भारत के सपूत , अमर शहीद- श्री बृजलाल श्रीवास्तव
द्वितीय
विश्व
युद्ध
के
समय
चीन
, जापान
, रंगून
, बर्मा
सभी
भारत
का
ही
अंश
थे
सुभाष
चन्द्र
बोस
ने
"तुम
मुझे
खून
दो
,मैं
तुम्हे
आज़ादी
दूंगा''
का
नारा
दिया।
उस
समय
अपने
परिवार
का
पालन
पोषण
करने
हेतु
भारतीय
जनता
ब्रिटिश
फ़ौज
में
शामिल
हुयी
थी
'नेताजी'
सुभाष
चन्द्र
बोस
के
आवाहन
पर
वही
भारतीय
जनता
ब्रिटिश
फ़ौज
छोड़
कर
उनके
साथ
हो
गयी
. सुभाष
चन्द्र
बोस
के
साथ
हमारे
दादाजी
श्री
राम
लाल
श्रीवास्तव
व
उनके
अनुज
सहोदर
भाई
श्री
ब्रज
लाल
श्रीवास्तव
ने
स्वत्नत्रता
संग्राम
में
अपना
महत्वपूर्ण
योगदान
दिया
हमारे
छोटे
दादाजी
अमर
शहीद
श्री
ब्रज
लाल
श्रीवास्तव
ने
पूरे
कौशल
से
'आजाद
हिन्द
फ़ौज'
अख़बार
की
व्यवस्था
चीफ
एडीटर
के
रूप
में
सम्हाली।
छोटे
दादाजी
श्री
ब्रज
लाल
श्रीवास्तव
१४
भाषाओँ
के
ज्ञाता
थे.
तथा
भारत
(दिल्ली
) वायरलेस
द्वारा
युद्द
क्रांति
का
सन्देश
भेज
कर
और
अपनी
लेखनी
द्वारा
जन
-जन
में
आजादी
के
प्रति
नया
उत्साह
भरने
का
अप्रतिम
प्रयास
करते
रहे.
अपने
देशवासियों
तक
युद्ध
विवरण
का
सन्देश
भेजते
समय
किसी
जापानी
द्वारा
पीछे
से
गोली
मार
देने
की
वजह
से
मात्र
२५
वर्ष
की
आयु
में
प्राणोत्सर्ग
करने
वाले
प्रखर
व्यक्तित्व
का
वर्णन
हमारे
दादाजी
श्री
राम
लाल
श्रीवास्तव
की
डायरी
जो
की
मुझे
अभी
कुछ
समय
पहले
ही
प्राप्त
हुई
है
में
इस
तरह
व्यक्त
है
जैसे
युद्ध
का
सचित्र
वर्णन
आँखों
के
सामने
ही
चल
रहा
हो.
स्वतंत्रता
प्राप्ति
की
पहली
किरण
और
उसका
अहसास
क्या
होता
है
यह
भी
मेरे
दादाजी
की
डायरी
में
पढ़कर
रोम
-रोम
पुलकित
और
हर्षित
हो
जाता
है.
हमारे
दादाजी
ने
अपने
अनुज
सहोदर
भाई
की
बलिदानी
की
गाथा
अंग्रेजी
भाषा
में
अपनी
डायरी
में
लिखी
है
.अपनी
छोटी
सी
बुद्धि
से
उस
शाश्वत
देश
प्रेम
को
जिसके
बीजांकुर
हमारे
दादाजी
हमारे
अंदर
प्रस्फुटित
कर
गए
हैं
,अभिव्यक्त
करना
पार्थिव
शब्दों
के
माध्यम
से
परे
है.
'नेताजी'
सुभाष
चन्द्र
बोस
ने
जो
क्रांति
का
बीज
बोया
वो
वटवृक्ष
में
निर्मित
हुआ
और
उस
वटवृक्ष
से
पुनः
कई
बीज
उत्पन्न
हुए
और
देश
की
रक्षा
के
लिए
शहीद
हुए
. इन
शहीदों
की
नश्वर
देह
भले
ही
हमारे
बीच
नहीं
हो
परन्तु
ये
अपना
नाम
अमर
कर
गए।
छोटे
दादाजी
के
आखिरी
शब्द
थे
-" मै
पुनः
जन्म
लेकर
अपनी
भारत
माता
की
की
सेवा
के
लिए
जल्द
ही
आऊंगा"
. प्राणों
के
सामान
प्रिय
अनुज
भाई
को
अपनी
आँखों
के
सामने
स्वतंत्रता
के
लिए
बलिदान
होते
देख
हमारे
दादाजी
अपनी
माँ
जी
अपनी
पत्नी
यानि
मेरी
दादी
मायादेवी
श्रीवास्तव
और
मेरी
बड़ी
बुआ
के
जीवन
की
रक्षा
हेतु
वापस
भारत
जाने
की
सोची
, उस
समय
मेरे
पिताजी
गर्भ
में
थे
और
हिरोशिमा
और
नागासाकी
पर
अमेरिका
द्वारा
परमाणु
बम
गिराए
जा
रहे
थे
मेरी
दादी
की
जीवन
रक्षा
बहुत
आवश्यक
थी
रंगून
से
भारत
समुद्र
के
रस्ते
होकर
ही
जाया
जा
सकता
था
जहाज
पर
भी
मेरी
दादी
ने
आजाद
हिन्द
फ़ौज
के
फौजियों
के
लिए
उनकी
ड्रेस
सिल
कर
अपना
योगदान
दिया
लगभग
६
माह
समुद्री
यात्रा
कर
दादाजी,
उनकी
मांजी
और
मेरी
दादी
बड़ी
बुआ
और
गर्भस्थ
पिताजी
कलकत्ता
के
राजमहल
पहुंचे. १९ १ १ तक कलकत्ता भारत की राजधानी के नाम से जाना जाता था.
द्वितीय
विश्व
युद्ध
(1939-45) का आवाहन तब हुआ
जब
प्रथम
विश्व
युद्ध
(1914-1917)के बाद भी पूर्णतः
शांति
नहीं
आ
पाई
. यह
युद्ध
का
आवाहन
लगभग
20 वर्षों
तक
लगातार
अपना
असर
दिखाता
रहा।
इटली
और
जर्मनी
के
मध्य
हुआ
यह
द्वितीय
विश्व
युद्ध
विश्व
के
विनाश
की
ध्वजा
फहराने
को
तत्पर
था
क्योंकि
इटली
के
तानाशाह
मुसोलिनी
और
जर्मनी
के
तानाशाह
हिटलर
दोनों
का
अहंकार
उतना
ही
बढ़ा-
चढ़ा
था
जितना
महाभारत
के
युद्ध
में
कौरवों
का
दंभ।
द्वितीय
विश्व
युद्ध
में
अनगिनत
निर्दोष
लोगों
को
अपनी
जान
से
हाथ
धोना
पड़ा।
मुसोलिनी
ने
विश्व
पर
राज्य
करे
के
लिए
जर्मनी
के
नायक
हिटलर
से
उसकी
सभी
सेन्य
तथा
आर्थिक
शक्तियां
छीन
ली
तथा
जर्मनी
में
अपना
साम्रज्य
स्थापित
कर
लिया।
जर्मनी
को
अपना
गुलाम
बना
लिया
.अपमान,
गरीबी,
भूख
और
शोषण
से
ग्रस्त
जर्मनी
ने
इस
परिस्थिति
का
विद्रोह
करने
करने
हेतु
या
तो
सम्मान
या
मौत
की
नीति
अपनाई
और
नए
जोश
और
नए
रंग
से
जंग
छेड़
दी।
इटली
में
भी
आर्थिक
तंगी
भूख
से
पागल
लोग
मुसोलिनी
के
नेतृत्व
में
एक
ही
झंडे
के
नीचे
आकार
ताकत
अजमाइश
कर
अपना
अधिकार
पाने
का
गान
गाने
लगे।
इस
तरह
दोनों
देशों
ने
युद्ध
द्वारा
देश
जितने
की
नीति
अपनाई
और
फिर
द्वितीय
विश्व
यूद्ध
छिड़ा।
जिसका
फायदा
अमेरिका
ने
हिरोशिमा
और
नागासाकी
पर
परमाणु
बम
गिराकर
उठाया।
जिससे
भयावह
नर
संहार
हुआ
लाखों
लोग
बेघरबार
हुए।
उस
समय
भारत
भी
अंग्रेजों
की
गुलामी
से
त्रस्त
इसी
तरह
की
मानसिक,
आर्थिक
, सामाजिक,
राजनितिक
परिस्थितियों
से
जूझ
रहा
था।
परतंत्रता
की
बेड़ियों
में
जकड़ी
भारत
माता
को
स्वतंत्रता
दिलाने
उसके
सच्चे
वीर
सपूतों
ने
अपना
सर
कलम
करवाने
का
संकल्प
लिया
और
भारत
के
लिए
अमर
हुए
शहीद
हुए
.आज
जिस
आजाद
भारत
में
हम
सांस
ले
रहे
हैं
वह
आजादी
हमें
आसानी
से
नहीं
मिली
है।
देश
के
हजारों
बलिदानियों
को
भारत
माता
को
अंग्रेजों
की
बेड़ियों
से
मुक्त
करने
के
लिए
अपनी
जान
की
क़ुरबानी
देनी
पड़ी
है।
अंग्रेजों
के
भयावह
अत्याचार
को
सहने
वाले
ऐसे
कई
शहीद
है
जिनके
अमर
बलिदान
से
हमारा
भारत
जन
मानस
अभी
तक
परिचित
ही
नहीं
हुआ
है।