Saturday, January 26, 2013

परतंत्र भारत


परतंत्र भारत 




     डॉ मनमोहन सिंह भारत के चौदहवें सुशिक्षित, समझदार और योग्य प्रधानमंत्री हैं जिन्होने पंजाब विश्वविद्यालय से अपनी मैट्रिकुलेशन परीक्षा उत्तीर्ण की तथा अर्थशास्त्र की शिक्षा ग्रहण करने ूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज,ब्रिटेन गए, तत्पश्चात ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के नफील्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी. फिल कर भारत की आंतरिक व्यापार नीति की एक प्रारंभिक समालोचना पर पुस्तक "इंडियाज़ एक्सा पोर्ट ट्रेंड्स एण्ड प्रॉस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ" [क्लेरेंडन प्रेस, ऑक्सफोर्ड, 1964] लिखी .डॉ. मनमोहन सिंह ने सन् 2004 में प्रधानमंत्री पद ग्रहण किया हमारे देशवासियों को उनसे लाखों करोड़ों ही नहीं अनंत उमीदें थी। उम्मीद एक ऐसी किरण की तरह होती है जो कभी खत्म नहीं होती। यह एक ऐसा टॉनिक होती है जो सबकुछ बेहतर होने की तसल्ली देती रहती है..हमें जीने की स्फूर्ति देती है। यही उम्मीद हम सभी देशवासियों को मनमोहन सिंह जी से थी। परन्तु हुआ इसके विपरीत ही आज मनमोहन सिंह जी की हालत वेसी ही है जेसी एक पुत्र की दशा पत्नी और माँ के विवाद में फंस कर होती है . एक तरफ देशकी जनता और एक तरफ विदेशी इटली की रानी। अब मनमोहन सिंह जी क्या करे? कन्फ्यूजन  हो गया ...


                    अतः आज विवश मनमोहन सिंह दबाव में आकर अपने स्व-विवेक का उपयोग नहीं करते
हुए सत्ता के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। उन्होने अपने आप को सशक्त मजबूत होते हुए भी कमज़ोर साबित कर दिया है| उनकी इज़्ज़त की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। उन्हें जगाने के लिए अन्ना और उनके साथियों ने "जागो मोहन प्यारे" का राग भी देश को सुनाया। परन्तु मनमोहन सिंह जी तो निकले अनाड़ी। सीमा फिल्म का गीत -- बने थे खिलाडी पिया निकले अनाडी। मनमोहना बड़े झूठे हार के हार माने। आज के परिवेश में बिलकुल सत्य ही सिद्ध हो चूका है। जनसामन्य की बद से बदतर होती स्थिति वो भी इतने काबिल और योग्य, इमानदार नेता के होते हुए गंभीर रूप से सोचनीय है .आज भारत के 120 करोड़ लोगों के बीच प्रधानमंत्री का मुकुट धारण कर भी डॉ. सिंह ने अपने आप को कमजोर ही प्रदर्शित किया।


               डा सिंह जी ने राजनैतिक दबाव में आकर भ्रष्टाचार और घोटालों को मौन स्वीकृति दी जैसे सहयोगियों को बचाया गया, कोयला घोटाला , सेना में भ्रष्टाचार, आम नागरिकों के लिए एलपीजी गैस की कीमते गगनचुम्बी की गयी, इतना ही नहीं देश में बढ़ता अत्याचार , अनाचार , व्यभिचार , भ्रष्टाचार और भी कितने 'अनाचार' है जो दिन पर दिन बढ़ते ही जा रहे हैं। आज भारत की दशा और दिशा सुधरने हेतु अंधेर में प्रकाश की किरण जगाने नव सूरज के उदय होने की भारत की जनता को प्रबल आवश्यकता है तभी भारत का प्राची से उगने वाला सूर्य पश्चिम में भी प्रकाश फैला सकेगा।



15 comments:

  1. अगर हम गौर से देखें तो नरसिंहा राव जी की सरकार के समय जब मनमोहन जी वित्त मंत्री थे (90 के दशक मे)तब जिन आर्थिक नीतियों को सरकार ने अपनाया और लागू किया वह आम आदमी की हित की नहीं बल्कि चंद अमीरों को खुश करने की नीतियाँ हैं।

    बड़ी बड़ी बाते करनी वाली बी जे पी की राजग सरकार मे तो राहत मिलने का कोई प्रश्न उठता ही नहीं था।

    वांम दल विरोध करते हैं और लोग मज़ाक उड़ाते हैं जबकि वाम दलों के किसी भी नेता पर आज तक भ्रष्टाचार का कोई आरोप न लगा है और न लग सकता है।

    अतः यदि देश की जनता वाकई सजग और जागरूक है तो 2014 के लोक सभा चुनावों मे वामपंथी दलों के बहुमत वाली सरकार बनने से ही आर्थिक मोर्चे पर देश का कुछ भला हो सकता है। क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टियों के अलावा सही मायने मे कोई भी दल आम जनता , किसानों और मजदूरों के हित की बात ठीक से नहीं उठाता।

    सादर

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  2. मनमोहन जी पर दया आती है. एक प्रसिद्द अर्थशास्त्री अपनी सौम्य प्रकृति के कारण कुछ कर नहीं पा रहे. कोई भी निर्णय लेने में आज असमर्थ हैं. पता नहीं क्यों उन्हें इन परिस्थितियों में भी पद से इतना मोह है...

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  3. Bahut achchha lekh likha hai.Sankshep me saari sthiti ka byaan kar diya hai. Manmoham Singh ji ka gyaan kitaabi zyada hai, vyvhaarik kam. Jin sudhaaron ka shry unhe diya jata hai, vaastav me uske hakdaar Narsimha Rao hain. Par congress ki chamcha mandali me Manmohan ko mahima mandit karne ke liye aisa shor macha rakha hai.

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  4. bahut chuteela likha hai, and the pic is also suits... :)

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    1. बहुत ही सटीक विचारों का आलेख जो मुख्या बिंदु था उसी पर आपने प्रकाश डाला है मनमोहनसिंह जैसे अर्थशास्त्री के रहते हुए भी अगर महंगाई सुरसा की तरह बढाती है तो इसमे मनमोहनसिंह जी का सोनिया की कठपुतली बनाना ही बड़ा कारण है भारत के लोग सैकड़ो साल गुलाम रहे है अत अभी भी सोनिया की गुलामी उनके खून में है भावना जी शायद आपका आलेख पढ़कर कुछ जगे तो ही सही इतने अच्छे आलेख व् राष्ट्रवादी विचाजो के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

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    2. बहुत ही सटीक विचारों का आलेख जो मुख्या बिंदु था उसी पर आपने प्रकाश डाला है मनमोहनसिंह जैसे अर्थशास्त्री के रहते हुए भी अगर महंगाई सुरसा की तरह बढाती है तो इसमे मनमोहनसिंह जी का सोनिया की कठपुतली बनाना ही बड़ा कारण है भारत के लोग सैकड़ो साल गुलाम रहे है अत अभी भी सोनिया की गुलामी उनके खून में है भावना जी शायद आपका आलेख पढ़कर कुछ जगे तो ही सही इतने अच्छे आलेख व् राष्ट्रवादी विचाजो के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

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  5. बहुत ही सटीक बात कही आपने सोनिया ने ही मनमोहनसिंह को प्रधानमंत्री बनाया अतः सोनिया के इसरो पर नाचने के आलावा ये कुछ भी नहीं कर सकते एक अच्छे अर्थ शास्त्री के होते हुए भी महंगाई सुरसा की तरह मुहं फाड़े लगातार बढ़ ही रही है भावनाजी आपने बहुत ही सही और जिसको लोग कहने की हिम्मत नहीं करते उस बात को आलेख के माध्यम से कही है इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपके राष्ट्रवादी विचारों से शायद मनमोहनसिंह जी जाग जाये तो देश की जनता का बहुत भला होगा जय श्री राम जय हिन्द

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  6. बहुत ही सटीक विचारों का आलेख जो मुख्या बिंदु था उसी पर आपने प्रकाश डाला है मनमोहनसिंह जैसे अर्थशास्त्री के रहते हुए भी अगर महंगाई सुरसा की तरह बढाती है तो इसमे मनमोहनसिंह जी का सोनिया की कठपुतली बनाना ही बड़ा कारण है भारत के लोग सैकड़ो साल गुलाम रहे है अत अभी भी सोनिया की गुलामी उनके खून में है भावना जी शायद आपका आलेख पढ़कर कुछ जगे तो ही सही इतने अच्छे आलेख व् राष्ट्रवादी विचाजो के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

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  7. बहुत ही सटीक विचारों का आलेख जो मुख्या बिंदु था उसी पर आपने प्रकाश डाला है मनमोहनसिंह जैसे अर्थशास्त्री के रहते हुए भी अगर महंगाई सुरसा की तरह बढाती है तो इसमे मनमोहनसिंह जी का सोनिया की कठपुतली बनाना ही बड़ा कारण है

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  8. भारत के लोग सैकड़ो साल गुलाम रहे है अत अभी भी सोनिया की गुलामी उनके खून में है भावना जी शायद आपका आलेख पढ़कर कुछ जगे तो ही सही इतने अच्छे आलेख व् राष्ट्रवादी विचाजो के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

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  9. यह सुन्दर लेख है रिमोट कंट्रोल का अनुपम उदहारण है

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  10. Safal prayaas.. parantu yahi toh durbagya hai hamare desh ka, ki yahan ka suraj pashchim me ujala karta hai yahan nahi.. aur hamare bharsht neta bhi videshiyou ko hi khush karne me lage hein desh ko samradh karne me nahi..

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  11. Politics is really so bad..Even such an eminent economist and educationist Manmohan Singh could not save himself from the really sad environment ...Only a few people like you think so ..Very well said and keep it up..Will love to hear more from you

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  12. kaha jata hai ki satta ka taj kanto bhara hota hai, mai kisi ka pkchhdhar nahi hu fir bhi yhi kahuga ki dabab banaye huye logo ke bich koi kaise swantrata purvak kam kar sakata hai, aapaka lekh paristhitiyo ke anurup tatha sarthak vicharo ki abhivyakti prstut karata hai

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  13. बेचारे मनमोहन.....
    विचारणीय लेख...
    आभार।

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