Saturday, May 23, 2020

कोर्ट एक धोका, जेल आत्मसुधार केंद्र Part -II

हृदय परिवर्तन

फिल्म की शुरुआत एक जेल के दृश्य से होती है. जेल का सुपरिंटेंडेंट जालिम है, कैदियों से अमानवीय व्यवहार करता है. वहां का जेलर आदिनाथ सरल और क्षमाशील व्यक्ति है. जेलर ने उच्चाधिकारियों से छः सजायाफ्ता अपराधियों को जेल से छोड़ने की अनुमति माँगी है ताकि वह उन कैदियों को खुले में रखकर उनका हृदय परिवर्तन करके उन्हें अच्छा नागरिक बनाया जा सके. इस प्रयोग के लिए उन्हें जेलर से अनुमति मिल जाती है और हत्या के आरोप में सज़ा काट रहे छः दुर्दांत अपराधियों को वह अपने साथ ऐसी जगह में ले जाता है जहाँ उनके लिए जेल नहीं, खुला वातावरण मिलता है. जेलर आदिनाथ उन्हें लगातार प्रयासों से व्यवस्थित करता है, उनके कुत्सित विचारों से उन्हें दूर करता है. कई ऐसी घटनाएं होती हैं जब यह प्रयोग असफल होता दिखता है लेकिन उन अपराधियों को जेलर की दो अदृश्य आंखें हर बार गलतियां करने से रोकती हैं. कथानक में कई उतार-चढ़ाव आते हैं, अपराधी चूकते भी हैं, सँभलते भी हैं. अंत उन कैदियों की सांड के आक्रमण से रक्षा करते हुए जेलर आदिनाथ के प्राण चले जाते है. आदिनाथ के त्याग से प्रभावित होकर सभी अपराधियों का हृदय परिवर्तित हो जाता है और वे सभी आदर्श नागरिक की तरह जीवन व्यतीत करने का संकल्प लेते हैं.

, मालिक, तेरे बंदे हम ऐसे हों हमारे करम नीति पर चलें और बदी से टलें ताकि हँसते हुए निकले दम..बड़ा कमज़ोर है आदमी अभी लाखों हैं इसमें कमी पर तू जो खड़ा है दयालु बड़ा तेरी कृपा से धरती थमी.दिया तूने हमें जब जनम तू ही झेलेगा हम सबके ग़म नेकी पर चलें और बदी से टलें ताकि हँसते हुए निकले दमजब ज़ुल्मों का हो सामना तब तू ही हमें थामना वो बुराई करें, हम भलाई भरें नहीं बदले की हो कामना बढ़ उठे प्यार का हर क़दम और मिटे बैर का ये भरम नेकी पर चलें और बदी से टलें ताकि हँसते हुए निकले दम…

लगान फिल्म में भी सच्चाई का ही बल और पुरुषार्थ और माँ का बच्चे के साथ मनोबल के रुप में खड़ा होना मूल तत्व के रुप में है। जबतक व्यक्ति आत्मज्ञान हेतु प्रयास नहीं होता तब तक व्यक्ति गलत राह में भटक सकता है।

आत्मा : शरीर रूपी पिंजड़े में कैद

वैसे तो  विस्तार से देखें तो हम सभी इस संसार में कैदी ही हैं  और  यदि आध्यात्मिक स्तर पर देखें तो हमारी आत्मा विभिन्न प्रकार के बंधनों से बंधी हुई इस शरीर रूपी पिंजड़े में कैद है।पिंजरे के पंछी तेरा दर्द  जाने कोई बाहर से तो खामोश रे हैतूभीतर भीतर रोइ रे..तेरा दर्द  जाने कोईकह  सके तू अपनी कहानी तेरी भी पंछी क्या ज़िंदगानी रे...विधि ने तेरी कथा लिखी आंसू में कलम डुबोई.. तेरा दर्द  जाने कोई...चुपके चुपके रोने वाले रखना छुपाके दिल के छाले रे...ये पत्थरका देश हैं पगले कोई  तेरा होय.. पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द  जाने कोई तेरा दर्द  जाने कोई पिंजरे के पंछी रे.

संगीत उपचार 

तुलसीदासजी कहते हैं- “सठ सुधरहिं सतसंगति पाई।पारस परस कुधात सुहाई” अर्थात दुष्ट प्राणी भी अच्छी संगति पाकर सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुंदर चमकीला हो जाता है.संगीत चिकित्सा किसी भी अन्य चिकित्सा पद्धति के समान मानसिक रोगों की चिकित्सा कर रोगी के स्वस्थ होनेकी दर को बढ़ा देती है और व्यक्ति पुनः एक नए जीवन का शुरुआत करता है पिछली जिंदगी को भूलकर आगे की नई जिंदगी को सही दिशा ले जा सकता है।मेरी पीएचडी का विषय  ट्रांसफॉरमेशन ऑफ माइंड है और यह विषय साइकोलॉजि का है कैदियों  को काउंसलिंग देने का कार्य सिर्फ वही कर सकता है जो परमात्मा का अनन्य भक्त हो जिस पर परमात्मा की अनन्य कृपा हो जो अपनी संगति से गलत रास्ते पर चलने वाले व्यक्तियों को सही रास्ते पर ना सके।कोई भी टीचर या कोई भी काउंसलर सिर्फ प्रेरणा दे सकता है गृहण करना तो सामने वाले व्यक्ति पर निर्भर करता हैकारावास के बारे में यह भी प्रसिद्ध है कि मथुरा में श्री कृष्ण भगवान का जन्म भी कारावास में ही हुआ था अतः कारावास कोई अभिशप्त जगह नहीं है।

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