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'द्वन्द' और 'मंथन' से 'अतृप्त' अंतस
ढूंढता है बस तेरा ही आश्रय
जीवन व्यथित , सांसे क्षणिक
क्या लाये थे क्या ले जाएंगे.
भटकता है मन फिर भी जगत में
अपने अन्तर में समेट लो
ज्योति से परम -ज्योति कहलाऊं
अब क्यूँ नहीं
छुड़वाते 'झंझावात' जगत के,
और ये संघर्ष समय के ।
पर शाश्वत हो तुम .
जहाँ सुंगंध तुम और पुष्प हूँ मै
जहाँ प्राण तुम और शरीर हूँ मै ,
जहाँ स्वर तुम और वीणा हूँ मै .
जहाँ सूत्र तुम और मोती हूँ मै
जहाँ प्रकाश तुम और दीपक हूँ मै
जहाँ ज्ञान तुम और ग्रन्थ हूँ मै
तब ,'अ' हट जाए 'अहम्' से
और 'मै' मिल जाये तुममें
तब बन जायेगी 'आत्मा' , 'परमात्मा'
विलीन हो कर तुम्हारे अस्तित्व में
ज्यो सरिता समां जाय सागर में
ज्यो किरणे समा जाय सूरज में.
जब मिल जाओ तुम, हे जगवंदन !
अश्रु गंगा जब पग धो जाये,
विलीन हो जाये सब 'विकार' तुममे
तब न होगा 'अहम' का बोध
वहां होंगे 'तुम' मुझमे और 'मै' तुममे
और तब कहलायेंगे 'मै 'और 'तुम' 'हम' .
तब वहां 'अ' हट जायेगा और रह जायेंगे सिर्फ 'हम'
ज्योति होगी फिर परम-ज्योति
जब प्राण तन से निकलेंगे
और तुझमे समां जाएंगे
फिर न होगी संसार की आस
और न होगी कोई चाह ।
मैं निःशब्द.....भाव की गहनतम अभिव्यक्ति...
ReplyDeletebahut sundar panktiya hein nice very nice...
ReplyDeletehey iswar jitna mai teri lilao ko dekhta hu utna hi achambhit ho jata hu aur tujhme kho jata hu aur tujh par vishwas bad jata hai.....
बहुत गहन और भक्तिमय अभिव्यक्ति...
ReplyDeletetoo good speechless............. u r soo deep thinker
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ।
ReplyDeleteसादर
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‘जो मेरा मन कहे’ पर आपका स्वागत है
very nice lines...keep it up
ReplyDeleteOm.. Sundar abhivyakti..Hare krishna
ReplyDeleteExcellent piece of writing! Its a amalgamation of nature, body, materialism and spirituality that display the ego of post-modern world. It has a sense of spirituality in excellency as Emerson has in his poem " Bramha". I salute the lady Emerson of India.
ReplyDeleteJahaan pratipal parivartan........bahut saarthak ant.....parivartan ke bandhan se vahi param satta mukt kara sakti hai.
ReplyDeletesundar, gmabhir kavita, utam shabd chayan
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबेहतरीन रचना..
:-)
sabdo ki sundar lekhni se ahm ki saty ta ka sodhn kar jeewn ke parma nad ki tarf lejati kawita......
ReplyDeletesabdo ki sundar lekhni se ahm ki saty ta ka sodhn kar jeewn ke parma nad ki tarf lejati kawita......
ReplyDeleteSundar rachana kavita me adwaitvad ka sundar varnan hua hai
ReplyDeleteशब्दों ने की ध्वनी का नाद मन में गूंज रहा है ,बहुत खूब |
ReplyDeleteaa hat jaye aham se .... aur main mil jaye tum se:)
ReplyDeletebahut hi behtareen....
kash aisa ho pata
likha to badhiya hai
ReplyDeletebas.. antarnad aanand ka ho
नवधा भक्ति में समर्पण एक अनिवार्य तत्व की तरह है...यह कविता इसी में रची बसी है। संत परंपरा में भी रैदास प्रभु को चन्दन और खुद को पानी मानकर परम आनंद की सुगंध महसूस करते हैं...। समर्पण प्रेम की पराकाष्ठा ही तो है, वह चाहे लौकिक स्तर पर हो या अलौकिक....। आपकी अभिव्यक्ति सहज है और भाव भी ग्राह्य....बधाई
ReplyDeleteआप सभी की प्रतिक्रियाएँ और प्रोत्साहन पाकर मन -मंदिर में बसे देवता को भाव पुष्प समर्पित करने हेतु शंख नाद गूँज उठा।
ReplyDeleteयहाँ उपस्थित सभी सुधीजनों का हार्दिक धन्यवाद.
अहम् के नाश से सत्य से साक्षात्कार हो सकता है।
ReplyDeleteNice 💯
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