Saturday, November 10, 2012

वास्तविक स्वरूप

  वास्तविक स्वरूप 



          दशानन  का तात्पर्य होता है जिसके दस चेहरे हो या दस मुख हो .वर्तमान परिवेश में, कलयुगी दशानन लगभग हर क्षेत्र में चाहे वह राजनैतिक सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक या   कोई  अन्य  क्षेत्र हो  अपने छद्म  चेहरों के दम पर बलात्‌   एक नहीं अनेक   राम को ठगने का प्रयास नहीं छोड़ रहे है। एक चेहरा (मुखोटा ) उतरा तो फिर दूसरा तैयार हो जाता है . अकारण  वाद -विवाद द्वारा या दूसरों का तन मन धन एंठने के लिए अपने  ,उग्र रूप   से  किसी किसी विधि से लोगों को प्रताड़ित करते रहते हैं  हैं. वैसे हीजैसे झूठ बोलने का व्यवसाय करने वाले  वकील या उनके  परिवार के  सदस्य  होते हैं।
       रावन का मर्दन क्यों हुआ इसके अनेक कारण  है। पहला  कारण  है जब- जब  दशानन रुपी झूठ, छल, कपटवासना, क्रोध, भय, अहंकार , लालच, आसक्ति, इर्ष्या , द्वेष,घ्रणा की  अति  हुई  तब- तब   राम  रुपी प्रेम, संयम, साहससादगी, निस्वार्थता, पुनर्जागरण, कर्मठता, मित्रता, प्रशंसा  ,  घनिष्ठता के अवतार  ने रावन  का अस्तित्व  मिटाया और  राम  राज्य स्थापित  किया।
              दूसरा  कारण   है  रावण ने राम  की आदि-शक्ति सीता  पर कुदृष्टि डाली थी सीता   'शक्ति स्वरूपा' थी . रावण  राम से सीधे नहीं  लड़ सकता था . सीता- स्वयम्वर में   रावण उसी शिव जी के  धनुष की प्रत्यंचा को  नहीं चढ़ा सका था। जिस शिव जी के धनुष से सीता जी उनके बाल्यकाल में खेलती थी . रावण में इतनी शक्ति भी नहीं थी की  सीता के अपहरण के लिए  लक्ष्मण द्वारा खिंची गयी  रेखा को  पार कर  सके इसलिए उसने छद्मवेश द्वारा सीता जी को लक्ष्मण रेखा पार कराने  के लिए   ब्राह्मण का वेष धारण किया और सीता का अपहरण कर मूल स्वरुप में आकर  आकाश को अपने अट्टहास से गुंजायमान करता हुआ  वायु मार्गसे लंका पहुँच गया। रावण अहंकार वश   अपने आप को सर्व शक्तिमान समझता रहा ,वह   सर्व शक्ति मान नहीं था।  राम की सेना  का हर सैनिक रावण  से अधिक शक्तिमान था। सीता के वियोग में राम साधारण इन्सान से रोते -बिलखते जंगल -जंगल सीता की खोज करते रहे।

         इसी विरह- वेदना का  बदला श्रीराम ने  रावण से युद्ध कर निकाला। जब श्री राम वन -वन सीता को ढूंढ रहे थे  तब उनकी भेंट सुग्रीव  ,बालि ,हनुमान ,पक्षिराज (गरुढ़) जटायु और अनगनित वानर सेना से हुई  जिन्होंने सीता के जेवर गहने दिखाकरइस बात की पुष्टि की  वह  सीता  ही थी  जिसका हरण कर रावण  इस मार्ग से होकर गुजरा था इसी राम सेना ने  रावन के वध हेतु लंका पर विजय प्राप्त करने  समुद्र पर राम सेतु  बनाकर  रावण -वध  में राम की मदद की।

         जैसे शारदीय नवरात्र का महापर्व  आदिशक्ति की पूजा-उपासना का होता है, तथा दुर्गा सप्तशती के प्रत्येक अध्याय में नव दिनों में  नव देवी - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघण्टा  कुष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायिनी, कालरात्री, महागौरी, सिद्धिदात्री द्वारा  समस्त दुष्ट,अन्यायी,कुकर्मी का वध किया  जाता है। वैसे ही  राम द्वारा रावण का  मर्दन दशहरे के दिन होता है रावण अहंकार वश   अपने आप को सर्व शक्तिमान समझता रहा ,वह   सर्व शक्ति मान नहीं था।  राम सैनिक  शक्तिमान अंगद रावण की सभा में  रावण से  कहते हैं कि जितने रावणों के बारे में मैं जानता हूँ, तू सुन और बता कि उनमें से तू कौन-सा है

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'बलिहि जितन एक गयउ पताला। राखेउ बाँधि सिसुन्ह हयसाला॥
एक बहोरि सहसभुज देखा। धाइ धरा जिमि जंतु बिसेषा॥
एक कहत मोहि सकुच अति, रहा बालि कीं काँख।
इन्ह मह रावन तैं कवन , सत्य बदहि तजि माख॥'


                  कलयुगी रावण  घोर गर्जना के साथ राम को मिटाने की बात कह रहे  है। ऐसे रावण पूरे विश्व को एक ही संस्कृति में ढालना चाहते हैं,झूठ, छल, कपट, हिंसा . लड़ाई, मार पीट  के दम पर बलात्लोगों को छदम जीवन शैली में ढाल उनकी प्रतिष्ठा को कलंकित कर हैं.अब समय गया है  जब राम को कलयुग में जन्म लेना होगा  और अपने चेहरे पर मुखोटे  लगाये हुए  कलयुगी दशाननों को मिटाना होगा।



11 comments:

  1. bhavanaji aapaka lekh, aaj ke sandarbho me bahut satik hai, vastav me aaj ke dashanan rupi netao ne us kal ke ravan ko bhi pichhe chhpd diya hai, bhrastachar ka danav aaj pure samaj me kod ban kar fel gaya hai. ab is kaliyug ke ravan ko to pata nahi kon se marayada purushottam ram aakar dur karenge, aur sita rupi satya, aur naitikata ko aaj ke ravan se bachayenge,aapake dharmik, marmik aur nari shakti pujak lekh ke liye dhanyad.

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    त्यौहारों की शृंखला में धनतेरस, दीपावली, गोवर्धनपूजा और भाईदूज का हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  3. Wah kya baat hai... apne to kalyugi ravan ki puri rekhachitra khinch di. pura nibandh satik aur bandha hua hai. ek bhi line bikaar ka nahi hai. thode line me bahut kuchh kahne ki koshish hai. wakai bahut khoob likhti hain aap. likhte rahiye ...

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  4. Ab Sita ko bhi punar vyaakhyaaiyit karne ki zaroorat hai aur aap ki soch me vah kshmta hai jo yah kaary kar sakti hai. Oopar likha lekh saarthka hai aaj ke samay me.

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  5. इन दशाननों से निपटने के लिए कुछेक राम प्रयासरत तो हैं, देखें सफल होते भी हैं या नहीं।

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  6. बहुत सार्थक आलेख..दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  7. आलेख बहुत हि उत्तम है आज के समय का वास्तविक चित्रण किया गया है कलयुगी रावण का दहन करणे मे मै पुरी तरः से आपके साथ हु आलेख परिपक्व लेखन का परिचायक है धन्यवाद भावना बहिन

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  8. बहुत बढियां और सार्थक आलेख..
    :-)

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  9. आदरणीया भावनाजी अपने विचारों में आपने सही कहा है कि कलयुगी रावण आज हर क्षेत्र में मौजूद है. एन – केन – प्रकारेण धन अर्जन की हवस की प्रवृत्ति आज मानवीय संवेदनाओं को जबरदस्त चोट पहुंचा रही है. रावण का वध क्यों हुआ इसके कारणों पर विचार करेंगे तो मंथन के लिए जितना भी समय मिलेगा वह कम पड़ेगा लेकिन असल सवाल यह है कि आज के मौजूदा दौर में ऐसी प्रवृत्तियों पर रोक कैसे लगे....?
    आपने के विचार बिल्कुल प्रासंगिक और तार्किक हैं कि प्रेम, संयम, साहस , सादगी, निःस्वार्थता, पुनर्जागरण, कर्मठता, मित्रता, प्रशंसा, घनिष्ठता की भावना ने रावण का अस्तित्व मिटाया और राम राज्य स्थापित किया। लेकिन इस दौर में यह बेहद कठिन ही नहीं एक बड़ी चुनौती से कम नहीं है. दरअसल इंसानी प्रवृति में अमूमन जिस तेजी से बदलाव हुआ है उसमें एक नई और ख़तरनाक अवधारणा का उदभव हुआ है और वह है ‘शॉर्टकट ’. इस शॉर्टकट के चलते इंसान किसी भी विषय में न तो पारंगत होना चाहता है और न ही उस पारंगतता के चलते धन अर्जन की ओर प्रवृत्त होने की उसकी रुचि रह गई है. मौजूदा दौर में जिन्हें हम अपना आदर्श समझ कर कीमती वोटों के जरिए चुनते हैं वही बाद में पहचाने से इंकार कर देते हैं उम्मीद की बात तो बाद में आती है. इसकी एकमात्र वजह जो है और दिखती भी है वह है भृष्टाचार.......! आज देश में सबसे ज्यादा कोई हावी है तो वह है भृष्टाचार रूपी रावण. हमें इस रावण का अंत करना ही होगा इसके लिए हमें फिर से एक वानर सेना जैसे शक्तिशाली संगठन को तैयार करना होगा जो कि एक सशक्त, सुलझे और निःस्वार्थ नेतृत्व के अधीन काम करे. कलयुग में ऐसे राम को खोजना ही होगा. आपने बहुत ही सार्थक और गंभीर बातों को लिखा है जिससे हर किसी का सरोकार है पर बड़ा सवाल यह है कि क्या कोई इस ओर प्रवृत्त भी होगा........? लेकिन जब किसी भी चीज की अति हो जाती है तो अंत भी होता ही है फिर प्रकृति का नियम है “जो आया है सो जाएगा…….”
    आपने अपने विचारों में एक जगह अंगद का ज़िक़्र करते हुए लिखा है “अंगद रावण की सभा में रावण से कहते हैं कि जितने रावणों के बारे में मैं जानता हूँ, तू सुन और बता कि उनमें से तू कौन-सा है -
    'बलिहि जितन एक गयउ पताला। राखेउ बाँधि सिसुन्ह हयसाला॥
    एक बहोरि सहसभुज देखा। धाइ धरा जिमि जंतु बिसेषा॥
    एक कहत मोहि सकुच अति, रहा बालि कीं काँख।
    इन्ह मह रावन तैं कवन , सत्य बदहि तजि माख॥'

    बिल्कुल सटीक लिखा है. मुझे एक कवि के दो पंक्तियां याद आ रही हैं “ पग – पग लंका घर – घर रावण इतने राम कहां से लाऊं ......” तब के रावण ने तो एक शक्ति स्वरूपा माता सीता पर कुदृष्टि डाली थी आज के रावण तो न जाने कितनी सीताओं का चीरहरण कर चुके होंगे खुद उनको भी नहीं पता होगा.
    आपकी भावनाएं और लेख से एकदम साफ है कि जरूरत है कि लोग वक्त रहते चेत जाएं वरना वह दिन दूर नहीं जब इंसान ही इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन बन जाएगा. वैसे अभी भी कम हो ऐसा नहीं है. जिस तेजी से बदलाव आ रहा है, लोगों में विकृतियां आ रही हैं, अर्थ प्रधान समाज बनता जा रहा है, मेहनत और ईमान भूलकर लोग शॉर्टकट पर ज्यादा भरोसा करते हैं वह सब अनजाने और धीरे – धीरे पतित हो चुके समाज को विकरालता और विकृति की ओर तेजी से ले जाने से कम नहीं है. अब वह समय आ गया है जब सभी को इस बारे में गंभीरता से चिंतन और मनन करने की जरूरत है. आपने बहुत ही गंभीर विषय पर एक सार्थक चिंतन प्रस्तुत किया है. यह एक बदलाव की दिशा में चिंगारी बने यही कामना है. बहुत – बहुत साधुवाद.

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