Monday, April 26, 2021

योग चिकित्सा और सेवा

वर्तमान में योग एक बहुत प्रचलित शब्द है, जिसका अर्थ है जोड़ना। यहां पर जोड़ने से तात्पर्य स्थूल को सूक्ष्म से जोड़ने से है। योग का सम्बन्ध मनुष्य की वैयक्तिक चेतना का ब्रह्मांडीय चेतना के मिलन से है। योग के आदि प्रणेता भगवान शिव हैं। शरीर के आंतरिक विकारों को दूर कर मन एवं चित्त को स्थिर करने तथा अन्त:करण को शुद्ध कर असीम आनंद की प्राप्ति के लिए विकसित यौगिक प्रक्रिया ही योग कहलाती है। योग के कुल आठ अंग हैं। इसी कारण इसे अष्टांग योग कहा जाता है। इसके अभ्यास से मानव साधारण से विलक्षण बन सकता है।

बचपन से मैंने अपने घर में घर में सूर्य नमस्कार से संबंधित बहुत सारी किताबें भी रखी देखीं थी और यही समझा था कि योगासनों में से सर्व श्रेष्ठ  सूर्य नमस्कार है । इसे करने से  शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक सभी प्रकार का लाभ प्राप्त होता है।इसे सर्वांग व्यायाम भी कहा जाता है। केवल इसका ही नियमित रूप से अभ्यास व्यक्ति को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है। इसके अभ्यास से व्यक्ति का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। 'सूर्य नमस्कार' स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों के लिए भी उपयोगी बताया गया है। 


हमारे ऋषि मुनियों ने योग के द्वारा शरीर मन और प्राण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति के लिए आठ प्रकार के साधन बताएँ हैं, जिसे अष्टांग योग कहते हैं.ये निम्न हैं- यम नियम आसन प्राणायाम प्रात्याहार धारणा ध्यान समाधि.

सूर्य नमस्कार 12 योगासनों को मिलाकर बनाया गया है. हर एक आसान का अपना महत्व है. इसे करने वालों का कार्डियोवस्कुलर स्वास्थ्य अच्छा रहता है. साथ ही शरीर में खून का संचार भी दुरुस्त होता है. सूर्य नमस्कार के जरिए आप अपना तनाव कम कर सकते हैं और इससे शरीरी को डिटॉक्स करने में मदद मिलती है.



ज्योत‌िषशास्‍त्र में सूर्य को आत्मा का कारक बताया गया है। न‌ियम‌ित सूर्य को जल देने से आत्म शुद्ध‌ि और आत्मबल प्राप्त होता है। सूर्य को जल देने से आरोग्य लाभ म‌िलता है। सूर्य को न‌ियम‌ित जल देने से सूर्य का प्रभाव शरीर में बढ़ता है और यह आपको उर्जावान बनाता है। कार्यक्षेत्र में इसका आपको लाभ म‌िलता है। ज‌िनकी नौकरी में परेशानी चल रही हो वह न‌ियम‌ित सूर्य को जल देना शुरु करें तो उच्चाध‌िकारी से सहयोग म‌िलता है और मुश्क‌िलें दूर होती हैं।

शास्‍त्रों में भी कहा गया है क‌ि हर द‌िन सूर्य को जल देना चाह‌िए और बहुत से लोग इस न‌ियम का पालन भी करते हैं। लेक‌िन इसके भी न‌ियम हैं ज‌िन्हें जानकर सूर्य को जल दें तो जीवन के व‌िभ‌िन्न क्षेत्रों में इसका लाभ प्राप्त क‌िया जा सकता है। महाभारत में कथा है क‌ि कर्ण न‌ियम‌ित सूर्य की पूजा करते थे और सूर्य को जल का अर्घ्य देते थे। सूर्य की पूजा के बारे में भगवान राम की भी कथा म‌िलती है क‌ि वह भी हर द‌िन सूर्य की पूजा और अर्घ्य द‌िया करते थे। 
सूर्य-नमस्कार के नियमित अभ्यास से शारीरिक और मानसिक स्फूर्ति की वृद्धि के साथ विचारशक्ति और स्मरणशक्ति भी तीव्र होती है। शरीर की चर्बी कम होती है और रीढ़ की हड्डी में लचीलापन आता है। 



इसके अलावा दमा, पुरानी खांसी या फेफड़ों संबंधी अन्य बीमारी में इस आसन को करने से आराम मिलता है। इससे बाजुओं में भी ताकत आती है।सूर्य नमस्कार खाली पेट सुबह किया जाता है। सूर्य नमस्कार के प्रत्येक दौर में दो सेट होते हैं, और प्रत्येक सेट 12 योग आसान से बना होता है। 

सूर्य नमस्कार 12 शक्तिशाली योग आसन का एक अनुक्रम है। एक कसरत होने के अलावा, सूर्य नमस्कार को शरीर और दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए भी जाना जाता है.  प्रणामासन  हस्तोत्तानासन . हस्तपादासन अष्वसंचलनासन दण्डासन अष्टांग नमस्कार भुजंगासन अधोमुखस्वानासनअश्व  संचलनसाना हस्तपादासन हस्तोत्तानासन ताड़ासन

सूर्य नमस्कार के  मंत्र : रवये नमः सूर्याय नमः भानवे नमः खगाय नमः पूष्णे नमः हिरण्यगर्भाय नमः मरीचये नमः आदित्याय नमः सवित्रे नमः अर्काय नमः भास्कराय नमः श्री सबित्रू सुर्यनारायणाय नमः

सूर्य नमस्कार का अभ्यास बारह स्थितियों में किया जाता है, जो निम्नलिखित है-

प्रणाम मुद्रा : दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित करके 'सूर्य' का आह्वान 'ॐ मित्राय नमः' मंत्र के द्वारा करें।

हस्त उत्तानासन: श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।

पाद हस्तासन या पश्चिमोत्तनासन : तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
अश्व संचालन आसन : इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।

पर्वतासन : श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।

अष्टांग नमस्कार : श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को 'अनाहत चक्र' पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।

भुजंगासन : इस आसन को करने के लिए जमीन पर पेट के बल लेट जाएं। चेहरा ठोड़ी पर टिकाएं कोहनियां कमर से चिपकाकर रखें और हथेलियों को ऊपर की ओर करके रखें। दोनों हाथों को कोहनी से मोड़ते हुए आगे लाएं और बाजुओं के नीचे रखें। 

 इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।
इस स्थिति में 30 सेकेंड तक रुकना है। शुरुआत में ऐसा न कर पाएं, तो उतनी देर करें जितनी देर आराम से कम पा रहे हैं। बाद में सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे सिर को नीचे लाकर ठोड़ी को जमीन पर रखें और हाथों को पीछे ले जाकर ढीला छोड़ दें।

इसके दूसरे हिस्से में दोनों हथेलियों को सामने की ओर लाकर ठोड़ी के नीचे रखें। अब पहले की तरह सांस धीरे-धीरे लेते हुए सिर से शरीर को ऊपर की ओर उठाएं। कंधे से कमर तक का हिस्सा हथेलियों के बल पर ऊपर उठाएं। इस अवस्था में 30 सेकेंड तक रहना है और फिर धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए वापस उसी अवस्था में लौट आएं। इस आसन को करते समय शरीर को कमर से उतना ही पीछे ले जाएं जितना आसानी से हो सके। लचीलापन एकदम से नहीं आएगा, अनावश्यक दबाव डालने से पीठ, छाती, कंधे या हाथों की मांस-पेशियों में दर्द हो सकता है। पीठ या कमर में ज्यादा दर्द हो तो भी यह आसन नहीं करना चाहिए।

पर्वतासन: श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।

अश्व संचालन आसन : इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें। 

हस्तासन :तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।

हस्त उत्तानासन: श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।

प्रणाम मुद्रा : यह स्थिति पहली मु्द्रा की तरह है अर्थात नमस्कार की मुद्रा। बारह मुद्राओं के बाद पुन: विश्राम की स्थिति में खड़े हो जाएं। अब इसी आसन को पुन: करें। 

सूर्य नमस्कार शुरुआत में 4-5 बार करना चाहिए और धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर 12-15 तक ले जाएं।
 यह स्थिति - पहली स्थिति की भाँति रहता है। सूर्य नमस्कार प्रार्थना करते समय  सूर्य मंत्र का  उच्चारण  भी करना चाहिए ।

सूर्य नमस्कार शुरू करने के कुछ ही समय के भीतर आप अपनी शारीरिक और मानसिक स्थिति में काफी अंतर पाएंगे. एक नजर सूर्य नमस्कार के 10 फायदों पर...

निरोगी काया  
सूर्य नमस्कार को डेली रूटीन में शामिल कर सही तरीके से किया जाए तो आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आएगी. 12 आसनों के दौरान गहरी सांस लेनी होती है जिससे शरीर को फायदा होता है.

बेहतर पाचन तंत्र
सूर्य नमस्कार के दौरान उदर के अंगों की स्ट्रेचिंग होती है जिससे पाचन तंत्र सुधरता है. जिन लोगों को कब्ज, अपच या पेट में जलन की शिकायत होती है, उन्हें हर सुबह खाली पेट सूर्य नमस्कार करना फायदेमंद होगा.

सूर्य नमस्कार करने से पेट कम होता है
आसनों से उदर की मांसपेशी मजबूत होती है. अगर इन्हें रेगुलर किया जाए, तो पेट की चर्बी कम होती है.

डिटॉक्स करने में मिलती है मदद
आसनों के दौरान सांस साँस खींचना और छोड़ने से फेंफड़े तक हवा पहुंचती है. इससे खून तक ऑक्सीजन पहुंचता है जिससे शरीर में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड और बाकी जहरीली गैस से छुटकारा मिलता है.

मानसिक चिंता से मुक्ति
सूर्य नमस्कार करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है और नर्वस सिस्टम शांत होता है जिससे आपकी चिंता दूर होती है. सूर्य नमस्कार से एंडोक्राइन ग्लैंड्स खासकर थॉयरायड ग्लैंड की क्रिया नॉर्मल होती है.

शरीर में लचीलापन आता है
सूर्य नमस्कार के आसन से पूरे शरीर का वर्कआउट होता है. इससे शरीर फ्लेक्सिबल होता है.

मासिक-धर्म रेगुलर होता है
अगर किसी महिला को अनियमित मासिक चक्र की शिकायत है, तो सूर्य नमस्कार के आसन करने से परेशानी दूर होगी. इन आसनों को रेगुलर करने से बच्चे के जन्म के दौरान भी दर्द कम होता है.

रीढ़ की हड्डी को मिलती है मजबूती
सूर्य नमस्कार के दौरान स्ट्रेचिंग से मांसपेशी और लीगामेंट के साथ रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है और कमर लचीला होता है.

सूर्य नमस्कार से आप रहेंगे जवान
सूर्य नमस्कार करने से चेहरे पर झुर्रियां देर से आती हैं और स्किन में ग्लो आता है.

वजन कम करने में मदद
सूर्य नमस्कार करने आप जितनी तेजी से वजन कम कर सकते हैं, उतनी जल्दी डायटिंग से भी फायदा नहीं होता. अगर इसे तेजी से किया जाए तो ये आपका बढ़िया कार्डियोवस्कुलर वर्कआउट हो सकता है.

योग मांस पेशियों को पुष्ट करता है और शरीर को तंदुरुस्त बनाता है, तो वहीं दूसरी ओर योग से शरीर से फैट को भी कम किया जा सकता है. . ब्लड शुगर लेवल करे कंट्रोल: योग से आप अपने ब्लड शुगर लेवल को भी कंट्रोल करता है और बढ़े हुए ब्लड शुगर लेवल को घटता है. डायबिटीज रोगियों के लिए योग बेहद फायदेमंद है.

सूर्य नमस्कार गर्भवती महिला तीसरे महीने के गर्भ के बाद से इसे करना बंद कर दें.हर्निया और उच्च रक्ताचाप के मरीजों को सूर्य नमस्कार नहीं करने की सलाह दी जाती है.पीठ दर्द की समस्या से ग्रस्त लोग सूर्य नमस्कार शुरू करने से पहले उचित सलाह जरूर लें.महिलाएं पीरियड के दौरान सूर्य नमस्कार और अन्य आसन न करें.





विहंगम योग साधना और सेवा

विहंगम योग साधना और सेवा



पद्मासन मुद्रा में यौगिक ध्यानस्थ शिव-मूर्ति
योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम होता है। योग’ शब्द ‘युज समाधौ’ आत्मनेपदी दिवादिगणीय धातु में ‘घं’ प्रत्यय लगाने से निष्पन्न होता है। इस प्रकार ‘योग’ शब्द का अर्थ हुआ- समाधि अर्थात् चित्त वृत्तियों का निरोध। 





वैसे ‘योग’ शब्द ‘युजिर योग’ तथा ‘युज संयमने’ धातु से भी निष्पन्न होता है । इस प्रकार योग शब्द का अर्थ  योगफल, जोड़ तथा नियमन होगा। आत्मा और परमात्मा के  योग को सही अर्थों में योग कहा गया है।सामान्य भाव में योग का अर्थ है जुड़ना। यानी दो तत्वों का मिलन योग कहलाता है। आत्मा का परमात्मा से जुड़ना।



है



 गीता में श्रीकृष्ण ने एक स्थल पर कहा है 'योगः कर्मसु कौशलम्‌' ( कर्मों में कुशलता ही योग है।) यह वाक्य योग की परिभाषा नहीं है। कुछ विद्वानों का यह मत है कि जीवात्मा और परमात्मा के मिल जाने को योग कहते हैं। 
गीता में योग शब्द  का  कई अर्थों में प्रयोग हुआ है  । 


योग का पथ  अंतत: ईश्वर से मिलने का मार्ग है। गीता में योग के  मुख्यत: तीन प्रकार  हैं ।ये तीन योग
हैं, ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग। योग में शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम होता
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते । तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु
कौशलम्  ।। 


अर्थात  योग बुद्धि युक्त व्यक्ति सुकर्म और दुष्कर्म दोनों को त्याग देता है और साक्षी भाव
से कर्म करता है।  कर्मो में कुशलता ही योग है । 


पाप–पुण्य से अलिप्त रहकर कर्म करने की समत्वबुद्धिरूप ही युक्ति है, और इसी कुशलता से कर्म करने को गीता में योग; कहा गया है। यज्ञके  लिए  किए गए कर्म बंधक नहीं हैं, शेष सब कर्म बंधक हैं।कर्म सकाम निष्काम दो प्रकार के होते हैं

नित्यकर्म के करने से विशेष फल अथवा अर्थ की सिद्धि नहीं होती, परन्तु न करने से दोष अवश्य लगता
है। सकाम कर्म अर्थात विवाह और पुत्रादि की कामना से किये गए कर्म  पाप  पुण्य के परिणाम से जुड़े होते
हैं.  वहीँ निष्काम कर्म ईश्वर को समर्पित होते हैं.  


ज्ञान की प्राप्ति हो जाने पर पाप–पुण्य की बाधा से परे  युक्ति के साथ कर्म  करने को  ही कार्यों को करने
का कौशल कहा गया  है। गीता में इसे सन्यास  और कर्मयोग कहा है । 
 



ऋषि-मुनियों ने योग के द्वारा शरीर, मन और प्राण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति के लिए आठ
प्रकार के साधन बताये हैं, जिसे अष्टांग योग कहते हैं।  ये आठ अंग हैं -
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि। धारणा, ध्यान तथा समाधि को
अंतरंग साधन  या  योग कहा गया है। 
 


'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः', चित्त की वृत्तियों के निरोध का नाम योग है।महर्षि पतंजलि के अनुसार योग- ”योगश्चित्त वृत्ति निरोध:” चित्त की वृत्तियों का रोकना ही योग है।  मन के भटकाव के नियंत्रण की अवस्था का नाम योग है जैसे तालाब के शांत जल में यदि कंकड़ फेंका जाता है  तो उसमें तरंगें
उत्पन्न होने लगती  हैं  । उसमें छोटी-छोटी और बड़े आकार के वृत्तों वाली कई तरंगें उत्पन्न होने लगती
हैं और उस अशांत जल में मनुष्य का चेहरा स्पष्ट नहीं  दिखता  और शांत स्थिर जल में आकृति स्पष्ट
दिखती है  । इसी प्रकार हमारे चित्त की वृत्तियां हैं इंद्रियों के विषयों के आघात से उसमें अनेक तरंगें
उत्पन्न हो जाती हैं और उत्पन्न तरंगों के कारण मानव अपने निज स्वरूप को नहीं देख पाता। यदि उसकी
चित्तवृत्तियां समाप्त हों जाएँ  तो वह अपने निज आत्मस्वरूप को देखने में सक्षम हो जाता
है। 


भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है अनन्याश्चितयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते | तेषां
नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहं ||अर्थात  जब  पवित्र उद्देश्य से, आत्मसंयम के साथं , संकल्प को बनाये रख कोई भी कार्य कियाजाता  है  तो  यह उत्तरदायित्व स्वयं ‘प्रभु’ अपनी इच्छा से निभाते  हैं और तब हम कार्य करने का मात्र‘माध्यम’ होते हैं.

 


यदि ऐसा हो जाए तो फिर समाधि से उठना संभव नहीं होगा। क्योंकि उस अवस्था के सहारे के लिये कोई भी संस्कार बचा नहीं होगा, प्रारब्ध दग्ध हो गया होगा। निरोध यदि संभव हो तो श्रीकृष्ण के इस वाक्य का क्या अर्थ होगा? योगस्थः कुरु कर्माणि, योग में स्थित होकर कर्म करो। विरुद्धावस्था में कर्म हो नहीं सकता और उस अवस्था में कोई संस्कार नहीं पड़ सकते, स्मृतियाँ नहीं बन सकतीं, जो समाधि से उठने के बाद कर्म करने में सहायक हों।


संक्षेप में आशय यह है कि योग के शास्त्रीय स्वरूप, उसके दार्शनिक आधार, को सम्यक्‌ रूप से समझना बहुत सरल नहीं है। संसार को मिथ्या माननेवाला अद्वैतवादी भी निदिध्याह्न के नाम से उसका समर्थन करता है। 

 
 



अनीश्वरवादी सांख्य विद्वान भी उसका अनुमोदन करता है। बौद्ध ही नहीं, मुस्लिम सूफ़ी और ईसाई मिस्टिक भी किसी न किसी प्रकार अपने संप्रदाय की मान्यताओं और दार्शनिक सिद्धांतों के साथ उसका सामंजस्य स्थापित कर लेते हैं।योग कक्षा में सभी वॉलिंटियर्स बहुत ही अनुशासित और अपने कार्य के प्रति समर्पित रहते। वे योग
का महत्व बहुत अच्छे से समझने लगे थे। योग आध्यात्म से ही संबंधित नहीं है यह एक पूर्ण
विज्ञान हैI




यह शरीर, मन, आत्मा और ब्रह्मांड को एकजुट करती हैI यह हर व्यक्ति को शांति
और आनंद प्रदान करता हैI योग द्वारा वोलेंटियर्स के व्यवहार, विचारों और रवैये में बहुत
महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है। जीवन में आने वाले विरोध, स्पर्धा, संघर्ष और दुःख तनाव या चिंता का कारण बनते हैं । 


हम अपने ‘योग’ तथा ‘क्षेम’ की चिंता से ग्रस्त रहा करते हैं | अब, जब हम, उस शाश्वत अनंत  से परिचित हो
ही चुके हैं तो  “कर्म” में ही हम विश्वास और आस्था रखें फल  में नहीं 
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणियोगगुरु के रूप में जब मैं इंजीनियरिंग कॉलेज मुंबई के एनएसएस के वोलेंटियर्स को प्रशिक्षण दे रही थी
तब बहुत सी  घटनाएं  हुई  जो मधुर और अविस्मरणीय है। जिन्हें एक बार में लिखना तो बहुत मुश्किल हैधीरे-धीरे टुकड़ों में लिखती रहूंगी।इस दौरान  छोटे छोटे गांवों के चहुंमुखी विकास के लिए बहुत सारे कार्यक्रम किए गए ।
 
 

मुंबई से थोड़ी दूर पर गुलसुंदे नाम का एक गांव में लगभग आठ सौ साल
से भी ज्यादा पुराना सिद्ध शिव मंदिर है । वही शिव मंदिर के पास पातालगंगा नाम की नदी
बहती रहती है। यह गांव और मंदिर बहुत ही सुंदर और शांत स्थल है। गांव वालों के साथ
मिलकर गांव की प्रगति के लिए कार्य करना शुरू किया। योगाभ्यास  से विद्यार्थियों का जीवन
सकारात्मक  रूप से  को बहुत प्रभावित हुआ है । हमारे वॉलिंटियर्स और स्टाफ मेंबर्स सभी एकजुट
होकर घुल मिलकर इतने अच्छे से कार्यरत थे कि लगता ही नहीं था कि केवल आठ दिन के
लिए यहां पर है। योगगुरु के रूप में, मुझे वॉलिंटियर्स को बुनियादी सूर्य नमस्कार सिखाने के
लिए कहा गया था. प्रतिदिन सुबह सूर्योदय के समय के योग ध्यान भजन के दैनिक अभ्यास से
सभी कार्यकर्ताओं में अंतः-शांति, संवेदनशीलता, अंतर्ज्ञान और जागरूकता और बढ़ती और वे
ज्यादा परफेक्शन से कार्य करते। 

एनएसएस या राष्ट्रीय सेवा योजना के तहत राष्ट्र शक्ति का विकास
युवाओं द्वारा किया जाता है।यह युवाओं की पर्सनैलिटी डेवलपमेंट  और स्किल डेवलपमेंट में बहुत
सहायक होता है। अधिकांशतः पीड़ा का कारण   भावनाओं  का अनियंत्रित प्रवाह होता  है। चौबीस घंटे एक ही परिसर मेंरहने की वजह से विद्यार्थी   बहुत ही ज्यादा तनावग्रस्त होते  उनको उनकी समस्या सबसे बड़ी लगती ऐसे में योगाभ्यास  उनकी भावनाओं को नियंत्रित और संतुलित करने का कार्य करता ।





अकेलापन उदासभावनाएं मानसिक बीमारी का कारण बनती हैं योगाभ्यास से मन की निर्मलता, तप की वृद्धि, दीनताका क्षय, शारीरिक आरोग्य एवं समाधि में प्रवेश करने की क्षमता प्राप्त होती है .




बौद्धमतावलम्बी भी, जो परमात्मा की सत्ता को स्वीकार नहीं करते, योग शब्द का व्यवहार करते और योग का समर्थन करते हैं।यह शब्द - प्रक्रिया और धारणा - हिन्दू धर्म,जैन पन्थ और बौद्ध पन्थ में ध्यान प्रक्रिया से सम्बन्धित है। योग शब्द भारत से बौद्ध पन्थ के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्री लंका में भी फैल गया है और इस समय सारे सभ्य जगत्‌ में लोग इससे परिचित हैं।




यही बात सांख्यवादियों के लिए भी कही जा सकती है जो ईश्वर की सत्ता को असिद्ध मानते हैं। योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः इस वाक्य के दो अर्थ हो सकते हैं: चित्तवृत्तियों के निरोध की अवस्था का नाम योग है या इस अवस्था को लाने के उपाय को योग कहते हैं
 


भगवद्गीता में योग शब्द का कई बार प्रयोग हुआ है, कभी अकेले और कभी सविशेषण, जैसे बुद्धियोग, सन्यासयोग, कर्मयोग। वेदोत्तर काल में भक्तियोग और हठयोग नाम भी प्रचलित हो गए हैं। परन्तु इस परिभाषा पर कई विद्वानों को आपत्ति है। उनका कहना है कि चित्तवृत्तियों के प्रवाह का ही नाम चित्त है। पूर्ण निरोध का अर्थ होगा चित्त के अस्तित्व का पूर्ण लोप, चित्ताश्रय समस्त स्मृतियों और संस्कारों का नि:शेष हो जाना। इन विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं में किस प्रकार ऐसा समन्वय हो सकता है कि ऐसा धरातल मिल सके जिस पर योग की भित्ति खड़ी की जा सके, यह बड़ा रोचक प्रश्न है परंतु इसके विवेचन के लिये बहुत समय चाहिए। यहाँ उस प्रक्रिया पर थोड़ा सा विचार कर लेना आवश्यक है जिसकी रूपरेखा हमको पतंजलि के सूत्रों में मिलती है। थोड़े बहुत शब्दभेद से यह प्रक्रिया उन सभी समुदायों को मान्य है जो योग के अभ्यास का समर्थन करते हैं।पतंजलि योगदर्शन में क्रियायोग शब्द देखने में आता है।





पाशुपत योग और माहेश्वर योग जैसे शब्दों के भी प्रसंग मिलते है। इन सब स्थलों में योग शब्द के जो अर्थ हैं एक दूसरे से भिन्न हैं । योग आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यक्ता है। यह केवल व्यायाम की प्राचीन पद्धति ही नहीं है बल्कि कई शारीरिक मानसिक बीमारियों का समाधान भी है। योग गुरु के रूप में वोलेंटियर्स से सुबह मात्र कसरत करवाने से वोलेंटियर्स को दिनभर कार्य करने की ऊर्जा मिलती थकान नहीं आती और दिन भर कार्य करने के लिए शरीर का लचीलापन भी बढ़ाता