जुलाई 2022
इंदौर से तिरुपति और कालाहस्ती शिव मंदिर यात्रा हवाई और ट्रेन यात्रा जैसे ईश्वर का एक और सुन्दर वरदान। घर से इंदौर एयरपोर्ट भी खेल खेल में ही पहुँच गए। इंदौर का एयरपोर्ट जैसे बस स्टैंड सोचा ही नहीं था की एयर पोर्ट भी ऐसा होता होगा। इंदौर एयरपोर्ट से ब्रेक जर्नी बैंगलोर होते हुए चेन्नई तक और चेन्नई से बस यात्रा तिरुपति तक.. इतनी सुंदर अकस्मात यात्रा जिसको याद करना और अपने स्वजनों को बताना निश्चित ही हर्ष का कारण होगा. . पता ही नहीं चला कब इंदौर से तिरुपति पहुँच गए, जैसे ईश्वर ने सरे मार्ग पहले से ही मेरे लिए निर्धारित करके रखे हुए थे.. मुझे मेरे जीविकोपार्जन क्षेत्र अर्थात इंदौर की प्राइवेट यूनिवर्सिटी जहाँ मैं प्रोफेसर थी वहां से भी तीन दिन की छुट्टी आसानी से मिल गयी.
चेन्नई उतर कर ऐसा लगा ही नहीं जैसे किसी नवीन स्थान पर पहुंचे हों.. चेन्नई हवाई अड्डा और हवाई अड्डे से बाहर निकलना बिलकुल ही सहज स्वाभाविक
रोज की घटना जैसा लगा.' चेन्नई से लोकल रेड बस द्वारा १० या २० रुपये
किराया देकर चेन्नई बस स्टैंड तक पहुंचा जा सकता था।
परंतु एयर पोर्ट या स्टेशन के बाहर आते ही कैब टैक्सी वालों ने पकड़ लिया और मैंने
कैब कर ली। बस स्टैंड पर
अलग अलग स्थानों पर जाने वाली डीलक्स ,ऐसी , तमिलनाडु सरकार की
बसेस
खड़ी
हुई थीं.
चेन्नई एयरपोर्ट से बस स्टैंड तक जाते हुए चेन्नई के मरीना
समुद्र बीच
को देखा जो मुंबई के गंदे बीचेस से स्वच्छ और सूंदर था।
आराम से राम के साथ
बस में बैठे हुए
प्रकृति का आनंद
और खूबसूरती की
मन ही मन प्रशंसा
करते करते
किसी स्वच्छ
टी स्टाल पर
पहुंची।
दक्षिण भारत की विशेषता
कि
दक्षिण भारतीय अभी तक अपनी भारतीय परम्पराओं से बंधे हुए हैं।
यहाँ
प्रत्येक व्यक्ति के माथे पर त्रिपुण्ड या तीन धारी वाला चन्दन टीका शोभायमान
ही रहता है. किसी बच्चे का भी
माथा खाली नहीं दिखता और सुबह आठ या ज्यादा से ज्यादा
नौ बजे तक मंदिरों में दर्शन पूजन किये जा सकते है फिर मंदिर के पट बंद
हो जाते हैं ।
इस बात ने मुझे बहुत भावुक कर दिया और प्रभावित भी किया
ब्रह्म मुहूर्त में
स्नान ध्यान ईश्वर पूजन के महत्व को
भली भांति समझते हैं.
चूंकि
मैं
वर्ष २००४ से अभी तक हैदराबाद से कनेक्टेड रही हूँ अतः दक्षिण भारत का कल्चर खान -पान भाषा और वहां के स्थायी
निवासियों की बहुत
भावुक वाणी बात करने की विनम्र टोन और प्यारे मधुर व्यव्हार की हमेशा ही कायल रही हूँ.
अब १ घंटे ३५ मिंट की बाई
रोड
यात्रा करने का वह समय भी आ गया और हम डीलक्स बस
में सवार
सोचा ही नहीं था की सूंदर वादी और तिरुमला
पर्वत
पर चढ़ कर पहाड़ियोंसे बहते झरने और उनका कलकल नाद
सुनते हुए
सुहाना सफ़र और ये मौसम हंसीं
वाला गाना मूर्त रूप में जैसे प्रकट हो गया हो और बस
हमें डर है हम खो न जाएं कहीं सुहाना सफ़र
और ये मौसम हंसी।
पहाड़ी के चारो तरफ हरे- भरे वृक्ष कई तरह के पशु पक्षी की आवाजें,और प्रकृति पर और ईश्वर की रचना और उसकी सुंदरता भरी कृतियों पर ईश्वर के अस्तित्व का आभास बढ़ाता है .साधु सज्जन से अकस्मात ही मिलना, उनके दर्शन होना उनका आशीर्वाद शुभकामनायें प्राप्त होना इस बात की पुष्टि करता है की ईश्वर ईश्वर सबमे है.मैं देखूं जित और सखी री सामने मेरे सांवरियां।