पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जंतु प्रकृति पर निर्भर है और प्रकृति सूरज पर निर्भर है। अगर सूरज की किरणें पृथ्वी पर न पहुँचे तो पृथ्वी का विनाश हो जाएगा,सभी ओर अंधकार छा जाता है पृथ्वी के सागर महासागर वाष्प बनकर उड़ जाएं। पृथ्वी पर भयानक प्रलय छा जाए और पृथ्वी पर से जीवन का नामोनिशान ही मिट जाए।यह एक सर्वमान्य सत्य है कि हिन्दू धर्म में सूर्य को जीवंत देवता का दर्ज़ा दिया गया है। वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है, हिंदू सूर्य को भगवान मानकर उनकी पूजा करते हैं और सुबह जल अर्पण करते है।
हिन्दू धर्म में छठ पर्व में सूर्य की पूजा षष्ठी को की जाती है। सूर्यषष्ठी व्रत में ब्रह्म और शक्ति प्रकृति और उनका अंश षष्ठी देवी, दोनों की पूजा साथ-साथ की जाती है, इसलिए व्रत करने वाले को दोनों की पूजा का फल मिलता है। इस पूजा की यही बात इसे खास बनाती है।श्वेताश्वतरोपनिषद् में बताया गया है कि परमात्मा ने सृष्टि रचने के लिए खुद को दो भागों में बांटा। दाहिने भाग से पुरुष और बाएं भाग से प्रकृति का रूप आया।
ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड में बताया गया है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी है। पुराण के अनुसार यह देवी सभी बालकों की रक्षा करती हैं और उन्हें लंबी आयु देती हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड में ऐसा जिक्र मिलता है-
''षष्ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्ठी प्रकीर्तिता,बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा।आयु:प्रदा च बालानां धात्री रक्षणकारिणी,सततं शिशुपार्श्वस्था योगेन सिद्धियोगिनी''।
मेरा जन्म पश्चिम बंगाल में हमारे बड़े मामाजी के यहां हुआ वे पेशे से इंजीनियर थे।उनके कार्यकाल में रहने के दौरान कोल माइंस में कोई भी दुर्घटना नहीं घटी अतः 1986 में उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे जेनरल मैनेजर के पद पर पदस्थ थे।तब हमलोग शहडोल के पास कोतमा में रहते थे और वे कोतमा के पास कोलमाइंस मनेंद्रगढ़ जिले के झगराखंड में।z
मामाजी के यहां छठ पूजन होता था।बिहार बंगाल में सूर्य को साक्षात देवता माना जाता है और सूर्य उपासना का बहुत ज्यादा महत्व है। सूर्योपासना त्वरित फलवती होती हैं। भगवान राम सूर्यवंश के वंशज हैं। भगवान श्रीराम के पूर्वजों को सूर्योपासना से ही दीर्घ आयु प्राप्त हुई थी। श्रीकृष्ण के पुत्र सांब की सूर्योपासना से ही कुष्ठ रोग से निवृत्ति हुई।
भगवान हनुमान सूर्य देवता को अपना गुरु मानते थे। सूर्य देव के पास 9 दिव्य विद्याएं थीं। इन सभी विद्याओं का ज्ञान बजरंग बली प्राप्त करना चाहते थे। सूर्य देव ने इन 9 में से 5 विद्याओं का ज्ञान तो हनुमानजी को दे दिया, लेकिन शेष 4 विद्याओं के लिए सूर्य के समक्ष एक संकट खड़ा हो गया। शेष 4 दिव्य विद्याओं का ज्ञान सिर्फ उन्हीं शिष्यों को दिया जा सकता था जो विवाहित हों। हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी थे, इस कारण सूर्य देव उन्हें शेष चार विद्याओं का ज्ञान देने में असमर्थ हो गए। इस समस्या के निराकरण के लिए सूर्य देव ने हनुमानजी से विवाह करने की बात कही। पहले तो हनुमानजी विवाह के लिए राजी नहीं हुए, लेकिन उन्हें शेष 4 विद्याओं का ज्ञान पाना ही था। इस कारण हनुमानजी ने विवाह के लिए हां कर दी।
मध्यप्रदेश में छठ पूजा का ज्ञान बहुत ही कम लोगों को है। जबलपुर में भी हमारे एक और मामा जी रहते थे जिनके हाथ छठ उत्सव धूमधाम से मनाया जाता था।
मां कृत्रिम बनावटी जीवन जीने के बजाय, दूसरों को प्रभावित करने की कोशिश करने के बजाय वास्तव में एकांत में आनंदित रहती थी। साधारण जीवन जीने की वजह से वे अपने संस्कारों के करीब थीं और इसलिए वे अपने परिवार के सदस्यों के करीब थीं और परिवार द्वारा दिए गए प्रेम से ही वे बहुत खुश और संतुष्ट रहतीं।मां कम से कम चीजों में ही संतुष्ट रहतीं और अपने साथ अधिक से अधिक समय बिताने की वजह से वे अपने आपको पहचान चुकी थीं कि वे वास्तव में कौन हैं।आनंद आंतरिक गुण है वह हर परिस्थिति में अपने कि आनंदित रखतीं बाह्य जगत से उनका रिश्ता मात्र भौतिक आवशयकताओं दैनिक मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति मात्र का था। सादा जीवन जीने और बड़ी सोच रखने कि वजह से ही आंतरिक शांति और आनंद से परिपूर्ण रहतीं।
मां के जीवन की सबसे विशेष बात यह थी कि उन्हें सादगी सरलता निष्छलता ज़रूरतों और इच्छाओं को सीमित कर जीने की कला आती थी उनका कहना था इच्छाओं का कोई अंत नहीं है। उन्होंने कभी भी अपने पड़ोसियों, मित्रों और रिश्तेदारों को प्रभावित करने के लिए कोई कार्य नहीं किया वे दूसरों की आवश्यकता पड़ने पर मदद करने प्रयासरत थे। बहुत कम लोग सादा सरल जीवन जीते हैं, लोग अपनी बड़ी संपत्तियों से दूसरों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं अपनी भव्यता का रौब जमाना चाहते है।
हमारी दादी मां भी सूर्योदय से पहले ही उठ जाती । उनकी दिनचर्या में सूर्योदय से पहले उठना घर के कामकाज करना नित्य कर्म में शामिल था। लोग उनके बारे में कहते कि अम्माजी चिड़ियों के साथ सो जाती हैं और कौवों के साथ उठ जाती हैं । पुराने जमाने में घड़ी नहीं होती थी। समय देखने के लिए लोग सूर्य प्रकाश धूप का अनुभव कर लेते थे कि अभी कितना बजा होगा अर्थात पुराने लोग सूर्य की लय के साथ समकालिक हो जाते थे । ब्रह्म मुहूर्त में उठना बल बुद्धि विद्या का द्योतक समझा जाता था ब्रह्म का समय या शुद्ध चेतना या शुभ और प्रातः काल के इस समय उठना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
दादी मां अपनी वृद्धावस्था में भी विशाल ऊर्जा से भरी रहती थी उनके अंदर आशा, प्रेरणा और शांति हर समय प्रकट होती थी।
अम्माजी सभी विद्यार्थियों को ब्रह्म मुहूर्त में उठा देती उनका मानना था कि ब्रह्म मुहूर्त में स्वाध्याय करनेे से विद्यार्थी अपनेेेे लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैैं । उनको सुबह का वातावरण शुद्ध, शांत और सुखदायक लगता था।
गुरुदेव भी सूर्य को सर्वशक्तिमान समझ सूर्योदय की प्रतीक्षा करते । उनके अनुसार सृष्टि सृष्टि का आधार और ऊर्जा का श्रोत है। इस समय ध्यान - भजन करने से मानसिक कृत्य में सुधार होता है। यह सत्वगुण बढ़ाने में सहायक है और रजोगुण और तमोगुण से मिलने वाली मानसिक चिडचिडाहट या अति सक्रियता और सुस्ती से निदान देता है। बिहार में छठ पूजा का विशेष महत्व है।मां अपनी मां के घर छठ पूजा करती थी। बिहार में लोग गंगा नदी में उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते है उनका मानना है कि ऐसा करने से नेतृत्व क्षमता बल, बुद्धि ,विद्या, तेज, पराक्रम, यश एवं उत्साह में वृद्धि होती है । छठ को सूर्यषष्ठी व्रत कहा जाता है जो बहुत कठिन होता है।
यह मीठा खुरमा या मीठी सलोनी का बड़ा रूप है। इसे गेंहू के आटे, चीनी -गुड़, नारियल और सूखे मेवों से बनाया जाता है । छठ पूजा के दूसरे दिन सूर्य देव को अर्पित किया जाता है। इसके साथ कद्दू की खट्टी मीठी नमकीन सब्जी बनातीं स्वादिष्ट सब्ज़ी को तली हुई गरी के साथ मिलाया जाता है और व्रत को तोड़ने के लिए एकदम सही पकवान माना जाता। हरे चने और आलू की सब्जी को छोले की सब्जी की तरह बनाया जाता। हरे चने को रात भर पानी में भिगोया जाता और अगले दिन घी में जीरा और हरी मिर्च के साथ बनाया जाता। इसे पुरी, कद्दू की सब्जी और एक मिठाई के साथ परोसा जाता गुड की खीर भी बनाई जाती जिसमें चीनी के स्थान पर गुड मिलाया जाता । चावल, पानी और दूध के साथ खीर बनाइ जाती. यह मिठाई छठ पूजा का भोजन पूरा करती और इसे सेवन करने से पहले सूर्य देवता को भोग लगाया जाता।
भोजन के दौरान यदि कोई भी आवाज होती तो भोजन को वहीं अधूरा छोड़ दिया जाता। मुझे याद है मामा जी के यहां एक ब्रूजो नाम का कुत्ता पला हुआ था। जैसे ही छठ की पूजा करके मामी भोजन करने बैठी वैसे ही कुत्ते ने भोंकना शुरू कर दिया तो उन्हें वहीं पर खाना खाना बंद करना पड़ा।
मां छठ के बारे में बहुत सारी बातें बतातीं थीं। षष्ठी देवी को छठ मैया कहते हैं। षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है, जो नि:संतानों को संतान देती हैं। आज भी देश के कई हिस्सों में बच्चों के जन्म के छठे दिन षष्ठी पूजा का चलन है। पुराणों में इन देवी के एक अन्य नाम कात्यायनी का भी जिक्र है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी को होती है।