प्रभु भक्ति
सुबह सुबह धोती कुरता पहनते हुए वे राधेश्याम सीताराम धुन सुनते हुए अपने अपनेघरों से निकलने के लिए तैयार होते हैं। हाथों में मंजीरा, तुरही और लोकल वाद्य यन्त्र बजाते हुएअपने अपने घरों से निकल कर वे एक टोली बनाते हुए नरसिंह मंदिर तक पहुँचते हैं प्रातःकाल का शांत वातावरण और चारों तरफ प्राकृतिक हरियाली, सूर्योदय की लालिमा, शांतिमय सुहावना शुद्ध और प्रदूषण रहित वातावरण और घंटे , मंजीरे , ढोलक के साथ - "जय जय नरसिंह दया करके मेरी नाव को पर लगा देना - अंधियारे मानस मंदिर में प्रभु भक्ति का दीप जला देना" का समवेत स्वर सुनकर मंदिर के आस -पास रहने वाले घरों की गृहिणिया, बुजुर्ग अपने अपने हाथों में अगरबत्ती लेकर मंदिर के समक्ष टोली में शामिल हो जाती है और प्रभातफेरी के सदस्यों के सुर में सुर मिलाने लगती है। नरसिंह भगवान् को धूप दीप नैवेद्य समर्पित कर रामधुन टोली उपस्थित भक्त जनों को प्रशाद बांटते हुए आगे बढती है. सुबह का प्रशाद बच्चों के आकर्षण का मुख्य केंद्र रहता है।
लोगों का विश्वास है कि सुबह सुबह नरसिंहपुर के अधिपति विष्णु अवतार श्री -लक्ष्मीनरसिंह भगवान् का स्मरण करने से उनके जीवन का दुःख दारिद्रय दूर हो जायेगा। दूसरा भजन गाते हुए-"सीता राम सीता सीता राम कहिये , जाही बिधि राखे राम ताहि बिधि रहिये", अपने तन- मन से प्रभु का नाम लेते हुए वे राधा वल्लभ मंदिर के सामने पहुँचते हैं और पुनः समवेत स्वर में घंटे शंख की ध्वनि और आरती द्वारा आस पास के लोगों को जागते हुए प्रसन्नता से बिना किसी लाज के नाचते गाते हुए आगे बढे जा रहे हैं। मंदिर की देहरी पर धुप दीप पूजन कर और दीपक जला कर वे मुरलीधर मंदिर पहुंचे .इस तरह वे चलते जाते हैं। दशकों से इस प्राचीन परम्परा का निर्वाह करते हुए पूजन कर प्रशाद बाँटते हुए वे आगे की मंदिरों की और उसी उत्साह से बढ़ रहे हैं जिस उत्साह से उनके पूर्वज नियमित परंपरा का निर्वाह करते थे ।
शहर में रहने वाले शर्मा जी प्रातः काल की ऐसी मनोरम छटा का पूरा आनंद ले रहे थे उन्हें धन से ज्यादा तन और मन की शक्ति जगाने वाला प्रभात भ्रमण आनंददायी प्रतीत हो रहा था.उनके लिए यह एक आश्चर्य का विषय था कि भारी बरसात हो या कड़ाके की सर्दी कम से कम पचास से सत्तर स्त्री- पुरुष की टोली मंदिरों के सामने अवश्य ही अपस्थित रहती है प्रातःकाल कीर्तन भजन यह हम भारतियों की परंपरा रही है जो की शहरीकरण में विलीन होती जा रही है.ऋषियों ने इस परंपरा को धर्म से जोड़ कर प्रस्तुत किया था जिसे आज के मॉडर्न युग में मोर्निंग वाक का नाम दिया गया है.
शर्मा जी प्रातः दस बजे से पहले कभी सोकर नहीं उठते थे अब सेवा निवृत होकर भी सुबह पांच बजे उठ जाते हैं यह उनकी पत्नी और परिवार के लिए आश्चर्य जनक प्रसन्नता का विषय था। नरसिंहपुर में इस तरह की प्रभात फेरी महानगर से आने वालों के लिए कोतुहल का विषय थी। जब शर्माजी महानगर में रहते थे तब उनकी सुबह उनके बच्चों के पॉप म्यूजिक शुरू होती थी.भागम भाग की जिंदगी - तैयार हुए टाई कोट पहना और कार निकाल कर जो रवाना हुए तो फिर तो रात में थक हर कर सीधे घर आकर बिस्तर पे पड़ जाते। उनके बच्चे भी लेट नाईट टीवी सभ्यता का अनुसरण करते हुएजल्दी नहीं सोते और न ही जल्दी उठते.
विभिन्न स्थानों से आये साधू संतों ने नरसिंहपुर को एक तीर्थस्थल की गरिमा से भी सुशोभित किया गया है .उन्होंने इस शहर के लोगों की मनोशुद्धि के लिए हरसंभव प्रयास किये है जिनमे से एक अद्वितीय प्रयास रोज सबेरे रामधुन गाते हुए प्रभात फेरी निकलाने की परंपरा बनाना है।सबेरे-सबेरे रामधुन की अलख से वातावरण सात्विक हो जाता है। यह क्रम जन मानस की मनोवृत्ति को भक्ति भाव के प्रवाह में बहाने में सहायक है।नरसिंहपुर शहर में लगभग हर चौराहे पर एक मंदिर स्थापित है। भगवन नरसिंह का विशाल मंदिर और माँ नर्मदा और विलक्षण साधू संतों का इस शहर को दुर्लभ सौभाग्य प्राप्त हैं।
प्रभात फेरी में सुबह की सैर करने वालो की दिन पर दिन वृद्धि ही हो रही है दशकों से निकल रही प्रभातफेरी की परंपरा का पालन करने वाला नरसिंहपुर शहर भक्ति भावना शांति और सद्भाव का सन्देश है। नरसिंहपुर नगर की हर सुबह बड़े धूमधाम से रामधुन के साथ प्रभात फेरी से शुरू होती है। प्रातःकाल की खुली स्वच्छ वायु फेफड़ों में रक्त शुद्ध करने की क्रिया को प्रभावशाली बनाती है। इससे शरीर में ऑक्सीहीमोग्लोबीन बनता है, जो कोशिकाओं को शुद्ध ऑक्सीजन पहुँचाता है अपनी व्यस्त दिनचर्या में से कुछ मिनट निकाल हम सभी को अपने तन और मन को स्वस्थ रखने हेतु संकल्प ले कर थोड़ा-सा समय प्रदूषण मुक्त सुबह की ठंडी सुहावनी हवा में, जो प्रकृति ने हमें उपहारस्वरूप दी है का लाभ उठा कर जीवन में संजीविनी शक्ति सा संचार करना चाहिए । मन में शुद्ध विचार तभी आते है जब शुद्ध वातावरण शुद्ध आबोहवा हो. शोध के अनुसार प्रातः भ्रमण अवसाद से मुक्ति दिलाने का भी एक सफल उपाय बताया गया है।
समय और आधुनिकता की अंधी दौड़ में लोगो ने अपनी परम्पराओं से दिन
ReplyDeleteप्रतिदिन दूर होते जा रहें ,वास्तव में प्रभातफेरी सिर्फ अध्यात्मिक शांति ही
नहीं देती है बल्कि एक दुसरे से परिचय भी कराती ,आज के जीवन में जहाँ
कही इन परम्पराओं का पालन नहीं किया जाता वह लोग अपने पड़ोसी को भी
नहीं पहचान पाते ?पर जहाँ प्रभातफेरी होती है हर दोसरा व्यक्ति एक दुसरे
भालीभाती जानता है और उसके सुख दुःख में शामिल रहते है .....
वास्तव में बहुत खूबसूरत होगा आपका नरसिंह पुर गाँव !
बधाई हो, भावना श्रीवास्तव जी .......
niceeeeeeee
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