महायोग विज्ञान
भारतवर्ष में योग की महिमा सदा से ही चली आती है हमारे पूर्वज, ज्ञाता ऋषि मुनि योगियों ने इस विषय पर कई ग्रंथ लिखें है जो हम लोगों के व्यवहार में आते हैं दुख का विषय जटिल होने से भिन्न भिन्न आचार्यों द्वारा विभिन्न प्रकार से लिखा गया है इसलिए उन ग्रंथों से किसी अनुभवी योगी की सहायता के बिना योग को समझना सीखना और करना सर्वसाधारण के लिए सहज साध्य नहीं है तथापि योग के विषय में लोगों की महान उच्च धारणा है कि यूं ही सर्वोपरि विज्ञान और परम कल्याण का प्रशस्ति पत्र है वास्तविक ही योग का विज्ञान सर्वोपरि होने पर भी उसका यथा तथ्य निहित गूढ़ रहस्य लोग नहीं जान पाते की योग कैसे करना चाहिए योग का फल क्या है और कैसे मिलता है इस समस्या को सुलझाने के लिए महायोग के प्रवर्तक परम करुणामई पूज्यपाद श्रीमद् गुरुदेव श्री नारायण देव तीर्थ जी की इच्छा थी कि महायोग के वास्तविक विज्ञान को ग्रंथ रूप से प्रकाशित किया जाए ताकि योग के जिज्ञासु लोग समझ सके कि योग कैसा और क्या है?
अतः उनकी आज्ञा अनुसार ही कृपा से इस ग्रंथ की रचना हुई है इस महायोग के विज्ञान के विषय को लिखने के पूर्व इसके साधन करने वाले साधकों को इस विषय में जो आवश्यक उपदेश दिया जाता था साधकों के आग्रह से उसे अन्य साधकों के लाभार्थी प्रचलित प्रणाली के अनुसार ग्रंथ रूप में प्रकाशित करने का विचार हुआ परंतु इस महायोग के विज्ञान के समग्र विषय क्रमवार किसी एक ही ग्रंथ में ना होने के कारण यह कार्य सहज सहज साध्य नहीं था क्योंकि जितने भी आर्ष ग्रंथ हैं उन सभी में महायोग का nihit तत्व गुप्त विषय सांकेतिक रूप में मिलता है उसको साधारण लोग तो समझ ही नहीं सकते संस्कृत की अच्छी योग्यता वाला अनुभव रहित विद्वान पुरुषों के लिए भी समझना और समझाना सहज नहीं है तथापि गुरुदेव की आज्ञा और साधकों की इच्छा के वश में होकर यथामती योग के विषयों को वेद उपनिषद दर्शन तथा तंत्र पुराण आदि ग्रंथों से संग्रह कर इस ग्रंथ में क्रमबद्ध किया गया है ताकि हर एक जिज्ञासु महायोग के रहस्यमई विज्ञान को सरलता से समझ सकेl
साधारणतया इस ग्रंथ में जितने भी प्रमाण दिए गए हैं रिशब वेद उपनिषद दर्शन तंत्र इतिहास पुराण आदि आर्ष ग्रंथों के ही हैं उनमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है परंतु पूर्वा पर की विषय संगति मिलाने के लिए लोगों को जो का त्यों कहीं कहीं आगे पीछे जोड़ दिया गया है सब लोग उपरोक्त शास्त्र ग्रंथों से वितरित किए गए हैं जिनका नाम सहित उल्लेख इस लोगों के प्रारंभ में ही कर दिया गया है इस ग्रंथ में श्लोकों के शब्दार्थ की अपेक्षा विशेष करके भावार्थ को ही ग्रहण करने की चेष्टा की है संभव है कि संस्कृत जाने वाले पाठक इसे पसंद ना करें तथा फीसद उद्देश्य से प्रेरित होकर वास्तविकता को समझने और समझाने का प्रयत्न किया गया है अतएव विज्ञ पाठक गण इससे थोड़ा बहुत लाभ उठा सकेंगे.
Grand Science
In India, the glory of yoga has always been there, our ancestors, sages, sages, yogis, have written many texts on this subject, which come in the behavior of us people. Therefore, learning and doing yoga without the help of an experienced yogi from those texts is not easily achievable for the common man, however people have a great high belief about yoga that it is just a citation of paramount science and ultimate welfare. Even though the science of science is paramount, people do not know how to do yoga, what is the fruit of yoga and how to solve this problem. There was a desire that the actual science of Mahayoga should be published in a book form so that the inquisitive people of Yoga could understand what and what Yoga is.
Therefore, according to his permission, this book has been composed by grace, before writing the subject of the science of this great yoga, the necessary instruction was given to the seekers who did this subject, on the request of the seekers, it was given to the beneficiary of other seekers as per the prevailing system. According to the idea of publishing it in the form of a book, but due to the absence of the overall subject of the science of this Mahayoga in a single book, this task was not easily achievable, because in all the Arsha texts, the nihit element of Mahayoga is symbolic. Ordinary people cannot understand it in the form it is found, it is not easy to understand and explain even to learned men with good Sanskrit ability, however, under the command of Gurudev and the desire of the seekers, Veda Upanishad philosophy on the subjects of Yatmati Yoga. And after collecting from the texts like Tantra Purana etc., it has been sorted in this book so that every curious person can understand the mysterious science of Mahayoga.to understand easily
Generally, all the evidences given in this book are from the texts of Rishab Veda, Upanishad, Darshan, Tantra, History, Purana etc., but no change has been made in them, but to match the theme of Purva, people have been added back and forth somewhere. All the people have been distributed from the above scripture texts, which have been mentioned along with the names in the beginning of this people. The readers who do not like it and inspired by the objective objective, an attempt has been made to understand and explain the reality, so the knowledgeable readers will be able to benefit a little from it.
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