वर्तमान में योग एक बहुत प्रचलित शब्द है, जिसका अर्थ है जोड़ना। यहां पर जोड़ने से तात्पर्य स्थूल को सूक्ष्म से जोड़ने से है। योग का सम्बन्ध मनुष्य की वैयक्तिक चेतना का ब्रह्मांडीय चेतना के मिलन से है। योग के आदि प्रणेता भगवान शिव हैं। शरीर के आंतरिक विकारों को दूर कर मन एवं चित्त को स्थिर करने तथा अन्त:करण को शुद्ध कर असीम आनंद की प्राप्ति के लिए विकसित यौगिक प्रक्रिया ही योग कहलाती है। योग के कुल आठ अंग हैं। इसी कारण इसे अष्टांग योग कहा जाता है। इसके अभ्यास से मानव साधारण से विलक्षण बन सकता है।
बचपन से मैंने अपने घर में घर में सूर्य नमस्कार से संबंधित बहुत सारी किताबें भी रखी देखीं थी और यही समझा था कि योगासनों में से सर्व श्रेष्ठ सूर्य नमस्कार है । इसे करने से शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक सभी प्रकार का लाभ प्राप्त होता है।इसे सर्वांग व्यायाम भी कहा जाता है। केवल इसका ही नियमित रूप से अभ्यास व्यक्ति को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है। इसके अभ्यास से व्यक्ति का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। 'सूर्य नमस्कार' स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों के लिए भी उपयोगी बताया गया है।
हमारे ऋषि मुनियों ने योग के द्वारा शरीर मन और प्राण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति के लिए आठ प्रकार के साधन बताएँ हैं, जिसे अष्टांग योग कहते हैं.ये निम्न हैं- यम नियम आसन प्राणायाम
प्रात्याहार धारणा ध्यान समाधि.
सूर्य नमस्कार 12 योगासनों को मिलाकर बनाया गया है. हर एक आसान का अपना महत्व है. इसे करने वालों का कार्डियोवस्कुलर स्वास्थ्य अच्छा रहता है. साथ ही शरीर में खून का संचार भी दुरुस्त होता है. सूर्य नमस्कार के जरिए आप अपना तनाव कम कर सकते हैं और इससे शरीरी को डिटॉक्स करने में मदद मिलती है.
ज्योतिषशास्त्र में सूर्य को आत्मा का कारक बताया गया है। नियमित सूर्य को जल देने से आत्म शुद्धि और आत्मबल प्राप्त होता है। सूर्य को जल देने से आरोग्य लाभ मिलता है। सूर्य को नियमित जल देने से सूर्य का प्रभाव शरीर में बढ़ता है और यह आपको उर्जावान बनाता है। कार्यक्षेत्र में इसका आपको लाभ मिलता है। जिनकी नौकरी में परेशानी चल रही हो वह नियमित सूर्य को जल देना शुरु करें तो उच्चाधिकारी से सहयोग मिलता है और मुश्किलें दूर होती हैं।
शास्त्रों में भी कहा गया है कि हर दिन सूर्य को जल देना चाहिए और बहुत से लोग इस नियम का पालन भी करते हैं। लेकिन इसके भी नियम हैं जिन्हें जानकर सूर्य को जल दें तो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में इसका लाभ प्राप्त किया जा सकता है। महाभारत में कथा है कि कर्ण नियमित सूर्य की पूजा करते थे और सूर्य को जल का अर्घ्य देते थे। सूर्य की पूजा के बारे में भगवान राम की भी कथा मिलती है कि वह भी हर दिन सूर्य की पूजा और अर्घ्य दिया करते थे।
सूर्य-नमस्कार के नियमित अभ्यास से शारीरिक और मानसिक स्फूर्ति की वृद्धि के साथ विचारशक्ति और स्मरणशक्ति भी तीव्र होती है। शरीर की चर्बी कम होती है और रीढ़ की हड्डी में लचीलापन आता है।
इसके अलावा दमा, पुरानी खांसी या फेफड़ों संबंधी अन्य बीमारी में इस आसन को करने से आराम मिलता है। इससे बाजुओं में भी ताकत आती है।सूर्य नमस्कार खाली पेट सुबह किया जाता है। सूर्य नमस्कार के प्रत्येक दौर में दो सेट होते हैं, और प्रत्येक सेट 12 योग आसान से बना होता है।
सूर्य नमस्कार 12 शक्तिशाली योग आसन का एक अनुक्रम है। एक कसरत होने के अलावा, सूर्य नमस्कार को शरीर और दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए भी जाना जाता है. प्रणामासन हस्तोत्तानासन . हस्तपादासन अष्वसंचलनासन दण्डासन अष्टांग नमस्कार भुजंगासन अधोमुखस्वानासन. अश्व संचलनसाना हस्तपादासन हस्तोत्तानासन ताड़ासन
सूर्य नमस्कार के मंत्र :ॐ रवये नमः ॐ सूर्याय नमः ॐ भानवे नमः ॐ खगाय नमः ॐ पूष्णे नमः ॐ हिरण्यगर्भाय नमः ॐ मरीचये नमः ॐ आदित्याय नमः ॐ सवित्रे नमः ॐ अर्काय नमः ॐ भास्कराय नमः ॐ श्री सबित्रू सुर्यनारायणाय नमः
सूर्य नमस्कार का अभ्यास बारह स्थितियों में किया जाता है, जो निम्नलिखित है-
प्रणाम मुद्रा : दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित करके 'सूर्य' का आह्वान 'ॐ मित्राय नमः' मंत्र के द्वारा करें।
हस्त उत्तानासन: श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।
पाद हस्तासन या पश्चिमोत्तनासन : तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
अश्व संचालन आसन : इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।
पर्वतासन : श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।
अष्टांग नमस्कार : श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को 'अनाहत चक्र' पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।
भुजंगासन : इस आसन को करने के लिए जमीन पर पेट के बल लेट जाएं। चेहरा ठोड़ी पर टिकाएं कोहनियां कमर से चिपकाकर रखें और हथेलियों को ऊपर की ओर करके रखें। दोनों हाथों को कोहनी से मोड़ते हुए आगे लाएं और बाजुओं के नीचे रखें।
इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।
इस स्थिति में 30 सेकेंड तक रुकना है। शुरुआत में ऐसा न कर पाएं, तो उतनी देर करें जितनी देर आराम से कम पा रहे हैं। बाद में सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे सिर को नीचे लाकर ठोड़ी को जमीन पर रखें और हाथों को पीछे ले जाकर ढीला छोड़ दें।
इसके दूसरे हिस्से में दोनों हथेलियों को सामने की ओर लाकर ठोड़ी के नीचे रखें। अब पहले की तरह सांस धीरे-धीरे लेते हुए सिर से शरीर को ऊपर की ओर उठाएं। कंधे से कमर तक का हिस्सा हथेलियों के बल पर ऊपर उठाएं। इस अवस्था में 30 सेकेंड तक रहना है और फिर धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए वापस उसी अवस्था में लौट आएं। इस आसन को करते समय शरीर को कमर से उतना ही पीछे ले जाएं जितना आसानी से हो सके। लचीलापन एकदम से नहीं आएगा, अनावश्यक दबाव डालने से पीठ, छाती, कंधे या हाथों की मांस-पेशियों में दर्द हो सकता है। पीठ या कमर में ज्यादा दर्द हो तो भी यह आसन नहीं करना चाहिए।
पर्वतासन: श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।
अश्व संचालन आसन : इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।
हस्तासन :तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
हस्त उत्तानासन: श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।
प्रणाम मुद्रा : यह स्थिति पहली मु्द्रा की तरह है अर्थात नमस्कार की मुद्रा। बारह मुद्राओं के बाद पुन: विश्राम की स्थिति में खड़े हो जाएं। अब इसी आसन को पुन: करें।
सूर्य नमस्कार शुरुआत में 4-5 बार करना चाहिए और धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर 12-15 तक ले जाएं।
यह स्थिति - पहली स्थिति की भाँति रहता है। सूर्य नमस्कार प्रार्थना करते समय सूर्य मंत्र का उच्चारण भी करना चाहिए ।
सूर्य नमस्कार शुरू करने के कुछ ही समय के भीतर आप अपनी शारीरिक और मानसिक स्थिति में काफी अंतर पाएंगे. एक नजर सूर्य नमस्कार के 10 फायदों पर...
निरोगी काया
सूर्य नमस्कार को डेली रूटीन में शामिल कर सही तरीके से किया जाए तो आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आएगी. 12 आसनों के दौरान गहरी सांस लेनी होती है जिससे शरीर को फायदा होता है.
बेहतर पाचन तंत्र
सूर्य नमस्कार के दौरान उदर के अंगों की स्ट्रेचिंग होती है जिससे पाचन तंत्र सुधरता है. जिन लोगों को कब्ज, अपच या पेट में जलन की शिकायत होती है, उन्हें हर सुबह खाली पेट सूर्य नमस्कार करना फायदेमंद होगा.
सूर्य नमस्कार करने से पेट कम होता है
आसनों से उदर की मांसपेशी मजबूत होती है. अगर इन्हें रेगुलर किया जाए, तो पेट की चर्बी कम होती है.
डिटॉक्स करने में मिलती है मदद
आसनों के दौरान सांस साँस खींचना और छोड़ने से फेंफड़े तक हवा पहुंचती है. इससे खून तक ऑक्सीजन पहुंचता है जिससे शरीर में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड और बाकी जहरीली गैस से छुटकारा मिलता है.
मानसिक चिंता से मुक्ति
सूर्य नमस्कार करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है और नर्वस सिस्टम शांत होता है जिससे आपकी चिंता दूर होती है. सूर्य नमस्कार से एंडोक्राइन ग्लैंड्स खासकर थॉयरायड ग्लैंड की क्रिया नॉर्मल होती है.
शरीर में लचीलापन आता है
सूर्य नमस्कार के आसन से पूरे शरीर का वर्कआउट होता है. इससे शरीर फ्लेक्सिबल होता है.
मासिक-धर्म रेगुलर होता है
अगर किसी महिला को अनियमित मासिक चक्र की शिकायत है, तो सूर्य नमस्कार के आसन करने से परेशानी दूर होगी. इन आसनों को रेगुलर करने से बच्चे के जन्म के दौरान भी दर्द कम होता है.
रीढ़ की हड्डी को मिलती है मजबूती
सूर्य नमस्कार के दौरान स्ट्रेचिंग से मांसपेशी और लीगामेंट के साथ रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है और कमर लचीला होता है.
सूर्य नमस्कार से आप रहेंगे जवान
सूर्य नमस्कार करने से चेहरे पर झुर्रियां देर से आती हैं और स्किन में ग्लो आता है.
वजन कम करने में मदद
सूर्य नमस्कार करने आप जितनी तेजी से वजन कम कर सकते हैं, उतनी जल्दी डायटिंग से भी फायदा नहीं होता. अगर इसे तेजी से किया जाए तो ये आपका बढ़िया कार्डियोवस्कुलर वर्कआउट हो सकता है.
योग मांस पेशियों को पुष्ट करता है और शरीर को तंदुरुस्त बनाता है, तो वहीं दूसरी ओर योग से शरीर से फैट को भी कम किया जा सकता है. . ब्लड शुगर लेवल करे कंट्रोल: योग से आप अपने ब्लड शुगर लेवल को भी कंट्रोल करता है और बढ़े हुए ब्लड शुगर लेवल को घटता है. डायबिटीज रोगियों के लिए योग बेहद फायदेमंद है.
सूर्य नमस्कार गर्भवती महिला तीसरे महीने के गर्भ के बाद से इसे करना बंद कर दें.हर्निया और उच्च रक्ताचाप के मरीजों को सूर्य नमस्कार नहीं करने की सलाह दी जाती है.पीठ दर्द की समस्या से ग्रस्त लोग सूर्य नमस्कार शुरू करने से पहले उचित सलाह जरूर लें.महिलाएं पीरियड के दौरान सूर्य नमस्कार और अन्य आसन न करें.