Saturday, August 11, 2012

अर्धांगिनी



पत्नी  माँ भी   है. 



माँ , पुत्री, बहिन, पत्नी, गुरु, मित्र,देवी अदि अनेक रूपों में नारी की पूजा करने वाले संस्कार भारत में ही हैं भारत के आलावा किसी और देश में नहीं . पाश्चात्य संस्कृति के अनुसार - विवाह के उपरांत बच्चा हो या नहीं ये आवश्यक नहीं. वहां विवाह एक एक से ज्यादा बार भी किये जा सकते हैं. तलाक लेकर विवाह तोड़ कर किसी अन्य से विवाह कर लिया या विधवा होने पर विवाह कर लिया. यद्यपि भारत में भी यह संस्कृति आ गयी है. पर भारत में मूल रूप से नारी को पुरुष की 'संगिनी' और अर्धांगिनी के रूप में ही स्वीकार किया जाता रहा है है. दोनों का रिश्ता एक दुसरे का सहयोगी और एक दुसरे के कार्यों की प्रशंसा , सराहना करने वाला माना गया है.


 भारत के महानगरों में रहने वाले और माँ का समर्थन जीतने अपने को चरित्रवान बताने वाले ऊपर से बाह्य दिखावा मात्र करने वाले पति यह कहते पाए जाते हैं-- "हम पत्नियां तो कई पा सकते हैं परन्तु माँ एक ही होती है" बिना ये सोचे कि उसकी पत्नी क़ी भी तो कोई माँ है जिसने उसे जन्म दिया है . आखिर वो क्यों नहीं कहती क़ी मुझे पति तो कई मिल सकते हैं पर पिता तो एक ही होता है.

हर शब्द तोल मोल के बोलना चाहिए . हर कथन को अपने ऊपर लागु करके देखने से पहले जो भी शब्द मुंह में आये बोल देना वेसा ही है जेसे अँधेरे में बिना निशाना लगाये तीर छोड़ देना. अगर ऐसे पतियों को जिनको विवाह का मतलब नहीं मालूम है उन्हें सामाजिक रूप से विवाह करने कि अनुमति ही नहीं देना चाहिए. ऐसे लोग तो चोरी छुपे काम वासना पूरी कहीं भी करते रहते हैं. उनके लिए पत्नी सिर्फ भोग क़ी वास्तु रहती है.जो अपनी जिंदगी अकेलेपन और अपमान की आग में असमय ख़त्म कर देती है .

       जब तक सच्चा प्रेम नहीं हो विवाह बंधन में नहीं बंधना चाहिए. पढाई लिखाई का महत्व प्रेम से कम होता है. संत कबीर दास जी भी कह गए हैं- पोथी पढ़ पढ़ जड़ मुआ पंडित भय न कोई , ढाई अक्षर 'प्रेम' का पढ़े सो पंडित होय .. जो तथाकथित किताबों के अध्ययन में मग्न अपने अंदर के प्रेम को प्रकट करने में असमर्थ हैं वो विद्वान नहीं कहला सकते.

  सच्ची चाहत ये नहीं देखती कि पत्नी मोटी है या दुबली? काली है या गोरी? अमीर घर से है या गरीब? ज्यादा पढ़ी लिखी है या कम ? चाहत सिर्फ दिल से होती है. पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण करने वालियों का साथ तभी तक लोग पसंद करते हैं जब तक वे जवान हो . जवानी ढलते ही उनका शारीरिक आकर्षण समाप्त हो जाता है .पत्नी से आकर्षण नहीं सच्चा प्रेम होता है यह शाश्वत आत्मिक प्रेम, स्नेह का बंधन हीं तो है जो सभी को चाहिए इस बंधन मे तो स्वयं भगवान् भी बंधना चाहते हैं. बिना स्नेह के बंधन में बंधे जिंदगी कभी सफल नहीं हो सकती.

 जो पति ये कहते है माँ एक बार मिलती है पत्नियां कई बार वो ये क्यों नहीं सोचते कि उनकी पत्नी सिर्फ उनकी पत्नी ही नहीं है उनके बच्चे क़ी माँ भी है. उनके बच्चों का भविष्य है, उनकी पहली पाठशाला हैं. उसे पुत्री, बहिन, मित्र, प्रेमिका , पत्नी आदि के पात्र निभाने के साथ साथ माँ भी समझना चाहिए.

  बंगाल में तो हर रिश्ते के साथ 'माँ' शब्द का जोड़ते हैं जेसे- भाभी माँ, पीसी माँ, माशी माँ, बेटी माँ, बहु माँ, ..ऐसे कितने ही उदहारण हैं जिसमे पति अपनी पत्नी को ही माँ बुलाते थे. भगवान् राम कृष्ण परमहंस अपनी पत्नी में माँ शारदा को देवी माँ , जगद जननी शारदा कहकर उन पर फूल पुष्प चढाते थे.

मराठी में कहावत भी है --- क्षण मात्रे पत्नी जीवन पर्यन्ते माँ. किसी भी नारी के लिए पत्नी का पात्र कुछ समय के लिए होताहै बाकि समय तो वह माँ क़ी ममता और करुना से ही ओतप्रोत होकर पति और परिवार क़ी सेवा करती है. इसलिए उसे क्षण मात्र की पत्नी और जीवन भर के लिए माँ भी कहा जाता है.

12 comments:

  1. धन्यवाद . आप के ब्लॉग देखे आप संवेदनशील लेखक जान पड़ते हैं

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  2. aapka yah lkh ham apne news papr main publish kar rahe hain paper ka name hai amar jwala 15 august 2012

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    1. कृप्या उल्लेख करें कि कहाँ के संस्करण में प्रकाशित कर रहे हैं और प्रकाशित अंक की एक प्रति मुझे भी bhavpath@gmail.com पर भेजने का कष्ट करें...धन्यवाद!

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  3. बिना स्नेह के बंधन में बंधे जिंदगी कभी सफल नहीं हो सकती.

    Nice post.

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  4. ..Thank you , This is article is published here also.

    http://pyarimaan.blogspot.in/2012/08/wife.html

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  5. वाह गजब का आलेख है दिल को छू गया

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