दूसरी बात आज लोगों के मन में भगवान का डर समाप्त हो चुका है भावनाएं मर चुकी हैं संवेदनाये दम तोड़ रही हैं . वे आतंकवाद, अग्रवाद की ही डगर पर ही चलना चाहते हैं और दूसरों को अपने चरित्र चित्रण से भयभीत रखना चाहते हैं जैसे उनका जन्म ही अपराधी बनने के लिए हुआ हो ।
एक घटना -राजधानी दिल्ली में 20 साल से एक साथ रह रहे एक जोड़े ने आपसी सहमति से अलग रहने का नियम किया जिसमे अलग रहने के लिए पति गुजारा भत्ता के तौर पर पत्नी को पांच करोड़ रूपये देता है । दोनों के इस आपसी फैसले पर दिल्ली के साकेत फेमिली कोर्ट ने मुहर लगायी ।दिल्ली के कोलोनाइज़र के पुत्र ने अपनी पत्नी को मेंटेंस के रूप में पांच करोड़ रूपये दिए । सन 1991-92 में इस जोड़े की शादी हुई थी। फरवरी 2012 में दोनों ने आपसी सहमती से तलाक के लिए फेमिली कोर्ट में आवेदन किया जब कोर्ट में केस चल रहा था, उस दौरान पति ने पांच करोड़ की रकम पत्नी को समझौते के तौर पर देने की बात रखी और पत्नी इसपर राजी हो गई। इस 5 करोड़ की राशि में से पत्नी ने एक घर खरीदा और बैंक से पढाई के लिए लिया गया कर्जा चुकाया।
दूसरी घटना सरला की पडोसी से सम्बंधित है. सरला की पड़ोसन गुप्ता आंटी पढ़ी लिखी एम . ए . एम . एड .हैं जो अपने गुणगान और दूसरों कि निंदा स्तुति से प्रसन्न रहती हैं. गुप्ता आंटी के परिवार में सभी महिलाएं बहुत पढ़ी लिखी थी. उनकी एक बहिन डॉक्टर तो दूसरी प्राचार्या तो तीसरी एमबीए है .गुप्ता आंटी के लड़के का तलाक था. जिसमे उनकी बहु ने पत्नी की हैसियत से पति की सम्पति पर, या तनख्वाह पर अपने अधिकारों की मांग की थी. परन्तु यह गुप्ता आंटी के पूरे परिवार के लिए बड़ी मुश्किल की घडी थी । गुप्ता आंटी और उनके पुत्र कभी चाहते ही नहीं थे कि विवाहिता का स्त्रीधन या उसकी साधारण सी वस्तुए भी जैसे कपडे आदि भी लौटाई जाये। " चमड़ी जाये दमड़ी न जाये."
आस -पड़ोस की महिलाएं आस-पास ही थीं . सरला भी वहीँ थी और सोच रही थी अब तो गुप्ता आंटी को कानून की बात माननी होगी . अतः उसने गुप्ता आंटी से मामला पूछा .गुप्ता आंटी ने दो टूक जबाव दे दिया इतनी पढ़ी लिखी लड़की है वो नौकरी करेगी और नौकरी करे तो पैसा नहीं देना होगा. ऐसे ही नाम मात्र के लिए कोई भी सामान थमा देंगे .सरला बड़े ही आश्चर्य से गुप्ता आंटी को देख रही थी कि स्वयं वे अपने पति के बाद उनकी संपती की मालकिन है और बिना नौकरी के सारा जीवन बिता रही है फिर उन्होंने यही बात अपने लिए क्यों नहीं सोची ? उनके पति ने उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी जिम्मेदारी और रक्षा का दायित्व पूरा किया. इतनी सुशिक्षित औरत भी औरत के दर्द को नहीं जानती? इस तरह की मानसिकता रखती हैं ?
गुप्ता आंटी ने उनके बड़े बेटे के विवाह की नींव ही झूठ और छल कपट पर बनायीं थी अतः इमारत तो ढहना ही थी। वे अपने बड़े बेटे का विवाह छोटे शहर की लड़की से कर देती हैं . गुप्ता आंटी की मानसिकता यह थी कि यदि बड़े शहर कि लड़की लायेंगे तो वह जागरूक , सुशिक्षित और आधुनिक परिवेश का अनुसरण करने वाली होगी जो हमारे साथ नहीं रह पायेगी और हमारा सारा भेद खोल देगी. इसके साथ ही महानगर के रहन सहन और खान- पान और मकान की सुविधाएँ चाहेगी और अगर छोटे शहर की लड़की को बहु के रूप में लायेंगे तो वह हम जैसा रखेंगे रहेगी . हमारी बात सहन करेगी और दो रोटी खाके एक कोने में पड़ी रहेगी. अगर ऐसा नहीं करेगी तो उसको कोड़े मार -मार के सुधार लेंगे या नहीं सुधरी उसके पति से मरवायेंगे या फिर भी नहीं मानी तो आग लगा कर मार डालेंगे और कोई छोटा सा प्राक्रतिक आपदा का बहाना बना देंगे कि खाना बनाते नहीं बनता था गाँव की थी ज्यादा पढ़-लिख गयी थी. उसकी माँ ने उसे कुछ सिखाया नहीं , इसलिए गैस जलाने में मर गयी . हम तो घर में थे ही नहीं. हम सब तो बाहर गाँव गए थे हमें कुछ पता नहीं है इस हादसे के बारेमें। गुप्ता आंटी के घर में एक नहीं ऐसे कई प्राकृतिक हादसे हो चुके थे. उन्हें हत्या करने का अनुभव था क्यूंकि यह उनके लिए पीढी दर पीढी पालन की जाने वाली परंपरा का मात्र एक हिस्सा था . जैसे पहले की औरतें मर गयी और कह दिया गया की वह तो गुस्से वाली थी गुस्से में मर गयी वेसे ही इसको मार कर कह देंगे गुस्से की तेज़ थी मर गयी .
सरला और अन्य पड़ोसियों को पता थी की गुप्ता आंटी अपने छोटे बेटे का विवाह करने हेतु ही अपने बड़े बेटे के विवाह का षड़यंत्र रच रही है .क्यूंकि यदि छोटे पुत्र के विवाह बड़े पुत्र के विवाह के पहले कर दिया तो सम्बन्धीजन ये न समझे की बड़ा पुत्र कुकर्मी है इसलिए इसकी शादी नहीं हो रही। गुप्ता आंटी अच्छाई का मुखोटा पहिने रहती थी. इसलिए उस समय गुप्ता आंटी को कोई कुछ कह नहीं सका.
परन्तु यह सत्य है "जाको रखे सैयां मार सके न कोई". सौभाग्यवश, लड़की को भी उसकी सास और ससुराल के षड़यंत्र का और वास्तविकता का पता चल गया असली क्या है नकली क्या है इसकी पहचान हो गयी. वो समझ गयी नाटक करना ही इन सबका शगल है इनके अन्दर कोई भाव नहीं है. उसने प्रयत्न किये की उनके अंतस के भावों को जगा सके पर वो ऐसा नहीं कर पाई. लड़की को यह समझ में आ गया कि वह उसके पति के लिए मात्र कामनाश का साधन थी , महज इस्तेमाल करने वाला शरीर थी जो इस्तेमाल करने के बाद व्यर्थ समझ कचरे के डिब्बे में सड़ने के लिए फेंक दिया जाता है. इस तरह उसकी जीवन से बची- खुची उम्मीद भी टूट जाती है उसका विश्वास उसका निस्स्वार्थ प्रेम हार जाता है. वो समझ जाती है कि इस उधडे हुए रिश्ते पर दुबारा सिलाई नहीं की जा सकती है. वैसे ही जैसे दिल पर लगे जख्मों की सिलाई उधड़ जाने पर पुन जीवन दान प्राप्त करने चिकत्सकीय शल्य -क्रिया लाभदायक नहीं होती है. अतः अक्षमनीय आपराधिक प्रवृती का आभास कर वह सुरक्षित शरण मायके में आश्रय पा जाती है.
सर्वे से यह भी ज्ञात हुआ की " ऐसे प्रकरण को बताने में बहुओं को ससुराल वालों से अपनी जान जाने का डर था। इसलिए उन्होंने इन प्रकरणों को जितना दबाया जा सकता था दबाया। परन्तु जब वह और बढ़ता ही चला गया है तब पुलिस की सहायता लेनी पड़ी । जब ससुराल द्वारा पैसे मांगे जाते और पैसे देने के बावजूद भी उन्हें प्रेम और सम्मान नहीं मिला, न्याय नहीं मिला तो उन्हें कानून का सहारा लेना पड़ा | कानून ने उनकी समस्याओं और झगड़ों को हल किया और उन्हें न्याय मिला।"
गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘रामचरित मानस’ में लिखा है कि - छोटी आयु में पिता को, विवाह के बाद पति को तथा प्रौढ़ होने पर पुत्र को नारी की रक्षा का दायित्व सौंपा जाता है।नारी के प्रति किसी भी प्रकार के असम्मान को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है चाहे नारी शत्रु पक्ष की ही क्यों ना हो तो भी उसको पूरा सम्मान देने की परम्परा भारत में है।भगवान श्री राम बालि से कहते हैं,"अनुज बधू, भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी।। इन्हहिं कुदृष्टि विलोकई जोई। ताहि बधे कछु पाप न होई।।" (छोटे भाई की पत्नी, बहिन, पुत्र की पत्नी कन्या के समान होती हैं। इन्हें कुदृष्टि से देखने वाले का वध कर देना कतई पापनहीं है।)
अब वह समय आ गया है जब आज इक्कीसवीं सदी की नारी को खुद को सोचना है कि वह कैसे स्थापति होना चाहती है पूज्या बनकर या भोग्या बनकर ?जथा रात के अँधेरे को दूर करने के लिए दिए की रोशनी करनी ही पड़ती है यथा मन के अँधेरे को दूर करने के लिए सद्विचारो का अलख जगाना ही पड़ता है , संस्कारों की रौशनी जलानी ही पड़ती है। अन्यथा अंधेरों में भटककर न तो मंजिल की दिशा ही तय की जा सकती है और न ही मंजिल का ही निर्धारण किया जा सकता है.