पृष्ठ
मुख पत्र
आध्यात्मिक
मुक्त छंद
सामाजिक समस्याएं
समसामयिक
Bhavana
Thursday, August 9, 2012
हे
नाथ तुम्हे में भूलूँ ना
!!
जल में थल में दूर गगन में
,
सुख में दुःख में,भीड़ सघन में
हे नाथ तुम्हे में भूलूँ ना!
दे दो इतना अंतर बल,
हूँ कभी ना विचलित भूले से !
तुम हो मुझमे और तुममे में,
जैसे कस्तूरी मृग अंतर में !
1 comment:
harmeetpawar
November 2, 2012 at 9:23 AM
jai ho..:)
too good
Reply
Delete
Replies
Reply
Add comment
Load more...
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
jai ho..:)
ReplyDeletetoo good