Thursday, September 6, 2012

परिवर्तन : शाश्वत सत्य

परिवर्तन: शाश्वत सत्य

"सभी सत्य पर चले  ज्ञान के प्रकाश से अपने मन का हर एक कोना प्रकाशित रखे , हे प्रभु हमारे परिवार, समाज और देश को ही नहीं दुनिया को भी अंधकार से दूर ले जाने वाले  ऐसे ज्योतिर्मय पथ पर ले चले. "

हमारे देश में कई ऐसे महापुरूष हुए हैं, जिनके जीवन और विचार से हम सभी को बहुत कुछ सीखने को मिलता है। उनके विचार ऐसे हैं कि निराश व्यक्ति भी अगर उसे पढ़े तो उसे जीवन जीने का एक नया मकसद मिल सकता है।

 इन्हीं में से एक हैं स्वामी विवेकानंद। उनका सन 1863 को हुआ था। आज यानी 4 जुलाई को स्वामी विवेकानंद के स्मृति दिवस के मौके पर हम उनके अनमोल विचारों को आपके साथ साझा कर रहे हैं।

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। आपके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। 'स्वामी विवेकानंद' नाम उनको उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने दिया था। अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मलेन में आपने भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया, तथा वेदांत दर्शन का प्रसार पुरे विश्व में किया। आपने समाज के सेवा कार्य के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।




          हमारे भारत देश में अध्यात्मिक ज्योति को  अखंड ज्वाला बनाने वाले साधू संत समय -समय पर अपने कृपा पात्रों पर कृपा स्वरुप चमत्कार बरसाते आये हैं। साधू अर्थात सद्गुण संपन्न  सज्जन और दुर्जन अर्थात दुर्गुण संपन्न  दुष्ट।हमारे मन में  अच्छाई और बुराई  का द्वन्द  हमेशा चलता रहता है जैसे साधू और   और शैतान पुरातन काल से  द्वन्द युद्ध करते आये  है। ये दोनों ही अलग-अलग प्रकृति के होते हैं। इन  दोनों में कोई मेल नहीं  हो सकता।  एक कहे जीवन तो दूसरा मृत्यु। एक कहे  काशी  तो दूसरा कसीनो।एक कहे दिन तो दूसरा कहे रात। 
यदि संगोग वश दुर्जन और सज्जन का मेल हो भी जाये तो  दुर्जनों का साथ सज्जनों पर वैसे ही कलंक का कारण  बनता है जैसे 'काजल की कोठरी' में घुसने पर  काजल  की कालिख लगे बिना बाहर आना मुश्किल ही नहीं असंभव होता है।

अच्छे या बुरे संस्कारों से ही  ही सज्जन या दुर्जन व्यक्ति का चरित्र निर्माण  होता  है, संस्कार परिवार से, पीढ़ीयों से हस्तांतरित होते हैं  जिनको परवरिश के समय  परिमार्जित करने का कार्य परिवार का होता है।  दुर्जनों की कुसंगति ही दुर्गुणों की जड़ होती है.  जो कुसंस्कार लाती है। ये  कुसंस्कार परवरिश में  कमी परम्परगत कुरीतियों के चलन  या पालन -पोषण में  लापरवाही  से   उपजते हैं . ये  हिंसा, नशा ,स्वार्थ,रुढ़िवादी विचार को जन्म देते  है और सज्जनों को मूर्ख बनाने का काम करते हैं वैसे ही  जैसे- हिरन्यकश्यप,   और होलिका ने भक्त प्रह्लाद को मूर्ख बनाना चाहा . जैसे रावण  ने सीता को ब्रह्मण का भेष बनाकर मूर्ख बनाना चाहा। जैसे  कंस ने पूतना  को भेजकर कृष्ण को मारना चाहा .परन्तु साधू और शैतान की लड़ाई में शैतान कभी नहीं जीता। ये सभी  खुद ही समूल नष्ट हो गए। 
           जब  कुसंस्कारों  क़े ज्यादा देर तक जड़ जमाये रहने पर उनका परिमार्जन प्रायश्चित्त और पश्चाताप द्वारा   संभव नहीं होता तब उनके समूल विनाश के लिए   दैवीय अवतार या  परम शक्तिमान  का अवतार होता है।
 "जब जब होई धरम की हानि  बाढहि  असुर  अधम अभिमानी।
तब तब धरि  प्रभु विविध शरीरा, हरहु कृपानिधि सज्जन पीरा।।" 

कुसंगति  रुपी  दैत्यों की  संगति के  समान जीवन में कोई नरक   नहीं होता. इसलिए भूल से भी कुसंगति  के शिकंजे  में न आने की शिक्षा और  चेतावनी  अनुभवियों , हमारे बुजुर्गों द्वारा  दी जाती रही है। बुरे और अच्छे मे भेद समझाया जाता है। विशेषतः बालिकाओं  को उनके माता-पिता,अध्यापक सदैव अच्छे बुरे में अन्तर  जानने , जीवन को समझने , परखने और सहने उन्हें  सहनशीलता, सामंजस्यता , मधुरता , साहस , शील, का पाठ हृदयंगम कराते रहे  हैं , चूँकि  कन्या एक देहरी पर रखे एक  ऐसे दीपक के समान होती है जो घर के अंदर और बाहर  दोनों तरफ प्रकाश करती है वह  पति और पिता दोनों कुल को तारने वाली  होती है  . पुत्री रूप में पिता को,माता रूप में पुत्र को, पत्नी रूप में पति को,और बहिन के रूप में भाई को सन्मार्ग  की  ओर ले जाने का मार्ग प्रशस्त करती है  . इसके साथ ही उसे  अपने  नारीय आलोक से सांस्कृतिक, सामाजिक   क्षरण  की कालिमा  को दूर करने , विपरीत परिस्थियों  का सामना करने सत्य , पराक्रम, साहस, और निर्भयता  के शस्त्र  का  उपयोग  करती है  ।वर्तमान  समय ये शस्त्र  किसी नारी  को सीता , सावित्री दुर्गा माँ के समान  शक्तिपुंज  बनाने में समर्थ हैं.               

               यह सर्वमान्य तथ्य है  कि  विरुद्ध प्रकृति में  युद्ध और समान प्रकृति में  आकर्षण होता है । परन्तु  सत्य  हमेशा शक्तिशाली होता है. जिसके पास  सच्चाई की शक्ति  होती है उसे किसी बात का भय नहीं होता।  इसके विपरीत जो झूठ बोलने   वाला , झूठा नकली काम करने वाला  होता  है  वो ही छल बल पूर्वक दूसरों को ठगने  और लूटने के लिए चाटुकारी करता है .मृदु भाषी बनकर सामने से तो बहुत कोमल व्यव्हार करता है  और पीठ पीछे चुरी भोंकने वाला  होता  है। जैसे की बिच्छू का अग्रभाग यानी मुंह  तो बहुत कोमल  विषहीन होताहै  और पूंछ में   जहर  होताहै, ऐसे दुर्जन सज्जनों को दुष्कर्म करने को  प्रेरित कर सज्जनों की  समाज में छवि ख़राब करने उनसे छल पूर्वक  मित्रता  का स्वांग रचने  वाले होते हैं।

          आज  जब अच्छे घर की लडकी  जब अकेले घर से निकल   स्कूल  या कालेज   जाती है तो   कितने ही मनचलों की कुदृष्टि उस पर होती है। ऐसी मुश्किल की  स्थिति में यदि  लड़की घर से बाहर निकलना छोड़ दे तो  उसकी तो पढाई -लिखाई  सब ख़तम हो जाएगी . बिना पढ़ी लिखी  लड़की की शादी  भी बहुत कठिन होती है । अतः  इस स्थिति से निपटने के लिए स्वयं लड़की को बहादुर होना पड़ता  है लड़कियों को पैर की जूती समझने   वालों  के  प्रति  जब तक वह विद्रोह नहीं करती  तब तक इस   समस्या का समाधान  भी प्राप्त नहीं कर सकती  ।   जब      वह अपनी जूती उतार कर ऐसे मनचलों के सर पर  मारती है  तब ही सड़क छाप मजनू  उसकी  गली का रास्ता छोड़ते हैं  । परन्तु कितनी ही लड़कियां इसी  boldness, के अभाव में (बिना काली  का रूप दिखाए ) डर के कारण अपनी पढाई छोड़ बैठती है या अपनी इज्जत   गँवा बैठती है और निर्दोष  होते हुए भी या तो अपनी  इहलीला समाप्त कर बैठती है या  और अपने हाथों अपनी जिंदगी ख़राब कर लेती हैं ।   इस प्रकार के   harassment . से मुक्ति दिलाने  के लिए    स्कूल ,कॉलेज  में  प्राध्यापक गणो  ने विशेष पहल की है , महिला सेल का निर्माण किया  है  और  विशेषज्ञों  के निर्देशन में  लड़कियों को पराक्रम, साहस, और निर्भयता  के शस्त्र उठाने हेतु  जोर शोर से अभिप्रेतित किया जा रहा है।  सुशिक्षा और जागरूकता के अभाव  में  नारी का कल्याण नहीं हो सकता । 

     सम्पूर्ण सृष्टि दो प्रकृति  के व्यक्तियों दुष्ट अर्थात  कुसंस्कृत  और सज्जन अर्थात सुसंस्कृत  से मिलकर बनी है।  दुर्भाग्यवश , कन्या का विवाह  यदि  दुर्जन से हो जाये तो उसकी  समस्त शिक्षा व्यर्थ जाती है। न तो वह अपना स्वभाव छोड़ सकती है और न ही पति की दुर्जनता वश दिखाई कुसंगति की राह ही अपना सकती है। वह   पति  द्वारा दिखाई  गयी कुसंगति  की राह पर चले  तो  उसका  जीवन   क्या जन्म ही नष्ट हो जाये ।  इस स्थिति में  विवाह  पर  असफल विवाह का कलंक  लग जाता है।

       विवाह नामकी  संस्था  परिवार, समाज और देश  के कल्याण  के  लिए   बीज के सामान होती  है जो  पुत्र पुत्रियों के जन्मानुसार वटवृक्ष में परिणित हो जाती है  

      जब तक  पति-पत्नी दोनों ही सज्जन प्रकृति के  नहीं होते तब तक  दोनों में  सामंजस्य   बैठाना    बहुत कठिन होता है . परन्तु यदि दोनों  यदि सज्जन हो तो  जीवन रुपी नैया  पार  बड़े ही आराम से  पार हो जाती है और इस नैया में सवार परिजन भी बिना कठिनाई के किनारे  पर  आ  जाते हैं   कभी कभी   दुर्जन, उनके स्वाभाव से विरुद्ध    कमाऊ लड़की को  विवाह हेतु   षड़यंत्र कर फंसा लेते हैं  और  लक्ष्मी पूजन यानि दीवाली    की   रात को ही (पत्नी) धनलक्ष्मी  के  जीवन को  अमावस की रात बना देते है।  फिर  बाहर लाख्नो  दीप जलाने  पर, या  फटाके फोड़ने पर  मन के भीतर  न ही कभी उजियारा होता है और न ही प्रेम और विश्वास का ही दीप जलाया जा सकता है।  पुरुष का अहंकार और सामाजिक प्रदर्शन  नारी की दुर्दशा का बहुत बड़ा कारण है। 

     पुरुष का अहंकार कहता है "मै बड़ा हूँ"  "मेरी पूजा करो" "मुझे सम्मान दो" मुझसे महान कोई नहीं ।हिरन्यकश्यप, रावण, कंस इनमे  इश्वर तुल्य शक्तियां थी तथा ये महान  ज्ञानी प्रकांड पंडित और  विद्वान थे परन्तु उनका विनाश सिर्फ  इसलिए हुआ क्योंकि उनमे अहंकार था ।हिरन्यकश्यप  का अहंकार तोड़ने  नरसिंह अवतार हुआ , रावण का  गर्व चूर-चूर करने राम का और  कंस का अहंकार मिटाने श्री कृष्ण ने जन्म लियासामान्यतः पुरुषों के ही दंभ को चूर करने  अवतारी पुरुष पृथ्वी पर जन्म लेते हैं . 

    
      एक धार्मिक परिवार  की बात है।लड़की वैष्णवों के घर की और शुद्ध आचरणों वाली थी,पर पति का खाना-पीना  खराब था।  यह सुनकर साधू शरणानन्दजी महाराज आश्चर्य में आ गये कि  इतनी अच्छी लड़की  के साथ ऐसा  कैसे हो गया? यह किस पाप की सजा मिली है उसे ? वह लड़की आज्ञा पालन करती,मांस -मदिरा  देती।खुद  भोजन करती तो स्नान करके दूसरे वस्त्र पहनती और अपनी रोटी अलग बनाकर खाया करती। ऐसा  करते उसे बहुत तकलीफ होती। ऐसा गन्दा काम  कर देना और अपनी पवित्रता भी पूरी रखना!      एक बार उसका पति बीमार हो गया । उसने (लड़की   ने )खूब तत्परता से रातों जगकर पति की सेवा की । पति ठीक हो गया तो उसने कहा कि तुम  कोई एक बात माँग लो । उसने कहा कि आप सिगरेट छोड़ दो ।    इतनी  सेवा और इतनी कम मांग .इस बात का पति पर इतना असर पड़ा कि उसने मांस-मदिरा सब छोड़ दिया  क्योंकि इतनी सेवा करके भी अन्त में उसने एक छोटी सी बात सिगरेट छोड़ने की माँगी। परन्तु  उस लड़की ने   सत्संग-भजन का त्याग नहीं किया ;क्योंकि वह जानती थी कि इस बात को मानने से उसको   नरक  होता। 

 उसने अपने परिवार,  पति,माता-पिता आदि को पाप से बचाने के लिय सत्संग किया,   जिससे  जीवन शुद्ध,निर्मल और मर्यादित हो,और  किसी बात का कोई अनावश्यक  भय नहीं हो.  जब भी सत्संगति ,भजन ध्यान का अवसर मिला उसने व्यर्थ  नहीं गँवाया ।वस्तुतः  अध्यात्मिक शक्तियां नव  जीवनदायिनी ,सुखदायिनी और परम धाम की राह दिखने वाली होती हैं जो अपने सज्जन भक्तों की  रक्षा करने उन्हें  सुख देने लिए कई  नए रूप  रख कर  अपना  निश्छल प्यार उड़ेलती  रहती हैं. जिसके फलस्वरूप जीवन में चमत्कार के कई रूप देखने मिलते हैं। 

अपवाद स्वरुप कभी -कभी दुर्जन भी सज्जन प्रभाव से वशीभूत हो जाते हैं और अपना जीवन इश्वर तुल्य बना लेते हैं .  भगवान् वाल्मीकि इसका साक्षात्  उदाहरण  हैं।







12 comments:

  1. न कोई साधू न कोई शैतान दुनिया चलाते हैं सिर्फ दो ही इंसान .
    एक जो सतकर्म करें वो सज्जन और एक जो बुरा कर्म करे वो दुर्जन....

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  2. TOO GOOD YAAR..... bahut acha laga pad kar....

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  3. aapne bade ki saral tareke se sangati and kusangati ka bardan karte hue hame sanskaro ki mahata byakt ki hai... and ladki ka example ki aache aacharan se ham kisi ka bhi dil jeet sakte hai...

    too good carry on

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  4. yh saty hi. manv man me hi shadu or setan hote hi jab manv ke man ka setan marta hi tabhi usko sachchi aatm sudhdhi prapt hoti hi

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  5. कविता मे अद्वैत् की सुन्दर झलक है

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  6. अगर किसी नारी के साथ एसा होता है तो बात चिन्तनीय है हमारे शास्त्रकहते है की राम की तरह आचरन करो रावण की तरः नही

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  7. पुरुष तो होता ही अहंकारी है पर नारी पुरुष को सही रस्ते पर ला सकती है क्योकि भारत मे नारी धरं पत्नी होति है जो पति को पतन से बचाती है ओर धर्म मे लगाति है
    अतः मनु लिखते है -
    यत्र नरयस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवताः!
    यत्रैता न पूज्यन्ते तर सर्वा अफ़ला क्रिया!!

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  8. पुरुष तो अहंकारी होता ही है किन्तु नारी पुरुष को सही मार्ग पर ल सकती है भारतीय नारी को धर्म पत्नी कहते है जिसका अर्थ है पत्नी पति को पतन से बचाती है ओर धर्म मे लगति है अतःधर्म पत्नी कहलाती है मनु ने भी लिखा-
    यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः! बिन नारी के पुरुष क कोइ अस्तित्व नही है शस्त्रो मे सभी नामो मे नारी क नाम पहले आता है जैसे सीताराम, राधेश्याम,गौरीशन्कर,आदि , मै तो कहना चाहूगा की
    नारी की निन्दा मत करो नारी नर की खान! नारी से ही जन्मिया ध्रुव प्रहलाद समान !

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  9. Ladkiyan jab tak swayam apne kashton se joojhne ka saahas nahi dikhaayengi tab tak unhe doosaron par aashrit rehna padega.

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  10. आप सभी सुधीजनों की प्रतिक्रियाएँ और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक धन्यवाद.

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  11. इंसान की पहचान उसके संस्कार और आचार से ही की जा सकती है .. अतः इंसान को सदैव आचरण की शुद्धता बनाये रखना चाहिए..

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