सर्वोच्च विश्वविद्यालय
कुछ गंभीर चिंतन, मनन के बाद मन को हलका करने की बात हो तो सर्वप्रथम मनोरम स्थल पर घूमने की बात आती है. संगीत ,चुटकुले सुनना सुनाना या अपनी मनपसंद खरीद दारी तो आम तौर पर चलते -फिरते ही हो जाती हैं परन्तु मन को तरोताजा करने के लिए रमणीक स्थलों का भ्रमण सर्वाधिक प्रभावशाली होता है जिसे अंग्रेजी में rejuvenation कहते है.
प्रकृति का सान्निध्य , ख़ुली हवा, कल कल बहता पानी, गुनगुनाते झरने, चहचहाते पंछी, बादलों की सैर करते हुए मन की पतंगे , ऊंचे ऊंचे पर्वत, सूर्योदय, सूर्यास्त ये मन को नव गति देते हैं अन्य शब्दों में प्रकृति सदा ही अपने सुर, ताल में और लय में हम सभी को सराबोर कर हमारे दिल- दिमाग को नव जीवन शक्ति से संचारित करती आई है। प्रकृति एसा गणित है जहाँ आकर सुख दुगने हो जाते हैं और दुख आधे हो जाते हैं.
प्रकृति की यह विलक्षण शक्ति इश्वर प्रद्दत है। पूरा संसार इश्वर के द्वारा रचा गया है। जब कभी हम असमान की और देखते है तो हमें बादलों से निर्मित विभिन्न रचनाएँ दिखाई देती है कभी आसमान में वृक्ष की वृहद आकृति दिखाई देती है तो कभी घोडा या घोड़े पर सवार राजकुमार या कभी पंछी की आकृति दिखाई देती है, या कभी अन्य विभिन्न प्रकार के आकार दिखाई देते हैं तो हम यह सोचने पर विवश हो जाते हैं कि क्या यह आकृति बादलों द्वारा ही निर्मित है या कोई कलाकार वहां छुपा बैठा है जो दूर असमान में हमें अपनी कलाकारी के नमूने दिखा रहा है? इसके साथ साथ ही आसमान में उड़ने वाले पंछी भी जब एक क़तार में उड़ते है तो उन्हें देखकर मन में यह प्रश्न उठता है कि इन पंछियों को किसने एक कतार में उड़ना सिखाया होगा ?
इसी तरह सूर्योदय और सूर्यास्त के समय आसमान पर विविध रंगो द्वारा इश्वर के द्वारा की गयी चित्रकारी भी प्रक्रति प्रदत्त अद्वितीय , अनुपम सौंदर्य है। इतना ही नहीं इश्वर ने वृक्षों को भी बहु -रंगी बनाया है . हर पौधा , हर वृक्ष एक दुसरे से बिलकुल भिन्न होता है साथ साथ उसकी जाती, उपजाति, प्रजाति गुण , उपयोग भी भिन्न होती है और हर पौधे का उपयोग भी अलग अलग कार्यों के लिए होता हैं। वनस्पति शास्त्र के शोधार्थी भी इस बात से सहमत हैं कि धरती पर जिस जगह वनस्पति की उपस्थिति नहीं होती है वहां जीवन संभव नहीं होता है।
पानी में रहने वाले जीव जंतु चाहे वह बगुला हो या हंस या बत्तख या केंकड़ा, मछली या फिर डोल्फिन सभी मन को आकर्षित करते है तथा अपनी-अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुसार इनमे भी विशेष गुण होता हैं जैसे बगुला सिर्फ मछली पकड़ने के लिए ही ध्यानमग्न हो एक टांग से नदी के किनारे खड़ा रहता है। बत्तख पानी के अंदर ही अंदर तैरती रहती है और दूर निकल जाती है .परन्तु ऊपर से उतनी ही शांत दिखाई देती है, जितनी अंदर से गतिमान होती है। हंस दूध और पानी अलग- अलग कर देता है।
चींटी का अनुशासन पूर्वक अपनी रानी का अनुसरण करते हुए एक पंक्ति में जाना अनुशासन का पाठ पढाता है और मकड़ी का घर बनाना जीवन की क्षण भंगुरता का पाठ पढाता है।
प्रकृति से सीखने के लिए बहुत कुछ है सिर्फ परिपक्व जीवन दर्शन होना चाहिए। प्रकृति इश्वर की पाठशाला है। जो सिर्फ एक ही नहीं सभी विषयों में विशेषज्ञ है। इसलिए तो प्रकृति को भगवान भी कहा जाता है।
भ= भूमि
ग = गगन
व = वायु
व = वायु
अ = अनल (अग्नि )
न = नीर
"क्षिति जल, पावक , गगन समीरा , पञ्च तत्त्व से बना शरीरा "-गोस्वामी तुलसीदास
यह शरीर भी प्रकृति के इन पंचों तत्वो से ही निर्मित होता है जो अपना जीवन चक्र पूर्ण कर विघटित हो पुनः इसी प्रकृति में कहीं विलीन हो जाता है और अपना अस्तित्व प्रकृति में मिला प्रकृति हो जाता है।
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......bhagwan.......
ReplyDeleteबोले तो, एक दम झक्कास...
ReplyDeleteक्या आप Facebook पर अनचाही Photo Tagging से परेशान हैं?
बोले तो, एक दम झक्कास...
ReplyDeleteक्या आप Facebook पर अनचाही Photo Tagging से परेशान हैं?
Wow..This is wonderful..Loved the pics and the details are really amazing..Very hard work and so beautifully written..
ReplyDeleteThats all NATURE and no one can understand who is the creator and how HE /SHE does have such a vast variety of everything..Really my appreciation to you Bhawana for such a wonderful theme...
its a wonderful information. discribed nature by pictures. i congratulate again
ReplyDeleteसभी सुधीजनों का हार्दिक धन्यवाद.
ReplyDeletebilkul sahi kaha, prakrati sare sansar ko apne tarike se sikchhit karati hai, jeevan ke sabhi adhyao ko ek alag viram deti hai, man ko vibhinn parkar se sukh v dukh ka ahasas karati hai. man ki veena ke taron ko jhankrat karati hai aur jeevan ko anmol upharo ki bhnet deti hai. aapka lekh bahut sar garbhit hai, aur prakrati ke darshan ki lalasa badata hai. jai jai radhe.
DeleteWonderful thoughts. Yes nature is the biggest teacher who gives us lessons of life by the acts of life.
ReplyDeleteपाठशाला नामक यह आलेख बहुत उत्तम है प्रकृति सुन्दर चित्रण किया है भगवान् शब्द क विश्लेषण भी उत्तम है
ReplyDeletebhagwan ka behtareen vishleshan... abhar:)
ReplyDeleteभगवान का बिलकुल सही अर्थ आपने बताया है।
ReplyDeleteसादर
बहुत रोचक प्रस्तुति..आवश्यकता है प्रकृति के साथ एकाकार होने की..भगवान अपने आप दर्शन दे देगा...
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