Thursday, August 9, 2012

हे
 नाथ तुम्हे में भूलूँ ना
 
!! 



जल में थल में दूर गगन में ,

सुख में दुःख में,भीड़ सघन में

हे नाथ तुम्हे में भूलूँ ना!



दे दो इतना अंतर बल,

हूँ कभी ना विचलित भूले से !

तुम हो मुझमे और तुममे में,

जैसे कस्तूरी मृग अंतर में !



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