Saturday, March 9, 2013

तमसो मा ज्योतिर्गमय






'परिधि' या'पिंजरा' वह होता है जिसमे पालतू पशु- पक्षियों को बंद किया जाता है .'अध्यात्मिक' अर्थ में पिंजरा 'शरीर' को भी कहा जाता है जिसमे 'आत्मा' कैद होती है पिजरे में  बंद सभी जीव जंतुओं को 'मुक्ति की आकांक्षाहोती हैकुसंगति हमेशा कुसंस्कार- हिंसा, नशा,स्वार्थ,रुढ़िवादी विचार को जन्म देती है संस्कार पीढ़ीयों से हस्तांतरित होते हैं. कुसंगति ही सभी दुर्गुणों की जड़ होती है.कुसंस्कारों का परिमार्जन प्रायश्चित्त और पश्चाताप से भी संभव नहीं. कुसंगति के सामान नरक नहीं
आधुनिक जीवन शैली को जीता हुआ मानव  कर्ज,  कुरीतियाँ, कुसंस्कार , झूठ , छल कपट आदि कई बंधनों में बंधा होता जिससे  मुक्त होने  की आकांक्षा तो वह रखता है परन्तु भरसक प्रयत्नों के बाद भी मुक्त नहीं हो पातासर्वेश्वरदयाल सक्सेना की  कविता इस सन्दर्भ में - 


            
चिडि़या को लाख समझाओ,
कि पिंजड़े के बाहर
धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,
वहॉं हवा में उन्हें
अपने जिस् की गंध तक नहीं मिलेगी।
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहॉं कटोरी में भरा जल गटकना है।
बाहर दाने का टोटा है,
यहॉं चुग्गा मोटा है।
बाहर बहेलिए का डर है,
यहॉं निर्द्वंद्व कंठ-स्वर है।
फिर भी चिडि़या
मुक्ति का गाना गाएगी,
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,
पिंजरे में जितना अंग निकल सकेगा, निकालेगी,
हरसूँ ज़ोर लगाएगी
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।


भौतिकवाद या ९९ के फेरे ने (पैसे कमाने की प्रतियोगिता ने ) आध्यात्मवाद के अस्तित्व को मिटा दिया है.  दैवीय चेतना , संवेदना कितनी ही बार अंदर की आध्यात्मवाद के मजबूत घेरे से बाहर नहीं जाने हेतु हमें मार्ग दिखाती है . आध्यात्म रुपी इस लक्ष्मण रेखा को पार न करने के संकेत देती है.हर  बार यह अनुभूति कराती है कि  -- "इस घेरे के बाहर दुनिया कठोर है.निष्ठुर है.ईश विनय की परिधि में ही रहो
यहां ईश्वर रखवाला है. निस्वार्थ प्रेम करने वाला है.सत् -चितआनंद प्रदान करने वाला है.इस परिधि केबाहर रोजी रोटी के लिए संघर्ष है.अपना जीवन बचने,अस्तित्व बनाने के लिए कठोर संघर्ष है. कदमकदम पर नकाब पहने हुए चेहरे ,जो लुटेरे हैं ,शिकारियों का भय है.ऐसे बहुरूपियों की हाथों की कठपुतली मत बनो. मृग तृष्णा में मत राह भूलो.ईश राह में स्वतंत्रता है,शांति, प्रेम आनंद है. भौतिकवाद रुपी सोने के पिंजड़े में कैद मत हो.भौतिकता की प्रतियोगिता में मानव मूल्यों की अवहेलना करनी पड़ती है." परन्तु  जीवन -मृत्यु ( आध्यात्म और भौतिकवाद) के प्रश्न पर भी मनुष्य परमात्मा के निस्वार्थ प्रेम आनंद और आध्यात्मवाद की परिधि से निकल जाता है और भौतिकवाद के पाश में जकड जाता है.

यह  सत्य है कि मनुष्य  सामाजिक प्राणी है.परन्तु यह  भी असत्य नहीं है कि वर्तमान परिद्रश्य में  'सभ्य'  उसे ही कहा जाता है जो सामान्य व्यवहारिक बुद्धि का सदुपयोग नहीं करते हुए नित नवीन चतुर प्रयोगों को छल - कपट के साथ अपनी स्वार्थ -साधना  करता  है.जो भौतिकवाद समाज में सफल है.

जीवन की दौड़ में सही को सही और गलत को गलत कहने वालाव्यक्ति  'कूटनीति' और 'राजनीति' जानने वाले व्यक्ति की तुलना में कहीं दूर रह जाता है.मानव की  स्वार्थवादिता ने  मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं को निर्बल करने की चेष्टा की है वहीं मानवीय रिश्तों के रूप को भी परिवर्तित किया है.सभी सुखी, निरोगी रहे ,विश्व का कल्याण हो प्राणीयों में सद्भावना हो" इस प्रकार के उच्च विचार रखने वाले अपने हितों की तिलांजलि देने वाले मानव के मूल स्वाभाव " परमार्थ " की रक्षा करने हमारे भारत के ही संत है .

भारत की इसी महान संस्कृति के कारण भारत को 'जगदगुरु' कहा  गया है. "तुलसीदासजी, मीराबाई, कबीरदासजी ,रहीम" आदि ने  सदप्रवत्ति- संवर्धन हेतु काव्य प्रतिभा  स्वर-साधना का उपयोग किया था.परन्तु हम आज यही मार्गदर्शन या जीवन अनुभव-सार अनदेखा कर चुके हैं.        

 "परहित सरिस धर्म नहीं भाई,परपीड़ा सम नहीं अधमाई" -जैसे सुविचार और सुसंस्कार रखते हुए भी कलयुग के प्रभाव में आता  है और अपने अमूल्य मानव जीवन को भौतिकता की अंधी दौड़ में बिता कर नष्ट क़र देता है .मेरी ईश विनय यही है कि विश्व को शांति का मार्ग दिखने वाला  'भारत 'पुनः " असतो मा सद्गमयतमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्युर्मा अमृतं गमय " के पथ पर अग्रसर होवे तथा हमारे देश में पुनः  सुसंस्कार और सुज्ञान का प्रकाश फैला दे.


5 comments:

  1. महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ...!

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  2. आपको महाशिवरात्रि की बहुत शुभकामनाये

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  3. आज हम अपनी संस्कृति और संस्कारों को भौतिक वस्तुओं को प्राप्त करने की अंधी दौड़ में भूल चुके हैं. रिश्ते/सम्बन्ध/नैतिकता पैसों के बोझ तले दब चुके हैं. आपने बहुत सुन्दर और सार्थक प्रश्न उठाये हैं, लेकिन आज हम स्वयं इनका कितना अनुसरण करते हैं? इन हालात को बदलने के लिए हमें अपनी सोच और मानसिकता को बदलना होगा, तभी कुछ हो सकता है...बहुत सार्थक आलेख..
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!

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  4. बहुत अच्छा ... आप हमेशा दिल से लिखा है ..
    मैं हिंदी में लिखने की कोशिश की

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  5. Bahut achhe vichar hain. Hamaare andar susankaaron, suvicharon ki ek paridhi hai. Hamara shareer bhi ek paridhi hai. Atma ka chakra bhi ek paridhi hai, par maanav swabhaav bhi parmaatama ne aisa banaya hai jo har paridhi ko laangh jana chahta hai.

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