Saturday, August 11, 2012

अर्धांगिनी



पत्नी  माँ भी   है. 



माँ , पुत्री, बहिन, पत्नी, गुरु, मित्र,देवी अदि अनेक रूपों में नारी की पूजा करने वाले संस्कार भारत में ही हैं भारत के आलावा किसी और देश में नहीं . पाश्चात्य संस्कृति के अनुसार - विवाह के उपरांत बच्चा हो या नहीं ये आवश्यक नहीं. वहां विवाह एक एक से ज्यादा बार भी किये जा सकते हैं. तलाक लेकर विवाह तोड़ कर किसी अन्य से विवाह कर लिया या विधवा होने पर विवाह कर लिया. यद्यपि भारत में भी यह संस्कृति आ गयी है. पर भारत में मूल रूप से नारी को पुरुष की 'संगिनी' और अर्धांगिनी के रूप में ही स्वीकार किया जाता रहा है है. दोनों का रिश्ता एक दुसरे का सहयोगी और एक दुसरे के कार्यों की प्रशंसा , सराहना करने वाला माना गया है.


 भारत के महानगरों में रहने वाले और माँ का समर्थन जीतने अपने को चरित्रवान बताने वाले ऊपर से बाह्य दिखावा मात्र करने वाले पति यह कहते पाए जाते हैं-- "हम पत्नियां तो कई पा सकते हैं परन्तु माँ एक ही होती है" बिना ये सोचे कि उसकी पत्नी क़ी भी तो कोई माँ है जिसने उसे जन्म दिया है . आखिर वो क्यों नहीं कहती क़ी मुझे पति तो कई मिल सकते हैं पर पिता तो एक ही होता है.

हर शब्द तोल मोल के बोलना चाहिए . हर कथन को अपने ऊपर लागु करके देखने से पहले जो भी शब्द मुंह में आये बोल देना वेसा ही है जेसे अँधेरे में बिना निशाना लगाये तीर छोड़ देना. अगर ऐसे पतियों को जिनको विवाह का मतलब नहीं मालूम है उन्हें सामाजिक रूप से विवाह करने कि अनुमति ही नहीं देना चाहिए. ऐसे लोग तो चोरी छुपे काम वासना पूरी कहीं भी करते रहते हैं. उनके लिए पत्नी सिर्फ भोग क़ी वास्तु रहती है.जो अपनी जिंदगी अकेलेपन और अपमान की आग में असमय ख़त्म कर देती है .

       जब तक सच्चा प्रेम नहीं हो विवाह बंधन में नहीं बंधना चाहिए. पढाई लिखाई का महत्व प्रेम से कम होता है. संत कबीर दास जी भी कह गए हैं- पोथी पढ़ पढ़ जड़ मुआ पंडित भय न कोई , ढाई अक्षर 'प्रेम' का पढ़े सो पंडित होय .. जो तथाकथित किताबों के अध्ययन में मग्न अपने अंदर के प्रेम को प्रकट करने में असमर्थ हैं वो विद्वान नहीं कहला सकते.

  सच्ची चाहत ये नहीं देखती कि पत्नी मोटी है या दुबली? काली है या गोरी? अमीर घर से है या गरीब? ज्यादा पढ़ी लिखी है या कम ? चाहत सिर्फ दिल से होती है. पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण करने वालियों का साथ तभी तक लोग पसंद करते हैं जब तक वे जवान हो . जवानी ढलते ही उनका शारीरिक आकर्षण समाप्त हो जाता है .पत्नी से आकर्षण नहीं सच्चा प्रेम होता है यह शाश्वत आत्मिक प्रेम, स्नेह का बंधन हीं तो है जो सभी को चाहिए इस बंधन मे तो स्वयं भगवान् भी बंधना चाहते हैं. बिना स्नेह के बंधन में बंधे जिंदगी कभी सफल नहीं हो सकती.

 जो पति ये कहते है माँ एक बार मिलती है पत्नियां कई बार वो ये क्यों नहीं सोचते कि उनकी पत्नी सिर्फ उनकी पत्नी ही नहीं है उनके बच्चे क़ी माँ भी है. उनके बच्चों का भविष्य है, उनकी पहली पाठशाला हैं. उसे पुत्री, बहिन, मित्र, प्रेमिका , पत्नी आदि के पात्र निभाने के साथ साथ माँ भी समझना चाहिए.

  बंगाल में तो हर रिश्ते के साथ 'माँ' शब्द का जोड़ते हैं जेसे- भाभी माँ, पीसी माँ, माशी माँ, बेटी माँ, बहु माँ, ..ऐसे कितने ही उदहारण हैं जिसमे पति अपनी पत्नी को ही माँ बुलाते थे. भगवान् राम कृष्ण परमहंस अपनी पत्नी में माँ शारदा को देवी माँ , जगद जननी शारदा कहकर उन पर फूल पुष्प चढाते थे.

मराठी में कहावत भी है --- क्षण मात्रे पत्नी जीवन पर्यन्ते माँ. किसी भी नारी के लिए पत्नी का पात्र कुछ समय के लिए होताहै बाकि समय तो वह माँ क़ी ममता और करुना से ही ओतप्रोत होकर पति और परिवार क़ी सेवा करती है. इसलिए उसे क्षण मात्र की पत्नी और जीवन भर के लिए माँ भी कहा जाता है.

Friday, August 10, 2012

Shri Krishnam Sharanam

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये  


O Lord Krirshna !
You are Imaginatioan.
You are feelings.You are belief 
you are emotion
You are sentiments
You are power

Physical,mentall,emotional,
social,,economical,political,


pschological,etheral,universal
You are the fragrance in the flower
You are soul in livings
You are healer you are hearts-stealer
You are worship You are God
You are guide You are light.


You are life You are death
You are sun you are moon
you are air you are water
you are the whole universe
but you came in the form of Man
In Incarnation of "Krishna"
to delight Maa Yashoda
to release Maa Devki
to save the saints
to enlighten the cosmos
I pay you my "purest- bhavana"
as I am "YOURS " in all the ways
 .

Thursday, August 9, 2012

मीरा


 मीरा  



              कोई नहीं  है  "गिरिधर" जैसा ,  भूल तुझे क्या पाऊ मै ?

               देख लिया जग सारा मैंने , तुझसा मीत न पाऊ मै !

               नीर - क्षीर का ज्ञान मिला अब , मान -सरोवर जाऊ  मै !

               गिरिधर हंस! बगुला जगत देर न हो  तर जाऊ  मै ?

           जब -जब पीर परे  प्रभु  हम पर.   किसको और बुलाऊ मै ?

        सत -चित -आनंद  ज्योति जलाकर , नश्वर  जग सुख  ना चाहू मै! 
               
           जब हैं  मेरे  गिरिधर -नागर,  दूजा अब क्या चाहू मै ?

           भाव -सागर के सुंदर  मोती ,  सादर तुम्हे चढ़ाऊ में !!





                       





हे
 नाथ तुम्हे में भूलूँ ना
 
!! 



जल में थल में दूर गगन में ,

सुख में दुःख में,भीड़ सघन में

हे नाथ तुम्हे में भूलूँ ना!



दे दो इतना अंतर बल,

हूँ कभी ना विचलित भूले से !

तुम हो मुझमे और तुममे में,

जैसे कस्तूरी मृग अंतर में !



Monday, August 6, 2012

तुम तो प्यार हो

हृदय का द्वार

एक छोटे लड़के ने अपनी माँ को रोते देख पूछा,
“ तुम क्यों रो रही हो?”
“ क्योंकि मैं एक औरत हूँ|” , उसने उसे बताया|
लड़के ने कहा,
“ मुझे समझ नहीं आता|”
उसकी माँ ने उसे गले लगाया और कहा,
“ और तुम कभी समझ नहीं पाओगे|”

बाद में छोटे लड़के ने अपने पिता से पूछा,
“ माँ क्यों बिना किसी कारण के रोने लगती है?”
“ सभी महिलाएं बिना किसी कारण के रोती हैं|”
उसका पिता इससे ज्यादा कुछ न कह सका| छोटा लड़का समय के साथ बड़ा हुआ और अपने पिता की तरह एक समझदार आदमी बन गया| परन्तु अभी भी वह नहीं समझ पाया था की महिलाएं क्यों रोती हैं?
अंत में वह थक हार कर भगवान के पास पंहुचा| उसने भगवान से पूछा,
“ भगवान, महिलाएं इतनी आसानी से क्यों रो देती हैं?”



भगवान ने कहा,
“ जब मैंने औरत बनाया तो उसे कुछ विशेष बनाया|

मैंने सांसारिक बोझ उठाने के लिए उसके कंधों को काफी मजबूत बनाया, साथ ही तुम्हारे आराम के लिए पर्याप्त कोमलता दी|
मैंने उसे अंदरूनी ताकत दी, प्रसव-वेदना सहने के लिए, अपने बच्चों से मिलने वाले निरंतर अस्वीकृति और तिरस्कार सहने के लिए|
मैंने उसे ऐसी कठोरता दी जो उसे सबके द्वारा त्यागने या विषम परिस्थितियों में भी अपने कर्मों से न डिगा पाए और बीमारी और थकान के बावजूद अपने परिवार का ख्याल बिना किसी शिकायत के करती रहे|
मैंने उसको सभी परिस्थितियों में अपने बच्चों को प्यार करने के लिए संवेदनशीलता दी चाहे उसका बच्चा उसे कितनी भी बुरी तरह से चोट पहुचाये|
मैंने उसे ताकत दी जिससे वह अपने गलत पति को भी संभाल सके और उसके हृदय की पसली बनकर उसकी रक्षा करे|
मैंने उसे यह ज्ञान दिया कि एक अच्छा पति कभी अपनी पत्नी को दर्द नहीं देता, लेकिन कभी कभी उसकी ताकत और उसके बुद्धिमता की परीक्षा लेता है, यह पता करने को की वो हर कदम पर उसके साथ अडिग खड़ी है|
और अंत में, मैंने एक आंसू दे दिया उसे, बहाने को| यह उसे विशेष रूप से उपयोग करने के लिए दिया, जब भी उसे इसकी जरुरत महसूस हो, जब भी यह आवश्यक हो|”
“ इसलिए हे मेरे प्यारे पुत्र” , भगवान ने आगे कहा
“ एक औरत की सुंदरता उन कपड़ो में नहीं जो वो पहनती है, उस शरीर – सौष्ठव में नहीं है जो उसके पास है, या उस अंदाज में नहीं है जिस तरह से वह अपने बाल में कंघी करती है|

एक औरत की खूबसूरती उसकी आँखों में देखा जाना चाहिए, क्योंकि यह उसके हृदय का द्वार है जहाँ प्रेम का निवास है|”
— with and by  Thekkiniyadth Wbss.

एक हिंदु विवाह

एक हिंदु विवाह

भाग्य राजा को भिखारी और भिखारी को राजा भी बना सकता है. उदाहरण के तौर पे किसी का जन्म अमीर घर में होता है और किसी का ग़रीब घर में होता है . जिसका जन्म अमीर घर में होता है उसे ज़िंदगी में किसी चीज़ की कमी नहीं होती और जो ग़रीब घर में जन्म लेता है वो ज़िंदगी भर अभावों से लड़ता रहता है. उसी प्रकार जैसे किसी लड़की का विवाह धन संपन्न घर में हो जाता है तो वो बैठे बैठे राज करती है और अगर नहीं होता है तो उसे अपने पति बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों का पालन पोषण करने हेतु घर से बाहर निकल कर काम करना पड़ता है साथ ही घर की जिम्मेदारी बोनस में मिल जाती है.जब तक आर्थिक विवशता न हो तब तक कौन चाहता है नौकरी करना. धरती सी सहन शील नारी अपने परिवार के लिए बाहर धनोपार्जन करती है और घर में आकर रोटी बनाती है. अपने बच्चों का ख्याल रखती है .बुजुर्ग माता-पिता की यथा योग्य सेवा करती है. उसे एक ही दिन में कई भूमिकाएं निभानी पड़ती है . माता की ममता , पिता की कर्तव्य निष्ठता , बहिन की परवाह, भाई जेसी जिम्मेदारी, बेटे जेसा साहस , गुरु जैसी दिग्दार्शिता. इसके अलावा रोटी, कपडा और मकान की समस्याओं का समाधान तो करती ही है. 

    निवेदिता का विवाह ऐसे घर में हुआ जो कि आभाव ग्रस्त था. जहाँ उसके नौकरी किये बिना जीविकोपार्जन नहीं हो सकता था. पढ़ी -लिखी सुशिक्षित होने कि वजह से निवेदिता को प्रतिष्ठित नौकरी प्राप्त हो गयी . अन्यथा अपने योग्य नौकरी न मिलते देख महिलाएं भी हर कहीं नौकरी स्वीकार नहीं करती. परिश्रम के साथ साथ जहाँ कार्य करने का माहौल अच्छा रहे. साथ में कार्य करने वाले सहयोगी सकारात्मक रहे संगठित रहे, नारी की प्रतिष्ठा पे आंच नहीं आये और कार्य को पूजा समझा जाये .ईमानदारी से उसके कठिन परिश्रम और समर्पण का पारिश्रमिक दिया जाये वहीँ नारी को नौकरी करने में अनुकूलता मिलती है . उसी तरह घर में भी अनुकूल माहौल होने पर ही वह दोहरी जिम्मेदारी सम्हालने योग्य होती है. यदि पति और ससुराल प्रतिकूल हो तो नौकरी करना वेसे ही जेसे -"दो पाटों के बीच में जीवित बचा न कोई". इस दुनिया में सकारत्मक और नकारात्मक दो ही शक्तियाँ विद्यमान हैं इसलिए कहीं काम करके सुख की अनुभूति होती है और कहीं घुटन की अनुभूति होती है.

        निवेदिता के मायके में धनोपार्जन का कोई श्रोत नहीं था न तो उसके पिता और न ही उसके भाई की नौकरी थी और पति को धन कि जरुरत थी अतः पति के बार बार मायके से धन लाकर देने की जिद पर भी वो मायके से धन लाकर अपने पति को नहीं दे सकती थी . निवेदिता ने विवाह के कुछ समय बाद ही अच्छी नौकरी कर ली और अपनी कमाई का पाई - पाई सिर्फ अपने पति और उसके परिवार की सेवा में अर्पण कर दिया. हालाकि उसके पति ने कभी समय पर उसकी आर्थिक मदद नहीं की. बारह महीने के सभी त्योहारों में निवेदिता के मायके वालों से से उसके परिवार के लिए उपहार मांग पूर्ती करवाई उसे किसी त्योहार में कोई उपहार नहीं मिला. निवेदिता की तनख्वाह छीनने के लिए निवेदिता के पति ने आंसू बहाए , बिना ये सोचे, समझे कि उसने तो नौकरी ही इसलिए की थी कि वो आर्थिक रूप से मदद कर सके . पर उसका पति सोने का अंडा देने वाली मुर्गी के एक ही दिन में सारे अंडे खाना चाहता था. फलस्वरूप उसने मुर्गी को ही काट डाला.

       निवेदिता से पैसे मिलते ही उसका अपमान कर तुरंत उसे घर से भगा दिया ये कह कर कि मुझे कुछ जरूरी काम है तुम अपने मायके में रहो. निवेदिता यह सुनकर अवाक् रह गयी कि जहाँ उसको उसको सम्मान मिलना चाहिए था वहां उसको घोर अपमान मिल रहा है. जहाँ उसको प्रेम मिलना चाहिए था वहां उसको घृणा मिल रही है. जब उसे उसके पति का साथ चाहिए था तब उसे अकेले छोड़ा जा रहा है . फिर भी उसने अपने पति को माफ़ करते हुए,पति की कोई मजबूरी हो सकती है ऐसा समझते हुए ,पति के झूठे आंसु बहते देख, मानसिक और भावनात्मक दबाव में आकर मायके में रहना स्वीकार कर लिया. बिना पेसो के तो कोई नहीं जी सकता. अतः उसने अपने पति से संपर्क करने की बहुत कोशिश की कि - मेरी थोड़ी मदद कर दो मेरे पास बिलकुल पैसे नहीं है. परन्तु ऐसी स्थिति में जब निवेदिता को अपने पति का पूर्ण साथ और सहयोग चाहिए था उसके पति और ससुराल वालों ने तुरंत संपर्क ख़त्म कर लिया और वो जहाँ रहते थे वो मकान भी बदल लिया . ऐसी मानसिक संताप की स्थिति में उसे अब अपने जीवन का एक एक क्षण बोझ लग रहा था. उसकी नौकरी करने लायक मानसिक स्थिति ही नहीं बची थी.ये उसकी समझ से परे था कि उसका भाग्य उसे किस दोष की सजा दे रहा है? 


पति के दोस्तों से मिली जानकारी के अनुसार निवेदिता के पति ने , निवेदिता के कठिन परिश्रम, ज्ञान , इमानदारी और समर्पण से कमाए हुए पैसों का उपयोग शराब पीने में और लड़कियों के साथ समय बिताने में कर लिया था .उन्होंने यह भी बताया कि निवेदिता के पति का मन एक ही लड़की के साथ रहते -रहते भर जाता है. वो एक लड़की के साथ छः महीने से ज्यादा नहीं रह सकता . अब उसके पतित पति अपनी प्रेमिका के साथ अनैतिक रूप से रहते हैं और निवेदिता पर लांछन लगाकर कि वो मुझे छोड़ कर भाग गयी उसके बारे में बात करने से भी कतराते है. और निवेदिता को छल-बल और दल से तलाक कि पहल करने के लिए उकसा रहे हैं . ताकि उसे उसकी पत्नी होने का अधिकार न मिले .साथ ही नयी लड़की से दहेज़ की मोटी रकम लेकर पुनः शादी करके अपनी गृहस्थी बसा सके. वो पूर्णतः भूल चुके हैं निवेदिता की महानता को - उन्हें नारी सिर्फ पैसा और मनोरंजन प्रदान करने वाली मशीन लगती है. उन्हें नारी की महानता का यदि तनिक भी आभास होता तो सोचते कि इस धरा से जिस दिन नारी की महानता ख़त्म हो जाएगी उस दिन ये धरा अस्तित्व विहीन हो जाएगी .

मित्रों - आप ही बताइए क्या ये निवेदिता की आत्म हत्या के लिए बनायीं जाने वाली अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं है? जिनकी वजह से मानसिक दबाव में आकर नव- विवाहिताएं आत्महत्या कर लेती है. जो वास्तव में आत्म -हत्या नहीं हत्या है?

Sunday, August 5, 2012

मुक्ति

"मुक्ति का शंखनाद"



            सुंदर कांड में हनुमानजी के लंका में प्रवेश करते समय जब प्रभु श्री रामभक्त हनुमानजी के बल का अनुमान लेने सुरसा  को भेजा गया तब हनुमान जी छोटे से मच्छर का रूप बना कर (मसक समान रूप कपि धरी लंकहि चली सुमिरि नरहरी ) सुरसा के विशाल मुख से बहुत आसानी से बाहर निकल आते हैं. वास्तव में सुरसा श्रीराम भक्त थी. सुरसा हनुमान जी को राम भक्त के रूप में पहिचान कर, उनके बुद्धि बल का अनुमान कर उनकी बहुत प्रकार से स्तुति करती है और कहती है -" तूल न ताहि सकल मिली जो सुख लव सत्संग." अर्थात मात्र एक क्षण का सत्संग और सम्पूर्ण जीवन में भोगे गए संसार के समस्त सुखों को अगर एक तराजू में तौला जाये तो वो समस्त सुख मिलकर भी उस एक क्षण के सत्संग- सुख की बराबरी नहीं कर सकते .इसी सन्दर्भ में मेरी एक सम्यक कहानी यहाँ प्रस्तुत है. 
               एक परिवार में सभी सदस्य गुरु के प्रति श्रद्धा , भक्ति व विश्वास रखने बाले बहुत ही ईश्वर परायण थे. उस परिवार की लड़की का विवाह धोके से एक ऐसे लड़के से हो गया जो कि नालायक था . अगर गुरुदेव महाराज आते तो वो उनके न तो दर्शन करता न ही उन्हें प्रणाम करता. पूजन, आरती सत्संगति , ध्यान , भजन होता तो वह ताश और शराब में अपना यह अमूल्य सौभाग्य नष्ट करता .चूँकि लड़कियां परिवार के प्रति भावनात्मक और संवेदनशील ज्यादा होती हैं और लड़कों की अपेक्षा उन्हें परिवार जनों का प्यार अधिक प्राप्त होता है. अतः उस लड़के को परिवार ने लाख बार समझाया कि हमारे
गुरुदेव जैसे 'गुरु' इस जगत में मिलना असंभव हैं जिन्होंने निस्वार्थ रूप से अहेतुकी कृपा कर हमसे हमारा साक्षात्कार करवाया. "में कौन हूँ?" इसका आभास करवाया. इस कठोर जगत में हमें गुरुदेव प्रभु की कृपा और आध्यात्मवाद की मजबूत लक्ष्मण रेखा में ही रहना है यहाँ उच्च विचारों का सत्संग , सकारात्मक चिंतन और कल्याण है जहाँ हम माता- पिता की गोद में बालक समान हैं.

                                 हालाकि तुम्हारे महानगरीय जीवन में भौतिक आकर्षण का सागर है पर यहाँ आत्मिक आनंद का सागर- गागर में है. इस इस घनिष्ठ प्रेम की लक्ष्मण रेखा को पार मत करो इस रेखा के उस पार झूठ , छल, कपट, निम्न विचारों और रोटी , कपडा, मकान जैसी आधारभूत समस्याओं के लिए कुसंगति है संघर्ष है. इस आत्मिक आनंद के सागर को त्याग कर उस मृग तृष्णा के पीछे मत भागो जो केवल दूर से ही आकृष्ट करती है और पास जाने पर जल नहीं मरुस्थल होती है. पर इन बातो उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.वाक पटु होने की वजह से उसका एक ही तर्क रहता कि में गुरुदेव की सत्संगति में रहने योग्य नहीं हूँ..
                                  
                   यह समस्या जब गुरुदेव के समक्ष रखी गयी तब उन्होंने अति प्रेममय मधुर वाणी से कहा - जब वो आये मुझे बता देना. गुरुदेव महाराज उसके पास गए और मंत्रमुग्ध करने वाली वाणी से उससे " ॐ नमः शिवाय" का ध्यान करने को कहा . उसने उसने कहा नहीं करते . फिर वही वाक पटुता से तर्क कर टाल दिया -' मेने जीवन में बहुत से पाप किये हैं में इस योग्य नहीं हूँ कि आपके सम्मुख भजन पूजन या ध्यान करूँ '.                   

                   परन्तु गुरु तो गुरु ही होते है वो भागने लगा भागते भागते उसे जोर की ठोकर लगी और उसने कहा 'ॐ नमः शिवाय'. भक्त वत्सल , कोमल स्वाभाव, कृपालु गुरु भगवान् ने उसे तार दिया और उसका पाप नाश कर उसके कुकर्मो के बन्धनों से मुक्त कर दिया. वह शिव का परम प्रिय भक्त बन गया और शिव जी कि कृपा से परिवार सहित सभी तीर्थ स्थलों के दर्शन कर आया और पूरा परिवार गुरु के प्रति शरण , समर्पण और यथासामर्थ्य साधन भजन और परम आनंद में मग्न हो गया . तो ऐसी होती है एक क्षण भी सत्संग में बिताने की महिमा.

                   
                                  कदम कदम पर जबठोकरे लगी तो प्रभु नाम याद आया ? वही एक आलंबन बना? अंत में, परम सत्ता को स्वीकार करना ही पड़ता है. श्रीकृष्ण भगवान ने गीतामेँ कहा है की मैँ ही समस्त जीवों में, निर्जीवो में समस्त संसार, ब्रह्माण्ड और समस्त अस्तित्वों में हूँ. 'मैँ ही सब प्रकारसे देवताओँ और महर्षियोँ का उत्पादक,संरक्षक ,शिक्षक हूँ'- 'अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः' (गीता १०.२)।अर्जुनने भी विराटरुप भगवानकी स्तुति करते हुए कहा है कि 'भगवन्! आप ही सबके गुरु हैँ'- 'गरीयसे' (गीता ११.३७); 'गुरुर्गरीयान्' (गीता ११.४३)।
                               

                            अतः भगवान् श्रीकृष्ण को गुरु और गीताको उनका मंत्र,उपदेश मानना चाहिए। गुरु तत्त्व- जगत में शरीर के रूप में नहीं आते बल्कि आत्म ज्योति या शिव स्वरुप में हम सभी के आस पास ही हैं . आवश्यकता पड़ने पर सशरीर किसी भी रूप में हमारे सामने साक्षात् प्रकट होकर हमारी रक्षा करते है. जिन्हें गुरु नहीं मिलता उनके लिए जीवन एक संघर्ष होता है. 

                      जिन्हें गुरु मिल गया उनके लिए जीवन एक खेल होता है. गुरु द्वारा बताये गए मार्ग पर चलनेवालों के लिए जीवन एक उत्सव है.गुरु-तत्त्व सबके भीतर विराजमान है. हालाकी सबसे पहले गुरु हमारे माता - पिता होते है . परन्तु मूलमेँ भगवान ही सबके गुरु हैँ. यह गुरु-तत्त्व जिस व्यक्ति,शास्त्र आदिसे प्रकट होता है,वह 'गुरु' कहलाता है.  

                 
                     एक और जहाँ श्रीकृष्ण ने अपने विश्वरूप में ' योग साधना' को मानसिक तनाव से मुक्ति का साधन बताया है तो वहीँ दूसरी और शिव पुराण में ज्योतिर्लिंग दर्शन को मुक्ति का सबसे सरल मार्ग बताया है. ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से मुक्ति का रास्ता प्राप्त हो जाता है. ज्योतिर्लिंग कथा सुनने से भी भक्तों को वही लाभ होता है जो ज्योतिर्लिंग दर्शन से होता है. महाभारत की कथा के अनुसार पांडव केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद अपने पाप से मुक्त हुए थे. बुद्ध दर्शन के अनुसार दुखों से मुक्ति के तीन उपाय है - पहला पापों से, जहां तक संभव हो, बचो. दूसरा- जीवन में जितने भी पुण्य कर्म कर सकते हो, करो एवं तीसरा -अपना मन, चित्त निर्मल रखो.'
                 
                       यह तो संगति ही है जो शराबी मित्र के पास जाओ तो शराब पीना सिखा देती है संत महात्माओ के पास जाओ तो वे अच्छे काम करना सिखा देते हैं संगति का प्रभाव दुर्जन को भी सज्जन बना सकता है वेसे ही सज्जन को दुष्कर्म में फंसा सकता है जेसे -गेहू के साथ घुन पिस जाती है.                        

                        सत्संगति यश, मान और प्रगति लाती है वहीँ कुसंगति विनाश और पतन के गर्त में धकेलती है जिसका प्रभाव न केवल यह पीढ़ी वरन आगे आने वाली पीढ़ियों को भी भुगतना पड़ता है.सत्मार्ग पर चले और सत्कार्य करे,और दैहिक , दैविक, भौतिक दुखो से मुक्त हो .
इसी प्रेरणा के साथ आपका दिन शुभ हो -----------


Saturday, August 4, 2012

हमारी संस्कृति

मुझे अपनी  संस्कृति से प्यार है और आपको ?



     भारतीय संस्कृति के अनुसार नारी को महाकाली , महालक्ष्मी, महा सरस्वती और महेश्वरी कहा गया है. यहाँ तक कि हम जिस लोक में रहते है उस पृथ्वी लोक को भी धरती 'माता' कहते है. पुरातन काल में , नारी को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था. वे बिना किसी पर्दा प्रथा के घूँघट के समाज में रहती थी. उनके प्रति लोगों कि पूजनीय दृष्टि रहती थी. विवाह हेतु उन्हें अपना मन पसंद वर का चुनाव करने का स्वयं का अधिकार था. सीता , सावित्री ने स्वयंवर रचाया . ये विदुषियाँ अपने आप में सम्पूर्ण होती थीं और असाधारण तेज युक्त संतान पैदा करती थी. आज हम कितनी भी नारी मुक्ति की बात करें नारियां घरो में घूँघट  में कैद, सहमी -दुबकी सी मिल जाएँगी. जो कि अभी तक पुरुष     प्रधान समाज के पैरों की शोभा हैं , जिन्हें अभी भी मानसिक गुलामी कि बेड़ियों में जकड़ा हुआ हैं . जिनके सारे हक छीन लिए गए हैं . ससुराल में जिन्हें खाना बनाने की बात तो दूर छोटे -छोटे कामों में भी  शामिल नहीं किया जाता हो . जहाँ पढ़ी लिखी, सुसभ्य, सुसंस्कृत , गृहकार्यदक्ष लड़कियों को उनकी योग्यता के अनुरूप कार्य नहीं करने दिया जाता हैं , नौकरी करने की बात हो तो पुरुष के अहम् को धक्का पहुँचता हैं कि मेरी पत्नी एक दिन में दो घंटे काम करके में बीस हजार कमा सकती है और मै बारह घंटे काम करके चालीस हजार कमाता हूँ. उसे न बच्चा पैदा करने की स्वतंत्रता है और न ही अपनी कोख में  न पलने वाली संतान के विषय में कोई भी फैसला लेने का हक दिया जाता है. कहीं लड़की न हो जाये?
                 
                  इतना ही नहीं, जहाँ नारी को खान- पान में रोक -टोक हो. जेसे मिर्च - मसालेदार खानाही खाओ हमारे यहाँ यही परंपरा है. मीठा खाओ . खट्टा मत खाओ. जो बासी चार दिन पुराना फ्रिज में रखा हो वो तुम खाओ. तुम गैस चूल्हा जला के अपने लिए खाना नहीं बना सकती. इससे भी ज्यादा जहाँ नारी को रहन सहन की भी स्वतंत्रता नहीं हो जैसे अगर वो पति के साथ रहे तो jeans , skirt- top पहिने . सास के सामने सारी और लम्बा घूंघट. जींस नहीं पहिन सकती . उस पर भी वो अगर लाल सारी पहिने तो उससे कहा जाता है लाल सारी क्यूँ पहिन ली , पीली क्यों नहीं पहनी? नीली बिंदी लगाती है तो नीली बिंदी लगायी है लाल क्यों नहीं लगायी ? हील की चप्पल नहीं पहिनो तो हाइट कम है . पहिन लो तो ये हील की चप्पल क्यूँ पहिनी है क्या ब्यूटी कांटेस्ट में जाना है, मॉडल बनना है? अंग्रेजी में बात करो तो - अंग्रेजी बोलती है. हिंदी में बात करो तो अंग्रेजी पढ़ी लिखी नहीं है. ये सभी तो हर व्यक्ति के पर्सनल फैसले होते हैं. जिसके साथ नारी स्वविवेक से निर्णय करती ही है. उसे अपनी सुविधानुसार हक़ है अपनी बिंदी, चूड़ी, सारी,चप्पल पहिनने काया अंग्रेजी हिंदी बोलने का . अगर इतना मानसिक टार्चर रहे तो कोई जीवित केसे रहे?

                     ऐसी स्थिति में, जब नारी के लिए अपने ढंग से जीने तमाम तरह की पाबंदियाँ हों और उस पर उसकी ससुराल घोर पारंपरिक हो इसके साथ ही कई तरह की सामाजिक कुरीतियाँ जारी हों तब नारी का जीवन जीना  मुश्किल है. हमारे समाज में स्त्रियों को घर-परिवार के मान-सम्मान का प्रतीक माना जाता है यही कारण कारण हैं अपने पति तक को अपनी मन की व्यथा नहीं बताती स्वयं ही रोटी कपडा और मकान जैसी समस्या से जूझती रहती है. क्योंकि उसे डर रहता है कि किसी भी कारण से स्त्री के मान-सम्मान या प्रतिष्ठा पर कोई सवाल उठेगा तो उससे पूरे परिवार को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा .उसी जगह पति अपनी पत्नी को मनोरंजन का साधन मानते हुए पत्नी के साथ हो रहे अन्याय से बे-खबर -"सिर्फ अपनी भावनाओ को गौड़ , प्रधान मानते हुए सिर्फ अपने और अपने परिवार के अहम् कि तुष्टि के लिए " सभी सीमायें पार करने से नहीं चूकते. नारी के लिए कोई भी कार्य तब तक सहनीय है जब तक कि उसकी अति न हो. अति होने पर तो पृथ्वी में भी भूकंप और ज्वालामुखी आ जाते हैं . फिर हम तो साधारण मनुष्य ही है. अति होने पर तो देवी भी कुपित हो काली बन जाती है फिर हम तो नारी ही है. अति होने पर शिव भी तांडव करने लगते हैं तो फिर तो हम उनके ही भक्त है. अति होने पर ही कृष्ण ने भी महाभारत रच दी थी . अतः अति सर्वत्र वर्जयेत ' होती है . अति को सभी जगह वर्जित माना गया है. नारी इस अति दुःख और संताप के अव्यक्त चक्रव्यूह में कब तक अपने आप को फंसाए रखे?

                           हमारे घर के छोटे -छोटे कार्यों में हम सभी की बड़ी ख़ुशी छुपी होती है. मानसिक स्वस्थ्य निहित रहता है. उदाहरण के तौर पर जब हम एक गमले में किसी पौधे का बीज डालते हैं उसमे खाद पानी डालते है और उसकी हर बात को observe करते हैं और जब एक दिन अंकुर फूटता है पत्तियां निकलती हैं तना बनता है और उसमे कलि खिल जाती है तो हमें ख़ुशी मिलती है . क्यूंकि हमें उससे लगाव हो जाता है.आज की नारी पाक कला, गृह कार्य में दक्ष, पढ़ी लिखी, सुंदर , सुशील, घर की साज सज सज्जा में निपुड, नौकरी पेशा और अपनी संतान के व्यक्तित्व विकास के लिए पूर्णतः सजग है.कहने का तात्पर्य है उससे इन कार्य दक्षताओं को न छीने.

                         अपने स्वार्थ कि पूर्ती के लिए ,अपने आप को सुयोग्य साबित करने अपने को    काम में व्यस्त दिखा कर , और अपने दोस्तों का नेटवर्क बढाकर पुरुषो ने सब कुछ अपने ही हाथ में ले लिया है. ऐसा करके पुरुष ने कौन सी विजय पताका लहरा दी हैं ? और तो और पूरी पारिवारिक, आर्थिक , भावनात्मक और सामाजिक व्यवस्था ही गड़बड़ा दी हैं. छोटी छोटी उपेक्षा, असहयोग और अपमानजनक बातें या घटनाएं हादसा बन मन को अशांत ही नहीं करते, बल्कि अनेक अवसरों पर भय और सदमे का कारण भी बनते हैंलेखिका कमला दास ने 'माय स्टोरी' में विवाह संबंध, प्यार पाने की अपनी नाकामयाब कोशिश औऱ पुरुष से मिले अनुभव को खुलेपन से व्यक्त किया है. इसके साथ2 ही स्त्री की बाहरी और आंतरिक दुनिया को, उसके प्रेम और दुःख को अभिव्यक्त किया है.

                आधुनिकता की झूठी दौड़ में पता नहीं पुरुष क्योंफिल्मी कलाकारों के ग्लैमर के चक्कर में    रहते  ?हिंदी       सभ्यता का अनुसरण करने वाली   पत्नियाँ अभी भी अंग्रेजी का अनुसरण करने वाली पत्नियों की तुलना में हीन क्यों है ?पति के असहयोगात्मक रवैये से हिंदी पत्नियाँ जीवन के संघर्ष में , परेशानियों का सामना करते हुए आत्मविश्वास तो खो ही देती हैं, जिससे सामान्य हालात में भी उनके दिल और दिमाग में हानि होने का अनजाना भय का भूत बना रहता है. उनके लिए व्यावहारिक रूप से पति का साथ और भरोसा ही अहम होता है, लेकिन आत्मविश्वास की कमी से मन में घबराहट और डर बना रहता है जो कि मन को निर्भय और बलवान बनाने में बाधक होता है. क्या अंग्रेजी पढ़ना स्टेटस सिंबल है और हिंदी पढ़ना हीन ग्रंथि का प्रतीक? ये तो सर्व विदित है कि अंग्रेजी अनुसरण करने वाले पति को हिंदी पत्नि में अधिक दिलचस्पी नहीं , लेकिन क्या कभी ये अंग्रेजी अनुसरण करने वाले पति यह जानने की इच्छा रखते हैं कि हिंदी सभ्यता का अनुसरण करने वाली उनकी पत्नि जो कि उनकी उनकी पीढ़ी की ही है, अच्छी अंग्रेजी जानती है , अच्छी फिल्म और गुनी कलाकारों से प्रभावित होने के बावजूद भी अपनी संस्कृति पे क्यों चल रही हैं? 

Thursday, March 1, 2012

सहज बनो

 सहज बनो

नदी कहे पर्वत से तू क्यों बड़ा बहुत दर्शाता है

छोटा सा ये मानव जूती संग सिर पे चढ़ जाता है

जो झुकना ना जाना अब तक पाया ना सम्मान कभी

झुकने वाले फलित वृक्ष का लेता दिल से नाम सभी

 तू कठोर इतना होकर दुख देता है हर प्राणी को

कंकण बनकर पाँव में चुभता तोड़ के पाता पानी को

राह नहीं देने से तुमको मार के तोड़ा जाता है

नीर की शीतलता से हर प्राणी तन का सुख पाता है

 प्रीति प्यार की भाषा तुमको कभी नहीं आई है

परहित में जीने की सीख कभी किसी से पाई है

सहनशीलता ,प्यार, नम्रता हम नदियों से सीखो तुम

परोपकार के भाव दिलों में खुद भी रखना सीखो तुम

मैं देती हूँ राह सभी को कभी नहीं मैं अड़ती हूँ

बिना वार के काट तुम्हारे जैसों से लड़ती हूँ

प्रस्तरयुत बनकर हे प्राणी जीवन जीना नहीं कभी

सहनशीलता ,प्यार, नम्रता का रखना तुम भाव सभी