेने आया तो मैने दो तूक् कह दिया अगर तुम संबन्ध विच्हेद चाहते हो तो इस विषय मे मेरे पास फ़िर् कभी मत आना अगर समजोते की बात करते हो तो मे इसमे तुम्हारी सहायता कर सकता हु पर दुर्भाग्य से ऐसा नही हो सका !अतः बडे बुजुर्गो को हमेशा बडो की भूमिका निभानि चाहिये !इस पर याहि कह जा सकता है बेचारी निवेदिता निर्दोष होते हुए भी कष्ट भोगती है एक तो ऐसे लडको क पुनः विवाह ही नही होना चाहिये पर खेद की समाज के कुछः लोग ऐसे लोगो को अपनी बच्ची देने को तैयार बिथे रहते है इस पर तत्काल रोक लगनि चाहिये !आगे अब मुजसे तो लिखा नही जायेगा दुष्टो क साथ दिया नही जायेगा! हे